स्टारकास्ट: गीतिका विद्या ओह्लयान, सलोनी बत्रा और विकास शुक्ला
डायरेक्टर: इवान आयर
रेटिंग: 3.5 स्टार
Netflix Movie 'Soni' Review: दिल्ली की सुनसान सड़क पर सूट सलवार में एक लड़की रफ्तार में साइकिल से भागी जा रही है. एक लड़का उसका पीछा करके छेड़ता है. जब वो जवाब देती है तो उसे सबक सिखाने के लिए दौड़ता है. लेकिन वो लड़की चुपचाप देखती नहीं बल्कि जमकर पिटाई कर देती है. ये लड़की कोई और नहीं बल्कि सोनी है. वही सोनी जिसकी चर्चा आजकल सोशल मीडिया पर हो रही है.
सोनी भी बॉलीवुड के 'दंबग' चुलबुल पांडे, 'सिंघम' और 'सिंबा' की तरह ही पुलिस में काम करती है. वो भी अपराधियों को खत्म करना चाहती है. लेकिन सोनी फिल्मी नहीं है. सोनी में गाने नहीं हैं, आइटम सॉन्ग नहीं है. इसमें ऐसे डायलॉग भी नहीं है जिससे लोग सीटी मार सके. सोनी वास्तविक है. सोनी हर लड़की के अंदर है, उसकी सोच हर उस लड़की से मिलती है जिसके साथ कोई बदतमीजी करता है, छेड़छाड़ करता है.
नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली ये एक फेमिनिस्ट फिल्म है जो सिर्फ महिलाओं के बारे में 'टु द प्वाइंट' बात करती है. इसमें दिल्ली पुलिस में काम करने वाली दो महिलाओं की कहानी है. एक आईपीएस अधिकारी कल्पना जो सिस्टम में रहकर उसके तरीके से काम करने में यकीन रखती है औ दूसरी उसकी जुनियर सोनी जो सबक सिखाने के लिए नियम कायदे ताक पर रख देती है.
दिल्ली को सेफ बनाने के लिए इनकी टीम एक ऑपरेशन करती है. इनका काम है महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अपराध करने वाले लोगों पर शिकंजा कसना. सोनी जहां भी जाती है अपने साथ कुछ गलत होते देख बर्दाश्त नहीं कर पाती और पिटाई कर देती है. इस वजह से बार-बार उसका ट्रांसफर पुलिस कंट्रोल रुम कर दिया जाता है. लेकिन क्या होता है जब सोनी एक बार बदतमीजी कर रहे बड़े नेता के रिश्तेदार पर हाथ उठा देती है? ये आपको फिल्म देखकर पता चलेगा.
ये फिल्म दिखाती है कि छेड़छाड़ करने वाले ये नहीं देखते कि लड़की आम है या फिर पुलिस ऑफिसर. उन्हें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि सुनसान जगह है या फिर पब्लिक प्लेस.
दिल्ली गैंगरेप से प्रेरित इस फिल्म में आप ये भी देख पाएंगे कि रात में दिल्ली कितनी खौफनाक हो जाती है. इसमें कई सारी ऐसी घटनाएं दिखाई गईं हैं जिनके बारे में आपने जरुर सुना होगा या देखा होगा.
इसके डायरेक्टर इवान आयर हैं और ये उनकी डेब्यू फिल्म है. इस फिल्म को उन्होंने इतना रीयल बनाया है कि ऐसा लगता है कि हमारे सामने हर घटना हमारे सामने घट रही है. ना झन्नाटेदार म्यूजिक, ना ही सीटीमार डायलॉग.. ना ही एक्शन सीक्वेंस. बॉलीवुड में ऐसी फिल्में बनती नहीं हैं. ऐसा सब्जेक्ट पर जो फिल्में बनती हैं उसे हिट बनाने के चक्कर में इतना कुछ डाल दिया जाता है कि फिल्म मसालेदार बनकर रह जाती है.
इसकी शूटिंग का तरीका भी बाकी फिल्मों से ज़रा हटके है. इसके हर सीन को एक बार में ही शूट किया गया है. फिल्म देखते वक्त कहीं-कहीं लगता भी है कि ये कैसा कैमरा एंगल है लेकिन उसे वास्तविक बनाने के लिए मेकर्स ने अपना तरीका अपनाया है.
सोनी के किरदार में गीतिका विद्या हैं जो थियेटर से हैं. गीतिका अपनी एक्टिंग से प्रभावित करती हैं. गुस्सा, नफरत या फिर आक्रामकता. उनके चेहरे पर सब कुछ झलकता है. कई सीन में बिना डायलॉग भी बहुत कुछ समझ आता है.
कल्पना के किरदार में सलोनी बत्रा हैं जो पहले पर्दे पर नज़र आ चुकी हैं. सलोनी इतने शांत लहजे में बड़ी बातें कह जाती हैं. एक सीन में चाय पीते-पीते वो कहती हैं, ''शहर में इतनी दिक्कतें हैं और ये लोग मोरल पुलिसिंग करके समय बर्बाद कर रहे हैं...'' ये बातें चुभ जाती हैं.
दोनों ही अभिनेत्रियों ने अपनी भूमिका में बहुत ही संजीदगी से जिया है और यही वजह है कि सब कुछ बहुत रियल लगता है. फिल्म शुरु से आखिर तक बांधे रखती है. हर सीन में कुछ नया है और इंटरेस्टिंग भी.
इस फिल्म का वेनिस सहित कई फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हो चुका है. अब ये फिल्म 18 जनवरी को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. इस फिल्म का प्रमोशन बिल्कुल भी नहीं हुआ है यही वजह है कि सोशल मीडिया के जरिए इसके बारे में लोगों को पता चल रहा है. नेटफ्लिक्स ने ऐसे मेकर्स को बहुत ही अच्छा प्लेटफॉर्म दिया है जो करोड़ो के क्लब में अपनी जगह बनाने की बजाय यथार्थवादी सिनेमा में यकीन रखते हैं. बॉलीवुड की कुछ फिल्में भी यहां रिलीज हुईं हैं लेकिन उनमें वो दम नहीं दिखता जो लोगों के दिलोदिमाग में घर बना सके. सोनी अपनी कहानी और अभिनय से आपका दिल जीत लेगी. इसे जरुर देखें.