स्टार कास्ट: राजकुमार राव, श्रद्धा कपूर, पकंज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बैनर्जी
डायरेक्टर: अमर कौशिक
रेटिंग: ****
मर्दों को दर्द देने के लिए 'स्त्री' सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. इस 'स्त्री' के साथ समाज ने ऐसा बहुत कुछ किया जिसकी वजह से उसने चुड़ैल बनकर बदला लेने की ठान ली. चुड़ैल की ऐसी कहानियां आपने बहुत सुनी होगी लेकिन अमर कौशिक इसे नए तरीके से आपके सामने लेकर आए हैं. इस फिल्म की चुड़ैल पढ़ी-लिखी है, आज्ञाकारी है, वो किसी के साथ जबरदस्ती नहीं करती. उसे कंसेंट यानी ना का मतलब ना होता है, ये पता है. सबसे ख़ास बता है कि ये फिल्म आपको डराते-डराते खूब हंसाती है. करीब दो घंटे 10 मिनट की ये फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक आपको इंटरटेन करती है. फिल्म के सबसे डरावने सीन में भी आप खुद को हंसने से नहीं रोक पाएंगे. सभी एक्टर्स ने उम्दा अभिनय किया है. हर कैरेक्टर असली लगता है. एक और ख़ास बता ये है कि हॉरर के साथ-साथ कहानी में सस्पेंस भी बना रहता है. यहां ना तो जबरदस्ती डराने की कोशिश की गई है और ना ही इसकी कॉमेडी नॉनसेंस है.
डायरेक्टर ने कहानी को इतने उम्दा तरीके से गढ़ा है कि कहीं-कहीं पर ये असली लगने लगती है. पुराने जमाने की कहानी को आज से माहौल से जोड़कर ऐसे गढ़ा गया है कि चुड़ैल का जुल्म भी सही लगता है और दर्शकों की सहानुभूति उसके साथ होती है. यहां कहानी चुड़ैल की है लेकिन दशा औरतों की दिखाई है. औरतों पर जुल्म की ऐसी कहानियां आए दिन सुनने को मिलती हैं. यहां हंसाते-हसाते डायरेक्टर ने ऐसी बहुत सी बातें कह दी हैं जिसकी चोट सीधे दिल पर लगेगी. ये फिल्म हर मामले में खरी उतरती है. यही वजह है कि ये बॉलीवुड की बेस्ट हॉरर कॉमेडी फिल्मों में से एक है.
कहानी
'स्त्री' की कहानी मध्य प्रदेश के चंदेरी की है जहां टेलर विक्की इतना मशहूर है कि लोग उसे वहां के मनीष मल्होत्रा के नाम से जानते हैं. इस जगह पर ऐसी चुड़ैल का साया है जो मर्दों को रात में उठा ले जाती है और उनके कपड़े छोड़ जाती है. लेकिन चुड़ैल वहां नहीं आती जहां घर के बाहर- 'ओ स्त्री कल आना' लिखा होता है. रोजमर्रा के काम में मशगूल विक्की की एक दिन श्रद्धा कपूर से मुलाकात होती है जो हर साल वहां सिर्फ पूजा में आती है. विक्की के दोस्त बिट्टू(अपारशक्ति खुराना) को श्रद्धा कपूर पर शक होता है. जब विक्की के दोस्त जना (अभिषेक बनर्जी) को चुड़ैल उठा ले जाती है तब दोस्त उसे बताते हैं कि उसकी गर्लफ्रेंड भूतिया है. इसके बाद उसे ढूढने के लिए इनकी मुलाकात रुद्र (पंकज त्रिपाठी) से होती है. आखिर वो 'स्त्री' कौन है? वो मर्दो को उठाकर क्यों ले जाती है? क्या श्रद्धा कपूर ही चुड़ैल हैं? अगर वो हैं तो फिर विक्की से वो क्या चाहती हैं? ये सब आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा.
एक्टिंग
राजकुमार राव ने इसमें विक्की की भूमिका को इतनी सहजता से जिया है कि वो पूरे वास्तविक लगते हैं. 'सिटी लाइट्स', 'बरेली की बर्फी', 'न्यूटन' और 'ओमर्टा' जैसी कई फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी से सबका दिल जीत चुके ये अभिनेता इस फिल्म के किसी भी सीन में चूकते नहीं हैं. उनकी एक्टिंग में ही नहीं उनके चेहरे पर भी ठहराव दिखता है. उनकी डायलॉग डिलीवरी का तरीका और उनके तलफ्फुज विक्की के कैरेक्टर को और भी मजबूत बना देते हैं.
उनका सबसे यादगार सीन वो है जब उन्हें जबरदस्ती चुड़ैल से रोमांस करने को कहा जाता है. आपको ट्रेलर में भी इसकी एक झलक मिली होगी.
श्रद्धा कपूर इसमें खूबसूरत और फ्रेश लगी हैं. फिल्म की कहानी में उनकी भूमिका ही सस्पेंस वाली है और वो उनके चेहरे पर दिखाई देता. लंबे काले बाल, माथे पर छोटी बिंदी और ट्रेडिशनल अवतार में श्रद्धा इंप्रेस करती हैं. एक्टिंग के लिहाज से वो निराश नहीं करती हैं.
पकंज त्रिपाठी की फिल्म में एंट्री होते फिल्म और भी मजेदार हो जाती है. इसमें कॉमेडी का जो तड़का वो भरते हैं वो आपका दिल जीत लेता और उनके सीन देखकर आप हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाते हैं.
इतने सारे दमदार एक्टर्स के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराना कठिन होता है लेकिन अपारशक्ति खुराना इसमें कामयाब रहे हैं. दंगल से पॉपुलर हो चुके अपारशक्ति अपने हर सीन में बेहतर करते नज़र आते हैं. ये इस साल उनकी बैक-टु बैक दूसरी फिल्म है. पिछले हफ्ते वो हैप्पी फिर भाग जाएगी में भी नज़र आए थे. उसमें उनका कैरेक्टर दिलचस्प था लेकिन ज्यादा इंप्रेस नहीं कर पाए.
दोस्त की भूमिका में अभिषेक बैनर्जी भी एकदम फिट लगते हैं.
डारेक्शन
अमर कौशिक इस फिल्म से डायरेक्शन में डेब्यू कर रहे हैं. उन्होंने इस फिल्म के जरिए बॉलीवुड को ये दिखा दिया है कि एक अच्छी स्टोरी के साथ भी कॉमेडी कर सकते हैं. उनके डायरेक्शन की खास बात ये है कि उन्होंने बेवजह फिल्म को खींचने की कोशिश नहीं की है. उनकी कहानी में सब कुछ 'टु द प्वाइंट' और फटाफट होता है. डरावने सीन के लिए कुछ अलग से नहीं किया है लेकिन फिर भी डर लगता है. फिल्म कसी हुई लगती है और लय बरकरार है. कहीं भी आप बोर नहीं होते हैं.
2008 में फिल्म 'आमिर' से एसिटेंट डायरेक्टर के तौर पर अमर कौशिक ने अपने करियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म से पहले अमर कौशिक 'गो गोवा गॉन', 'फुकरे' और 'बियॉन्ड द क्लाउड' सहित करीब 9 फिल्मों को असिस्ट कर चुके हैं. पिछले 10 सालों की उनकी मेहनत यहां रंग लाई है. 'स्त्री' से उन्होंने निर्देशन में अपनी यादगार पारी से शुरुआत की है.
स्क्रीन प्ले
फिल्म की कहानी सुमित अरोरा ने लिखी है. ये कहानी बुहत पुरानी है जब गांवों में घरों के बाहर ओ स्त्री कल आना लिखा रहता था. उस कहानी को आज के समय में इतना प्रासंगिक बनाकर पेश करना आसान नहीं है. वहीं राज निदिमोरू और कृष्णा डीके का स्क्रीनप्ले भी कमाल का है. अगर फिल्म की बात हो और इनका नाम ना हो तो बेईमानी होगी.
म्यूजिक
इस फिल्म में आओ कभी हवेली पर सहित कुल चार गाने हैं. 'कमरिया' आइटम सॉन्ग जबरदस्ती लगता है जिसे नोरा फतेही पर फिल्माया गया है. गानों के टाइटल काफी आकर्षित करने वाले हैं इसके बावजूद कोई भी ऐसा गाना नहीं है जो फिल्म देखने के बाद भी याद रहे.
क्यों देखें/ना देखें
इस साल आपने पीरियड ड्रामा में 'पद्मावत' देखी, बायोपिक में 'संजू' देखी और एक्शन में 'बागी 2'. लेकिन हॉरर कॉमेडी के नाम पर 'नानु की जानू' हुई जो ना तो डरा पाई और ना ही हंसा पाई. हॉरर-कॉमेडी 'गोलमाल रिटर्न' लेकर पिछले साल रोहिट शेट्टी आए जिसे पसंद किया गया लेकिन 'स्त्री' कहानी से लेकर एक्टिंग सहित हर मामले में उससे कई गुना बेहतर है. 'स्त्री' बॉलीवुड में अब तक बनी बेस्ट हॉरर फिल्मों से एक है जो आपको खूब इंटरटेन करेगी. आप इसे फैमिली के साथ देख सकते हैं. लेकिन अगर आप बहुत लॉजिक लगाएंगे तो आपको कई सारी कमियां नज़र आएंगी. कमियों के बार में लिखना थोड़ा रिस्की है क्योंकि इसमें फिल्म का स्पॉयलर भी शामिल है.