स्टार कास्ट: आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, बीजेंद्र काला, सीमा पहवा, शुभांकर त्रिपाठी, अंशुल चौहान गिन्नी, अनमोल बजाज


डायरेक्टर: आर. एस. प्रसन्ना


रेटिंग: 2.5 स्टार


हमारे समाज में सिर्फ सेक्स ही नहीं बल्कि उससे जुड़ी कई ऐसी समस्याएँ हैं जिसके बारे में जानते तो सभी लोग हैं पर उस पर खुलकर बात करने से हिचकिचाते हैं. 'परफॉर्मेंस प्रेशर' भी ऐसी ही एक समस्या है जिससे कभी-कभी कुछ लोगों को जुझना पड़ता है. 'शुभ मंगल सावधान' फिल्म में भी 'इरेक्टल डिसफंक्शन' की परेशानी को एक लव स्टोरी के माध्यम से दिखाया गया है. शायद पहली बार ही है जब बॉलीवुड में ऐसे टैबू सबजेक्ट पर किसी डायरेक्टर ने फिल्म बनाने की सोची है. अच्छी बात ये है कि इस फिल्म में इस समस्या को सिंबोलिक (प्रतीकात्मक) तरीके से दिखाया गया है जो ना तो चीप लगता है और ना ही अश्लील... इस फिल्म को दोनों लीड एक्टर्स ने अपनी शानदार एक्टिंग से देखने लायक बना दिया है.


कहानी -



दिल्ली के नेहरू प्लेस में काम करने वाली सुगंधा ( भूमि पेडनेकर) और मुदित (आयुष्मान खुराना) को प्यार हो जाता है. मुदित शादी का प्रपोजल भेजता और दोनों की शादी तय हो जाती  है. इंगेजमेंट के बाद एक दिन मौका मिलने पर सुगंधा से मिलने मुदित उसके घऱ जाता है और परफॉर्मेंस प्रेशर की वजह से कुछ कर नहीं पाता. इसके बाद सुगंधा को भी इस बारे में पता चल जाता है. शादी के लिए दोनों परिवार हरिद्वार जाते हैं और वहां सभी को मुदित की परेशानी के बारे में पता चल जाता है. दोनों के परिवार वालों का क्या रिएक्शन होता है? क्या दोनों की शादी हो पाती है? क्या कभी मुदित की ये समस्या खत्म हो पाती है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.


एक्टिंग


ये दो महीनों में लगातार भूमि पेडनेकर की दूसरी फिल्म है. इस फिल्म में भूमि ने बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है. एक मध्यवर्गीय परिवार में रहने वाली सुगंधा के हाव भाव को भूमि ने खुद में इस तरह ढ़ाल लिया है कि वो पर्दे पर बहुत ही वास्तविक लगता है. इससे पहले 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' में भी भूमि ने ऐसी ही भूमिका की थी जिसके लिए उन्हें काफी तारीफ मिली थी. इस बार भी भूमि ने अपनी एक्टिंग से दिल जीत लिया है.



आयुष्मान खुराना भी मुदित के रोल में जमे हैं. इससे पहले उनकी फिल्म 'बरेली की बर्फी' रिलीज हुई थी जिसमें वो अपने रोल में कमजोर पड़ गए थे लेकिन इस बार उन्होंने अपनी कसक पूरी कर ली है.


इसके अलावा इस फिल्म के बाकी सभी कैरेक्टर्स में भी ब्रिजेंद्र काला और सीमा पहवा जैसे दमदार एक्टर्स हैं जिन्होंने इस फिल्म को कहीं भी एक्टिंग के मामले में कमजोर नहीं पड़ने दिया है.


खामियां


करीब दो घंटे की इस फिल्म का पहला भाग बहुत ही दिलचस्प है. देखकर मजा आता है. लेकिन इंटरवल के बाद ये फिल्म धीमी पड़ जाती है और क्लाइमैक्स में तो कुछ ऐसी चीजें दिखाई जाती हैं जो गले नहीं उतरतीं. जिस गंभीर मुद्दे को फिल्म में दिखाने की कोशिश की जाती है वो वहां से भटककर कहीं और चली जाती है. यही बात अखरती है.


क्यों देखें


ये बहुत ही इंटरटेनिंग फिल्म है जो एक लव स्टोरी के माध्यम से दिखाती है कि परफॉर्मेंस प्रेशर सिर्फ दिमागी वहम है. ऐसी कोई बीमारी असल में होती नहीं है. इसे इतने अच्छे तरीके से दिखाया गया है कि कुछ भी वल्गर नहीं लगता है. इस वीकेंड पर पॉपकॉर्न के मजे लेते हुए इस फिल्म को देखा जा सकता है.