बर्थडे स्पेशल: सिनेमा से अचानक क्यों गायब हो गया सनी देओल का ढाई किलो का हाथ?
Happy Birthday Sunny Deol: सनी देओल के 62वें जन्मदिन (19 अक्टूबर) के मौके पर इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि सिनेमा की दुनिया से सनी देओल का ढाई किलो का हाथ कहां गायब हो गया? क्या वजह रही कि सनी देओल एक्शन हीरो से कॉमेडी में बदल गए? क्या कारण है कि पर्दे पर गरजने और गुंडो पर बरसने वाला वो दमदार अभिनेता अब कामयाब फिल्मों से दूर सा हो गया है.
Happy Birthday Sunny Deol: 5 अगस्त 1983 ये वो तारीख थी जिस दिन धर्मेंद्र के बड़े बेटे अजय सिंह देओल यानि सनी देओल ने हिंदी सिनेमा में डेब्यू किया था. सिनेमा की तरफ सनी देओल का पहला कदम बेहद कामयाब रहा और उनकी फिल्म ‘बेताब’ सुपरहिट साबित हुई. फिल्म में उनके साथ अमृता सिंह ने भी डेब्यू किया था. फिल्म में सनी देओल के अभिनय से लेकर उनकी दमदार आवाज़ और बॉडी की भी चर्चा हुई थी. सनी देओल के 62वें जन्मदिन (19 अक्टूबर) के मौके पर इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि सिनेमा की दुनिया से सनी देओल का ढाई किलो का हाथ कहां गायब हो गया? क्या वजह रही कि सनी देओल एक्शन हीरो से कॉमेडी में बदल गए? क्या कारण है कि पर्दे पर गरजने और गुंडो पर बरसने वाला वो दमदार अभिनेता अब कामयाब फिल्मों से दूर सा हो गया है.
‘बेताब’ से डेब्यू तो ग्रैंड मिला लेकिन...
धर्मेंद्र ने अपने बेटे को ग्रैंड डेब्यू तो दिला दिया था, लेकिन आगे उनका सफर इतना आसान नहीं होने वाला था. ‘बेताब’ के बाद सनी देओल ने लगातार कई फिल्में कीं. सनी (1984), मंज़िल मंज़िल (1984), सोहनी महिवाल (1984), अर्जुन (1985), ज़बरदस्त (1985), सल्तनत (1986), यतीम (1988), त्रिदेव (1989), और क्रोध (1990) जैसी फिल्में कुछ खास नहीं कर पाईं. ये वो फिल्में रहीं जिसे लोगों ने देखा और भूल गए.
हालांकि अब तक सनी देओल फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच अपनी एक जगह बना चुके थे. लोग उनको एक रोमांटिक-एक्शन हीरो के तौर पर देख रहे थे. एक ऐसा हीरो जो अपनी प्रेमिका के लिए लड़ता है और आखिर में जीतकर उसे अपना बना लेता है. तभी साल 1990 में सनी देओल ने निर्देशक राज कुमार संतोषी की फिल्म ‘घायल’ की. इस फिल्म के बाद उन्होंने कई सालों तक पीछे मुड़कर नहीं देखा.
उतारकर फेंक दो ये वर्दी और पहन लो बलवंतराय का पट्टा अपने गले में यू बा**र्ड. (घायल, 1990)
1990 का दशक सनी देओल के करियर का गोल्डन दौर कहा जा सकता है. इन 10 सालों में उन्होंने कई यादगार फिल्में दी. जब सनी देओल सिनेमा की दुनिया का बड़ा नाम बन चुके थे तो उस वक्त आमिर खान, सलमान खान और शाहरुख खान जैसे हीरो फिल्मी दुनिया में दस्तक ही दे रहे थे. आमिर खान ने फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ से 1988 में डेब्यू किया. इस वक्त तक सनी देओल करीब 10 फिल्में कर चुके थे. फिर साल 1989 में फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के साथ सलमान खान आए और ‘दीवाना’ फिल्म के साथ शाहरुख खान ने साल 1992 में फिल्मों में एंट्री ली.
आज के दौर पर नज़र डाले तो बॉलीवुड पर इन्हीं तीन ‘खान्स’ का दबदबा है. सनी देओल अब भी फिल्में कर रहे हैं, लेकिन उनकी फिल्में कितनी चलती हैं ये हर कोई जानता है. 90 के दशक में जिस ढाई किलो के हाथ के आगे कोई भी हीरो खड़ा नहीं हो पाता था वो आज एक अदद हिट फिल्म के लिए भी तरस जाता है. अब दौर ऐसा आ गया है कि सनी देओल को अपनी फिल्म में सलमान खान से कैमियो करवाना पड़ रहा है.
आमिर से तीन बार टकराए सनी
बॉक्स ऑफिस पर आमिर खान और सनी देओल का आमना सामना एक दो बार नहीं बल्कि तीन बार हुआ. पहली बार दिल और घायल एक दूसरे के सामने थी. दूसरी बार घातक और राजा हिंदुस्तानी की पर्दे पर टक्कर हुई तो तीसरा बार गदर और लगान एक ही दिन बड़े परदे पर रिलीज़ हुई. लेकिन खास बात ये है कि तीनों दफा सनी देओल और आमिर की टक्कर में जीत दोनों की ही हुई.
90 के बाद हिट तो साल 2000 के बाद फ्लॉप
साल 1990 में सनी देओल की कामयाबी का जो ग्राफ तेज़ी से ऊपर की ओर जा रहा था अचानक वो सन् 2000 के बाद धीरे धीरे नीचे गिरने लगा. साल 1990 से 2000 के बीच सनी देओल का जादू दर्शकों पर सर चढ़कर बोल रहा था. इस दौरान उन्होंने 'घायल', 'नरसिम्हा', 'विश्वात्मा', 'दामिनी', 'जीत', 'घातक', 'ज़िद्दी', 'बॉर्डर', 'सलाखें', 'अर्जुन पंडित' और 'फर्ज़' जैसी कई यादगार और हिट फिल्मों में काम किया. फिल्म 'घायल' और 'दामिनी' में उनके अभिनय को इतना पसंद किया गया कि उन्हें फिल्मफेयर के साथ-साथ नेशनल अवॉर्ड्स से भी नवाज़ा गया.
चड्ढा, समझाओ इसे, समझाओ... ऐसे ख़िलौने बाज़ार में बहुत बिकते हैं, मगर इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए न, वो दुनिया के किसी बाज़ार में नहीं बिकता, मर्द उसे लेकर पैदा होता है. और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है न तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है. (दामिनी, 1993)
एक दौर था जब इस तरह के तगड़े डायलॉग मारकर सनी देओल थिएटर में तालियां बजवाते थे, लेकिन बाद के सालों में उसी सनी देओल का ढाई किलो का हाथ मानों हल्का ही होता चला गया. सन् 2000 के बाद सनी देओल ने फिल्म ‘गदर: एक प्रेम कथा’ के अलावा कोई ऐसी फिल्म नहीं की जिसे सालों तक याद रखा जा सके. ‘गदर’ उनके करियर की एक ऐसी फिल्म साबित हुई जो ताउम्र उनके साथ रहेगी और सनी देओल का ज़िक्र इस फिल्म के बिना अधूरा रहेगा. इस फिल्म में सनी देओल ने एक ऐसे पंजाबी शख्स का किरदार निभाया था जिसे पाकिस्तान की मुस्लिम लड़की से प्यार हो जाता है. फिल्म हर प्रकार से यादगार रही. गाने, डायलॉग, अभिनय और निर्देशन फिल्म का सब कुछ गज़ब का था.
अशरफ अली! आपका पाकिस्तान ज़िंदाबाद है, इससे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन हमारा हिंदुस्तान ज़िंदाबाद है, ज़िंदाबाद था और ज़िंदाबाद रहेगा! बस बहुत हो गया. (गदर: एक प्रेम कथा, 2001)
एक वक्त पर जबरदस्त एक्शन और दमदार डायलॉग के मालिक रहे सनी देओल आज कॉमेडी फिल्में ही करते हैं. उनका ऐक्शन आज लोगों को हंसाता है तालियां बजाने पर मजूबर नहीं करता. पिछले कई सालों से सनी देओल फैमिली फिल्ममेकर बनकर रह गए हैं. ‘यमला पगला दीवाना’ सीरीज़ की दो फिल्में ठीक ठाक बिज़नेस कर गईं लेकिन तीसरी फिल्म कब आई और कब गई किसी को पता तक नहीं चला.