सुशांत मामले की CBI जांच: क्या मुंबई पुलिस सिर्फ चोर उचक्कों और पाकिटमारों को पकड़ने के लिये बची है?
मुंबई पुलिस से उसका ग्लैमर, उसका रूतबा, उसकी ताकत छिन सी गई है. अब मुंबई पुलिस के हाथ आये ज्यादातर हाई प्रोफाईल मामले सीबीआई को सौंप दिये जाते हैं.
मुंबई पुलिस की पहचान देश की एक तेज तर्रार पुलिस फोर्स की रही है. चाहे अंडरवर्ल्ड को खत्म करने की मुहीम हो या आतंकवादियों के साथ संघर्ष, मुंबई पुलिस का इतिहास गौरवशाली रहा है. किसी जमाने में मुंबई पुलिस की तुलना स्कॉटलैंड यार्ड से की जाती थी...लेकिन हाल के वक्त में मुंबई पुलिस की हालत एकदम विपरीत हो गई है. मुंबई पुलिस से उसका ग्लैमर, उसका रूतबा, उसकी ताकत छिन सी गई है. अब मुंबई पुलिस के हाथ आये ज्यादातर हाई प्रोफाईल मामले सीबीआई को सौंप दिये जाते हैं.
बीते 10 सालों की बात करें तो मुंबई पुलिस के पास कई ऐसे मामले आये जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए. पुलिस ने उनपर अपनी तहकीकात भी शुरू की. आरोपियों को भी पकड़ा लेकिन कुछ वक्त बाद ही केस सीबीआई को ट्रांस्फर कर दिया गया और मुंबई पुलिस हाथ मलते रह गई.
देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में बीजेपी से विपक्ष के नेता हैं और हाल ही इन्होंने सुशांत सिंह मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की...लेकिन पिछली सरकार में जब ये खुद मुख्यमंत्री थे तब भी इन्होने मुंबई पुलिस से कई हाई प्रोफाईल मामले छीनकर सीबीआई को सौंप दिये थे.
शीना बोरा केस
साल 2015 में चर्चित हुआ शीना बोरा मर्डर केस इसकी एक बहुत बडी मिसाल है. इस केस का खुलासा मुंबई पुलिस ने किया था. इसमें मीडिया कंपनी के मालिक पीटर मुखर्जी की पत्नी इंद्राणी को मुंबई पुलिस ने अपनी बेटी शीना की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया. साजिश में शामिल होने के आरोप में इंद्राणी के ड्राईवर और उसके एक पूर्व पति को भी मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मुंबई पुलिस की जांच आगे बढ ही रही थी कि एक दिन अचानक फडणवीस सरकार ने जांच उठाकर सीधे सीबीआई को सुपुर्द कर दी. कहा गया कि न्याय के हित को ध्यान में रखते हुए ये फैसला किया गया. सवाल उठता है कि क्या सरकार को अपनी ही पुलिस पर भरोसा नहीं था. सरकार को क्यों लगा कि उसकी अपनी मुंबई पुलिस इस मामले से न्याय नहीं कर सकेगी और सीबीआई कर देगी.
शीना बोरा ही नहीं अंडरवर्लड से जुडे मामलों में भी फडणवीस सरकार को अपनी पुलिस पर भरोसा नहीं था. साल 2015 में ही जब अंडरवर्लड छोटा राजन को इंडोनेशिया से डीपोर्ट करके भारत लाया गया तो उसके खिलाफ महाराष्ट्र में दर्ज करीब 70 मामले सीबीआई को सौंप दिये गये. ये मामले हत्या, हत्या की कोशिश और जबरन उगाही से जुडे हुए थे. सवाल उठता है कि जिस मुंबई पुलिस को अंडरवर्लड से लडने का अच्छा-खासा अनुभव रहा है, जिसने 90 के दशक में मुंबई अंडरवर्लड के खिलाफ मुहीम चलाकर उसे खत्म किया, उस मुंबई पुलिस को ऐसे वक्त में फडणवीस ने ठेंगा क्यों दिखाया जब गुनाह की दुनिया का एक मोस्ट वांटेड आरोपी उनके हाथ लगा था.
पत्रकार जे डे हत्याकांड
साल 2011 में मिड डे अखबार के पत्रकार जे डे की हत्या कर दी गई थी. उस मामले की जांच मुंबई पुलिस के पवई थाने और क्राईम ब्रांच ने शुरू की थी. कई आरोपियों की धरपकड की गई लेकिन यहां भी मुंबई पुलिस के साथ वही हुआ जो सारे हाई प्रोफाईल मामलों के वक्त होता है. जे डे हत्याकांड की जांच भी सीबीआई को सौंप दी गई. ये जांच 2016 में सौंपी गई जब देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री थे.
एक के बाद एक इस तरह से हाई प्रोफाईल मामलों की जांच अपने हाथ से निकल कर सीबीआई के पास जाते देख मुंबई पुलिस के मनोबल पर बुरा असर पडा है. मुंबई पुलिस के रिटायर्ड एसीपी शमशेर पठान जो अंडरवर्लड डॉन छोटा शकील को पकड कर चर्चित हुए थे सवाल उठाते हैं – मुंबई पुलिस क्या सिर्फ चोर, उचक्कों, झपटमारों और पाकिटमारों को पकडने के लिये ही बची है. बडे बडे मामले सीबीआई को सौंप दिया जाना मुंबई पुलिस की काबिलियत पर सवाल है.
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मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर और सीबीआई के ज्वाइंट डाईरेक्टर डी.शिवानंदन का नजरिया अलग है. शिवानंदन का कहना है कि सीबीआई एक विशेष केंद्रीय एजेंसी है जिसका काम सिर्फ अपराधों की जांच करना ही है. बाकी पुलिस फोर्स की तरह सीबीआई को कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी या वीआईपी को सुरक्षा मुहैया कराने जैसी जिम्मेदारियां नहीं है. सीबीआई के पास आपराधिक मामलों की जांच के बेहतर संसाधन है. यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में सीबीआई आरोपी को सजा दिला पाती है. हर बडे मामले में इन्ही कारणों से सीबीआई जांच की मांग होती है.
राज्य पुलिस की तुलना में भले ही सीबीआई ज्यादा भरोसेमंद नजर आती हो लेकिन इतिहास पर नजर डालें तो सीबीआई का दामन भी हमेशा पाक साफ नहीं रहा है. सीबीआई पर भी जांच में गडबडी करने, भ्रष्टाचार और सत्ताधारी राजनेताओं की कठपुतली बनकर काम करने का आरोप लगता रहा है. आरूषि मर्डर केस में सीबीआई ने जो गफलत की वो सभी ने देखी. पिछले साल सीबीआई के आला अफसरों के बीच का आपसी झगडा भी खुलकर सामने आ गया. आपको याद होगा कि साल 2013 में कोयला घोटाले से जुडे मामले की सुनवाई करते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में कैद तोते की उपाधि दी थी जो कि अपने मालिक यानी सरकार की बोली बोलता है.
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बहरहाल अब सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का मामला भी सीबीआई के पास पहुंच गया है. अब मुंबई पुलिस को उम्मीद बची है सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही. अब सुप्रीम कोर्ट ही सीबीआई जांच खारिज करके फिरसे जांच मुंबई पुलिस के सुपुर्द कर सकती है.