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फिल्म में सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रवाद को दिखाया गया : तापसी पन्नू
बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू ने कहा कि उनकी आगामी फिल्म मुल्क 'सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रवाद' को दर्शाती है और जिनको इस फिल्म से तकलीफ है उन्हें अपनी सोच को बदलने की, दिमाग को खोलने की जरूरत है.
नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू ने कहा कि उनकी आगामी फिल्म मुल्क 'सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रवाद' को दर्शाती है और जिनको इस फिल्म से तकलीफ है उन्हें अपनी सोच को बदलने की, दिमाग को खोलने की जरूरत है.
तापसी ने कहा, "फिल्म में सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रवाद को दिखाया गया है और अगर किसी को इस फिल्म से तकलीफ है तो शायद उसका दिमाग इतना खुला नहीं है कि वह दूसरे पक्ष के विचारों को भी समझ सके. जिस किसी को भी इससे समस्या है, वह समस्या दरअसल उसके दिमाग में है."
तापसी ने कहा, "मैं समझती हूं कि इस फिल्म में हम जो कहना चाह रहे हैं, उसे देखने के लिए आपको खुली मानसिकता की आवश्यकता होगी. 'मुल्क' में हमने किसी समुदाय की आलोचना नहीं की है और ना ही हमने कहा कि कोई समुदाय अच्छा या बुरा है. हमने बस सच्चाई दिखाई है और निर्णय दर्शकों पर छोड़ दिया है."
यह पूछे जाने पर कि यह फिल्म कैसे लोगों की मानसिकता बदलने में सहयोग देगी, तापसी ने कहा कि उनका उद्देश्य उपदेश देना नहीं है. उन्होंने कहा, "समुदाय, धर्म और जाति को लेकर काफी पूर्वाग्रह हैं. इस फिल्म में हमने दर्शाया है कि यह पूर्वाग्रह गलत है, कैसे हमारे दिमाग में कई सालों के दौरान भरे गए इन पूर्वाग्रहों ने क्या किया है और कैसे इसका कुछ लोगों को फायदा मिलता है. कई वर्षो से हमें बताया जा रहा है कि कुछ समुदायों को विशिष्ट तरीके से देखा जाना चाहिए. तो, मुझे लगता है कि हमें इसके पीछे के तर्क पर सवाल उठाना चाहिए. मुल्क इस तर्क पर और यह क्यों शुरू हुआ, इस पर सवाल उठाती है और इसे तुरंत बदलने की जरूरत बताती है."
तापसी ने कहा, "हमें उम्मीद है कि इस फिल्म के बाद लोग आपस में इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे, इससे जुड़े सवालों पर बात करेंगे और उत्तर खोजने का प्रयास करेंगे. यह हम और आप ही हैं जो बदलाव ला सकते हैं. कोई तीसरा हमारी मदद नहीं कर सकता." तापसी ने सिनेमा में कलात्मक स्वतंत्रता पर कहा, "सिनेमा भी एक प्रकार की कला है और इसे भी अभिव्यक्ति की आजादी चाहिए. यह जिम्मेदारी का काम है लेकिन जब हम इसे करते हैं तो हमें मीडिया और जनता का समर्थन मिलना चाहिए क्योंकि हम समाज में मौजूद मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए सिनेमा को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ताकि निर्देशक और लेखक जो महसूस करत हैं, उसे पर्दे पर दर्शा पाएं. फिर यह आपका निर्णय है कि आप उसे वास्तव में देखना चाहते हैं या नहीं. यह एक लोकतांत्रिक मुल्क है और लोग जो चाहे वह कर सकते हैं."
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