The Tashkent Files: विवेक अग्निहोत्री फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' लेकर आ रहे हैं. ये फिल्म देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध मौत पर आधारित है. इस फिल्म में पूर्व पीएम की संदिग्ध मौत को लेकर कई सवाल खड़े किए गए हैं.


ट्रेलर रिलीज के साथ ही फिल्म की रिलीज की टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि ये फिल्म बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए  बनाया गया है. फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में इसका जवाब देते हुए कहा, ''अगर ऐसी मंशा होती तो मैं फिल्म इलेक्शन से पहले रिलीज करता. चुनाव 11 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं तो मैं 12 अप्रैल को फिल्म क्यों रिलीज करता. हमारी फिल्म के साथ कोई प्रॉब्लम नहीं है.'' आगे उन्होंने कहा, ''शास्त्री जी कांग्रेस के ही पीएम थे. अगर उनकी जांच की मांग उठती है. लोग कहते हैं की जांच होनी चाहिए तो कांग्रेस को क्यों डर लगना चाहिए. वो तो उनके ही पीएम थे.''

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ऐसे सभी आरोपों को खारिज करते हुए विवेक ने कहा, ''फिल्म देखिए पहले. फिल्म भारत के बारे में है. शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे. ये फिल्म बीजेपी या कांग्रेस के बारे में नहीं है. जो सत्य 53 साल से नहीं आया वो भारत का सत्य है.''

विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म के बारे में बात करते हुए कहा कि ये एक मर्डर मिस्ट्री है. ये एक ऐसी  पॉलिटिकल मिस्ट्री है जिसका जवाब जानबूझकर छुपाया गया. उन्होंने कहा, ''अगर आपको अपने ही किसी बुजुर्ग का पोस्टमार्टम ना करने दिया जाए तो इस पर सवाल उठते हैं. उनके परिवार के सदस्य इसकी मांग कर रहे हैं. लेकिन नहीं हो रहा. कौन है जो इस इन्वेस्टिगेशन को रोकना चाहता है? मुझे लगा कि जब ऐसे सत्य को जानने का काम बहुत सारे सीरियर जर्नलिस्ट नहीं कर रहे हैं तो इस पर फिल्ममेकर को काम करना चाहिए.''

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इस दौरान पत्रकारों को भी विवेक अग्निहोत्री ने निशाने पर लिया. उन्होंने कहा, ''आजादी की लड़ाई में पत्रकारों की अहम भूमिका थी. पत्रकारों ने इमरजेंसी के दौरान लड़ाई लड़ी थी. बोफोर्स भी पत्रकारों के कारण ही सामने आया. फिर क्या कारण है कि पत्रकारों को लोग गालियां देते हैं. भारत के कुछ पत्रकार महा करप्ट हैं, बोक्रर बन चुके हैं, ये लोग दलाली करते हैं. ऐसे 20-25 ही होंगे जो आर्म्स डील जैसे चीजों में दलाली करते हैं. हजारों और लाखों लोग ईमानदार हैं, मेहनत करने वाले पत्रकार हैं. जो गर्मी में धूप में पसीना बहाते हुए घूमते हैं, जिन्हें 15-20 हजार की सैलरी मिलती है, ऐसे ईमानदार पत्रकारों को भी गालियां सुननी पड़ती हैं. ये फिल्म ऐसे पत्रकारों को डेडिकेटेड है.''

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ताशकंद में ही लाल बहादुर शास्त्री की मौत हुई. उस जगह के बारे में बात करते हुए विवेक ने बताया, ''ताशकंद में सबका ये मानना है कि उनकी हत्या की गई थी. वहां शास्त्री जी उतने ही पॉपुलर हैं जितना यहां महात्मा गांधी पॉपुलर हैं. वहां पर उनके नाम से सड़के हैं. वहां पर आप घूमेंगे तो लोग यही कहते हैं कि उनका मर्डर हुआ था.''



क्या कहता है ट्रेलर

फिल्म के ट्रेलर की शुरुआत ही इस सवाल से होती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद जाते हैं और वहां उनकी संदिग्ध हालत में मौत हो जाती है. इस संदिग्ध मौत को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं लेकिन तमाम सवालों के बावजूद उनकी मौत की जांच के लिए एक कमेटी तक नहीं बनाई गई. ट्रेलर की शुरुआत से अंत तक सभी कलाकार केवल एक ही सवाल पूछते नजर आ रहे हैं कि आखिर उनकी मौत कैसे हुई?

ये फिल्म 12 अप्रैल यानी इसी शुक्रवार को रिलीज करने की योजना है, हालांकि अब इस फिल्म की रिलीज पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं. बुधवार को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों के दौरान कोई भी राजनीतिक या ऐसी फिल्म जो कि लोगों को प्रभावित कर सकती है नहीं रिलीज की जाएगी. हालांकि इस फिल्म को लेकर चुनाव आयोग की ओर से अभी स्थिति क्लियर नहीं की गई है.