मुंबई: 'नन्हा मुन्ना राही हूं', 'मेरे देश की धरती' जैसे देशभक्ति और 'जिंदगी की ना टूटे लड़ी', 'तुझ संग प्रीत लगाई सजना' जैसे रोमांटिक गीत दे चुके मशहूर गीतकार और शायर नक्श लायलपुरी ने मुंबई में रविवार को दुनिया से छुट्टी ले ली. हां, उनके रचे गीत हमेशा रहेंगे, कभी अलविदा नहीं कहेंगे.
दुनिया में नक्श लायलपुरी के नाम से पहचाने जाने वाले प्रख्यात उर्दू शायर और गीतकार जसवंत राय शर्मा 89 साल के थे. उनके बेटे ने उनके निधन की जानकारी दी.
पंजाब के लायलपुर में 24 फरवरी, 1928 को जन्मे लायलपुरी इतने बड़े शायर और गीतकार बनेंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं था. खुद उन्हें भी नहीं. लायलपुर अब पाकिस्तान का हिस्सा है. उनके वालिद मोहतरम जगन्नाथ ने उनका नाम जसवंत राय रखा था. शायर बनने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया.
साहित्य में उनकी दिलचस्पी उनके स्कूल के दिनों में ही दिख गई, जब उनकी स्कूल टीचर साल के अंत में उनकी कॉपी इसलिए खरीदती थीं, क्योंकि उनमें उनकी कविताएं लिखी होती थीं.
साल 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया. विभाजन के दर्द को उन्होंने अपनी आंखों से देखा और यह उनकी शायरी में बखूबी नजर आया-
"हम ने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमां होकर
क्यूं न इंसां से मोहब्बत करें इंसां होकर"
साल 1940 के दशक में हिंदी सिनेमा में करियर बनाने के लिए नक्श मुंबई पहुंचे थे. अपने संघर्ष के शुरुआती दिनों में उन्होंने दैनिक जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ समय डाक विभाग में भी काम किया था.
हालांकि, उन्हें गीतकार के रूप में पहला मौका 1952 में मिला था, लेकिन 1970 के दशक के प्रारंभ तक उन्हें खास सफलता नहीं मिल पाई. बाद में उन्होंने कई शीर्ष फिल्म निर्देशकों, संगीत निर्देशकों और गायकों के साथ काम किया और सुमधुर, रूमानी और भावनात्मक गीत लिखे, जो लाखों दिलों को छू गया.
लायलपुरी के लिख कुछ सर्वश्रेष्ठ गीतों में 'मैं तो हर मोड़ पर', 'ना जाने क्या हुआ, जो तूने छू लिया', 'उल्फत में जमाने की हर रस्म को ठुकरा' और 'दो दीवाने शहर में' शामिल हैं.
बाद के दिनों में गीतों में सतही बातें शामिल करने की मांग से दुखी लायलपुरी ने 1990 के दशक में बॉलीवुड से संन्यास ले लिया और टेलीविजन के लिए गीत लिखने लगे.
उन्होंने 2005-6 में संक्षिप्त समय के लिए फिल्मों में वापसी की थी और नौशाद के साथ 'ताजमहल' और खय्याम के साथ 'यात्रा' जैसी फिल्मों के लिए गीत लिखे थे.
नक्श लायलपुरी कहते हैं कि गीतकार के रूप में उन्हें बुलंदी बी.आर. इशारा की फिल्म 'चेतना' से मिली और उसमें उनकी नज्म 'मैं तो हर मोड़ पर तुमको दूंगा सदा' को अधिक सराहा गया.
नक्श लायलपुरी के फिल्मी गानों की बहुत दिनों तक धूम रही. उन्होंने जयदेव, खैय्याम, मदन मोहन और रोशन के साथ खूब काम किया, लेकिन मदन मोहन से काफी प्रभावित थे. उनके गीतों को सभी ने सराहा.
पिछले कई सालो से वह मुंबई के ओशिवारा में एक गुमनाम जिंदगी बिता रहे थे. पिछले दिनों उनकी पुस्तक 'आंगन आंगन बरसे गीत' उर्दू में प्रकाशित हुई थी. वह पिछले 50 से भी ज्यादा बरसों से हिंदी फिल्मों में उर्दू के गीत लिखते रहे थे.
हाल ही में नक्श लायलपुरी के फिल्म गीतों का एक संकलन आया है- 'आंगन-आंगन बरसे गीत'. यह किताब उर्दू में है. इसे हिंदी में भी रूपांतरित किया गया है.
नक्श लायलपुरी की शायरी में जुबां की मिठास, एहसास की शिद्दत और इजहार का दिलकश अंदाज मिलता है.
वह दुनिया से ओझल हो गए, लेकिन अपनी खूबसूरत शायरी और दिलकश गीतों के रूप में हमारे बीच हमेशा बने रहेंगे. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!