Ujda Chaman Movie Review: 'उजड़ा चमन' से 'बाल-बाल' बचें
Ujda Chaman Movie Review: 'उजड़ा चमन' फिल्म के नाम से ही जाहिर है कि ये गंजेपन पर बनी है और अपने विषय को लेकर काफी चर्चा में है. इस कॉमेडी फिल्म को देखने की सोच रहे हैं तो पहले रिव्यू पढ़ लें.
स्टारकास्ट: सनी सिंह, करिश्मा शर्मा, मानवी गागरू, सौरव शुक्ला, शारीब हाशमी, ऐश्वर्या सखुजा
डायरेक्टर: अभिषेक पाठक
रेटिंग: **
दिक्कत गंजे होने में नहीं बल्कि कोई गंजा कहे तो उससे चिढ़ने में है. परेशानी टकला होने में नहीं कोई आपको टकला कहकर बुला दे तो खीझ जाने में है. जब तक आप खुद अपने रंग, ढंग को स्वीकार नहीं करेंगे, लोग कैसे करेंगे. 'उजड़ा चमन' फिल्म यही सीख देती है. इसी बात को दो घंटे की भारी-भरकम कॉमेडी के जरिए समझाने की कोशिश की गई है.
बॉलीवुड फिल्में तो खुद ही बालों को हैंडसम होने का मापदंड दिखाती आई हैं और इसी वजह से गंजेपन पर बन रही इस इस फिल्म के विषय को बोल्ड माना जा रहा है. हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने काफी समय से इस पर कोई फिल्म भी नहीं देखी है और यही वजह है कि ये फिल्म काफी चर्चा बटोर रही है.
कहानी
इसमें दिल्ली के प्रोफेसर चमन कोहली की कहानी दिखाई गई है जिसके कम बाल हैं. इस वजह से वो काफी परेशान रहता है. फिल्म दिखाती है कि इस वजह से ना तो लड़कियां उससे दोस्ती करती हैं और शादी होने में उसे बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उसका एक ही ख्वाब है कि उसकी बीवी खूबसूरत हो, लेकिन जब खुद उसके बाल नहीं हैं तो ऐसा कैसे संभव है. क्या वो अपना इकलौता ख्वाब पूरा कर पाता है? अगर हां तो कैसे और अगर नहीं तो क्यों? यही कहानी है.
डायरेक्शन/स्क्रिप्ट
इसे अभिषेक पाठक ने डायरेक्ट किया है और इसकी कहानी राज बी. शेट्टी ने लिखी है. ये कन्नड़ फिल्म Ondu Motteya Kathe का हिंदी रिमेक है. कन्नड में इस फिल्म को राज बी. शेट्टी ने ही डायरेक्ट किया था. फिल्म की कहानी के साथ परेशानी ये है कि इसमें बालों को सीधे लड़कियों से जोड़कर दिखाया गया है. फिल्म का मुख्य अभिनेता अपने बालों की वजह से कम बल्कि लड़की ना मिलने की वजह से फ्रस्टेशन में ज्यादा नज़र आता है.
यहां कहानी लिखने वाले को ये तो पता है कि गंजेपन को मुद्दा बनाना है लेकिन उसे खत्म कहां करना है ये नहीं पता. किसी की परेशानी दिखानी है, लव स्टोरी में उलझना है, कॉमेडी करनी है या फिर सोशल मैसेज देना है, यहां कहानीकार को बहुत कन्फ्यूजन है.
डायरेक्टर अभिषेक पाठक तो यहां बहुत कन्फ्यूज दिखे हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ उन्होंने भूमिका बनाने में खत्म कर दिया है जिसमें थोड़ी बहुत हंसी आती है. उसके बाद सेकेंड हाफ में उन्हें भी नहीं पता कि क्या दिखाना है. फिल्म अचानक बहुत गंभीर हो जाती है और भारी भरकम लाइनें सुनने को मिलती हैं. फिल्म देखते वक्त कई बार काफी बोरियत होती है और लगता है कि अब ये खत्म हो जानी चाहिए.
एक्टिंग
फिल्म के मुख्य किरदार की भूमिका में सनी सिंह हैं. उन्हें पहले हम प्यार का पंचनामा और सोनू के टीटू की स्वीटी में देख चुके हैं. उनकी तारीफ करनी होगी उन्होंने ऐसे विषय पर बन रही फिल्म में काम करने की सोची. अपने किरदार में वो फिट बैठे हैं. पूरी फिल्म सनी सिंह के कंधों पर ही है जो ठीकठाक अभिनय कर जाते हैं.
'द फैमिली मैन' से पॉपुलर हुए शारीब हाशमी भी इसमें दिखे हैं. उन्हें देखना मजेदार है लेकिन जब कहानी ढीली हो तो कोई एक्टर बेहतर एक्टिंग करके भी उसे कितना ही संभालेगा.
इसमें करिश्मा शर्मा और मानवी गागरू भी हैं. करिश्मा शर्मा के पास ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं है. वो कॉलेज स्टूडेंट की भूमिका में हैंं. वो स्क्रीन पर कुछ देर के लिए आती हैं और फिर चली जाती हैं.
मानवी गागरू ने अपनी भूमिका को अच्छे से निभाया है. मानवी को TVF ट्रिपलिंग, TVF पिचर्स और Four More Shots Please से पॉपुलैरिटी मिली है और इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी पहचान छोड़ दी है.
सौरभ शुक्ला भी फिल्म में कुछ देर के लिए हैं लेकिन वो भी जमते नहीं है.
क्यों देखें/ना देखें
टॉपिक नया है तो आप इसे देख सकते हैं लेकिन इस कॉमेडी फिल्म को देखने वक्त हंसी नहीं आती. इसमें मजेदार पंच लाइन्स भी नहीं हैं. फिल्म गंजेपन से शुरु होकर इमोशनल फैमिली ड्रामा बन जाती है. इसके बारे में यही कह सकते हैं कि आप इससे 'बाल बाल' बचें.