Film On Partition And Riots: ज़िंदगी में कई हादसे इनसान चाहकर भी भुला नहीं पाता. ऐसा ही एक बड़ा और दर्दनाक हादसा हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बंटवारा भी है. उस वक्त जिन लोगों ने भी बंटवारे का दंश झेला वो ता उम्र उन यादों से कभी जुदा नहीं हो सके. विभाजन के दौरान दोनों तरफ दंगे हुए और हज़ारों मासूमों की जान गई. इस त्रासदी पर हिन्दी सिनेमा ने कई फिल्मों का निर्माण किया है. इस विषय पर बनी फिल्मों में पिंजर भी एक है. इस फिल्म का निर्माण चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने 2003 में उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी और संजय सूरी जैसे कलाकारों के साथ किया था. फिल्म फेमस लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर पर आधारित है.


कैसी है फिल्म की कहानी?


फिल्म की कहानी 1947 के वक्त की है. पुरो (उर्मिला मांतोडकर) की कहानी है जो एक नॉर्मल ज़िंदगी जी रही है, जिसकी बहुत जल्द शादी होने वाली है. तभी खानदानी दुश्मनी के चलते रशीद(मनोज बाजपेयी) पुरो का अपहरण कर लेता है और जब पुरो किसी तरह रशीद की कैद से भागकर अपने घर पहुंचती है तो बदनामी के डर से उसका परिवार उसे स्वीकार नहीं करता. इसी बीच देश का विभाजन हो जाता है. रामचंद (संजय सूरी) से पुरो को लाजो (संदाली सिन्हा) के बारे में पता चलता है और वह उसे बचाकर हिंदुस्तान भिजवा देती है और खुद खुशी से रशीद के साथ पाकिस्तान में रहना स्वीकार करती है.


इस फिल्म के दृश्यों के माध्यम के विभाजन और हिन्दू-मुस्लिम भेद को दिखाने की कोशिश की गई है. जैसे वह दृश्य जब पुरो खेत से एक बच्चे को उठा लाती है और वो छह महीने तक बच्चे को पालती है, लेकिन जैसे ही गांव के हिन्दू समुदाय को इस बात की भनक लगती है तो वह फौरन रशीद से बच्चे को वापस ले लेते हैं. इसके अलावा एक सीन है जिसमें बलवाइयों द्वारा लड़कियों को अगवा करते हुए दिखाया गया है.


आपको बता दें कि इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म कैटगरी में नेशनल अवॉर्ड से नवाज़ा गया था. फिल्म में शानदार अभिनय के लिए मनोज बाजपेयी को स्पेशल ज्यूरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. सत्या के बाद मनोज का ये दूसरे नेशनल अवॉर्ड था. इस फिल्म को समीक्षकों ने खूब सराहा था.


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