...जब विनोद खन्ना करियर के शिखर पर थे, तब आध्यात्म से ऐसे जुड़े कि माली बन गए
मुंबई: दुनिया एक ऐसी हकीकत है, जहां से हर बड़ी से बड़ी शख्सियत को एक दिन जाना पड़ता है, लेकिन कुछ हस्तियां ऐसी होती हैं कि जिनका जाना हरेक को ग़म में डाल जाता है... विनोद खन्ना भी उन्हीं हस्तियों में हैं, जैसे ही उनके निधन की खबर आई... बॉलीवुड में मातम पसर गया. कला प्रेमियों और फिल्म के शौकीनों की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई.. हर तरफ ग़म ही ग़म... पूरे माहौल में शोक ही शोक...
विनोद खन्ना की अभी उम्र ही क्या थी... महज़ 70 साल में रुपहले पर्दे के इसे बादशाह ने दुनिया को अलविदा कह दिया... लेकिन कला, फिल्म और बॉलीवुड की दुनिया को जो दिया.. अगर हम उसे समेट सकें, सजो सकें तो ये अगली नस्लों के लिए एक बड़ा ख़ज़ाना, ऐसैट है.
विनोद खन्ना ने 70 के दशक में फिल्मी दुनिया में कदम रखा... और 1968 से 2013 के बीच उन्होंने 141 फिल्म दीं. जिसमें उनके किरदार, डायलॉग की अदाएगी और उनकी खूबसूरती हरेक की कशिश की वजह रही.
70 और 80 के दशक में जब अमिताभ बच्चन की तूती बोलती थी, तब विनोद खन्ना को उनके मुकाबले का अदाकार माना जाता था. फिल्मों में उनकी एंट्री काफी धमाकेदार रही. सुनील दत्त ने उन्हें फिल्म 'मन का मीत' में बतौर खलनायक एंट्री दिलाई... तब हरेक की जुबान पर ये चर्चा चल पड़ी कि आखिर कोई विलेन भी इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है. मेरा गांव मेरा देश से वे स्टार बने.
विनोद खन्ना की सबसे बड़ी बात ये थी कि जब वो अपने फिल्म करियर के टॉप पर थे तो सब कुछ को छोड़कर वो ओशो से प्रेरणा से आध्यात्म की दुनिया में लीन हो गए..अमेरिका चले गए, आध्यात्मिक दुनिया में ऐसे डूबे कि... और माली बन गए... और बॉलीवुड की दुनिया से जैसे दूरी बना ली हो...लेकिन ये सच है कि उन्होंने बॉलीवुड से कभी दूरी नहीं बनाई... और जब लौटे तो उनका जलवा बाकी था.
राजनीति की दुनिया भी उनके योगदान से खाली नहीं रही. उन्होंने बीजेपी से राजनीति की. गुरुदासपुर से कई बार सांसद रहे और मंत्री भी रहे.