नई दिल्ली: विनोद खन्ना...ये नाम सुनते ही ज़ेहन में उभरती है एक बेहद हैंडसम, खूबसूरत और दमदार शख्सियत वाले स्टार की तस्वीर. एक ऐसा सितारा जिसका वक़्त भले ही गुज़र गया, लेकिन हैंडसम और गुडलुकिंग जैसे शब्द विनोद खन्ना के साथ मानो सदा के लिए जुड़े रहे.


6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर के एक मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार में जन्मे विनोद का परिवार देश के विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई आ गया था. 1968 में अभिनेता सुनील दत्त ने नौजवान विनोद को अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म 'मन का मीत' में बतौर विलेन लांच किया. यह फिल्म सुनील दत्त ने अपने भाई सोमदत्त को बतौर हीरो लांच करने के लिए बनाई थी. सोमदत्त तो कोई मक़ाम हासिल नहीं कर पाए मगर विनोद की गाड़ी चल निकली.

 इंडस्ट्री में विनोद की चर्चा बॉलीवुड के सबसे हैंडसम विलेन के तौर पर होने लगी और उन्होंने मनोज कुमार के साथ 'पूरब और पश्चिम' और सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ 'आन मिलो सजना' और 'सच्चा झूठा' जैसी बड़ी फिल्मों में नेगेटिव रोल किए.


 1971 में गुलज़ार की फिल्म 'मेरे अपने' में उनके अभिनय की बहुत तारीफ हुई. फिल्म मेरे अपने और फिर इसी साल आई ब्लॉकबस्टर फिल्म 'मेरा गांव मेरा देश'. डाकू जब्बर सिंह के किरदार में विनोद छा गए. इसी फिल्म से वो सही मायने में बड़े स्टार बने.


बॉलीवुड में 1970 का पूरा दशक मल्टीस्टारर फिल्मों का रहा. विनोद खन्ना ने यूं तो कई बड़े स्टार्स के साथ काम किया. लेकिन सबसे ज़्यादा सफल रही सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी. 'खून पसीना', 'हेरा फेरी', और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने उस दौर में हंगामा मचा दिया. मगर इनमें सबसे खास थी 'अमर, अकबर, एथनी'.


साल 1978 तक आते आते विनोद की गिनती इंडस्ट्री के टॉप स्टार्स में हो रही थी लेकिन अपनी कामयाबी में उन्हें खालीपन नज़र आने लगा था. धीरे धीरे और वो आध्यात्म की तरफ मुड़ गए.


आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश ने उन्हें बेहद प्रभावित किया. इसका असर ये हुआ कि वो फिल्मों की शूटिंग पर भगवा काफ्तान और माला लेकर आने लगे. हर हफ्ते उनके 2-3 तीन दिन पुणे के ओशो आश्रम में गुरु ओशो के साथ गुज़रने लगे.


मगर फिर अचानक कई समस्याओं के चलते ओशो को पुणे आश्रम छोड़ कर अमरीका के ओरेगन शिफ़्ट होना पड़ा. इस समय विनोद खन्ना अपनी स्टारडम के चरम पर थे. उनकी कुर्बानी ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी.


निर्माता-निर्देशक विनोद को साइन करने के लिए लाइन लगाए खड़े थे. लेकिन विनोद ने अचानक फैसला लिया कि वो अपना करियर, स्टारडम , पत्नी, बच्चे, सबकुछ छोड़कर अपने गुरु यानि ओशो के पास अमेरिका चले जाएंगे. पूरी फिल्म इंडस्ट्री सन्न रह गई. लेकिन विनोद खन्ना अपना सुपरस्टारडम पीछे छोड़कर ओरेगन के ओशो आश्रम में माली बन गए.


कई साल बीत गए. फिल्म इंडस्ट्रीने उन्हें भुला ही दिया था कि अचानक जैसे वो गए थे,वैसे ही अचानक 6 साल बाद वापस लौट आए. लेकिन तब तक बॉलीवुड में दौर काफी बदल चुका था. नए स्टार्स भी आ चुके थे. अपनी दूसरी पारी में विनोद ने इंसाफ, जुर्म, दयावान और चांदनी जैसी कई चर्चित फिल्में कीं मगर पहले जैसा मक़ाम हासिल नहीं कर पाए.


इस दौरान विनोद ने कविता नाम की महिला से दूसरी शादी की. इस शादी से भी विनोद के दो बच्चे बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा हैं.


जब फिल्मों में अच्छे रोल मिलने कम हुए तो 1997 में विनोद खन्ना ने राजनीति में कदम रखा और भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली और आने वाले सालों में 4 बार सांसद और एक बार पर्यटन मंत्री भी रहे.

पिछले कुछ सालों में विनोद इक्का दुक्का फिल्में करते रहें, लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा में रही सलमान खान के साथ उनकी फिल्में. विनोद ने फिल्म वॉन्टेड, दबंग और दबंग 2 में सलमान के पिता की भूमिका निभाई. आखिरी बार वह साल 2015 में शाहरूख खान की फिल्म ‘दिलवाले’ में नजर आए थे.


इंडस्ट्री में विनोद की इमेज ईमानदार शख्स और यारों के यार के तौर पर रहीं. अपनी यादगार फिल्मों और शानदार स्टाइल के लिए विनोद खन्ना हमेशा अपने फैन्स के दिल में रहेंगे.