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जब राही मासूम रजा ने ‘महाभारत’ के डायलॉग्स लिखने से कर दिया था इंकार

राही मासूम रज़ा की पैदाइश पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसे गाजीपुर में 1927 में हुई थी. उन्हें ‘आधा गांव’, ‘दिल एक सादा कागज’ और ‘टोपी शुक्ला’ जैसे उपन्यासों के लिये जाना जाता है.

नई दिल्ली: बी आर चोपड़ा ने दिग्गज लेखक राही मासूम रजा से गुजारिश की थी कि वो महाभारत के लिए डायलॉग्स लिखें. उनकी इस गुजारिश को वक्त की कमी का हवाला देते हुए राही मासूम रजा ने ठुकरा दिया था.  लेकिन, हिंदू धर्म के कुछ स्वयंभू संरक्षकों की ओर से उन पर टिप्पणी किए जाने के बाद उर्दू कवि राही मासूम रजा न केवल इस मेगा टीवी सीरियल से जुड़े बल्कि उन्होंने ‘महाभारत’ के डायलॉग्स भी लिखे, जो आज भी घर घर में लोकप्रिय हैं.

यह किस्सा ‘सीन-75’ के पूनम सक्सेना द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद में मिलता है. यह रजा का हिन्दुस्तानी भाषा में लिखा गया एक उपन्यास है, जिसका सबसे पहला प्रकाशन 1977 में हुआ था. किताब के संबंध में लिखे अपने लेख में पूनम सक्सेना, कुंवरपाल सिंह का एक संस्मरण का जिक्र करती हैं. कुंवरपाल सिंह अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में रजा के सहपाठी थे.

वह कुंवरपाल सिंह के जरिये यह कहानी सुनाती हैं, ‘‘जब फिल्म निर्माता बी आर चोपड़ा ने राही साहिब से डायलॉग्स लिखने की गुजारिश की, तो उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए डायलॉग्स लिखने से इंकार कर दिया, लेकिन बी आर चोपड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राही साहिब के नाम की घोषणा कर दी.’’

उन्होंने लिखा, ‘‘हिन्दू धर्म के स्वयंभू संरक्षकों ने इसका विरोध किया और पत्र पर पत्र आने शुरू हो गए, जिनमें लिखा था- क्या सभी हिन्दू मर गए हैं, जो चोपड़ा ने एक मुसलमान को इसके डायलॉग्स लेखन का काम दे दिया.’’ किताब के मुताबिक, ‘‘चोपड़ा ने यह पत्र राही साहिब के पास भेज दिए. इसके बाद अगले ही दिन भारत की गंगा जमुनी तहजीब के पैरोकार राही साहिब ने चोपड़ा को फोन किया और कहा, ‘‘चोपड़ा साहिब ... मैं ‘महाभारत’ लिखूंगा. मैं गंगा का पुत्र हूं .मुझसे ज्यादा भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में कौन जानता है.’’

साल 1990 के दौरान एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में रजा से हिन्दू कट्टरपंथियों के विरोध के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘‘मुझे बहुत दुख हुआ... मैं हैरान था कि एक मुसलमान द्वारा पटकथा लेखन को लेकर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है. क्या मैं एक भारतीय नहीं हूं.’’ ये बातें राही साहिब के दिल से निकली थीं, जो हमेशा अपने आप को ‘गंगा-पुत्र’, ‘‘गंगा किनारे वाला’’ कहा करते थे. सक्सेना ने हार्पर कोलिन्स के हार्पर पेरेनिअल के प्रकाशित लेख ‘सीन-75’ में ये किस्से लिखे हैं.

गौरतलब है कि राही मासूम रज़ा की पैदाइश पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसे गाजीपुर में 1927 में हुई थी. उन्हें ‘आधा गांव’, ‘दिल एक सादा कागज’ और ‘टोपी शुक्ला’ जैसे उपन्यासों के लिये जाना जाता है. उनकी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में हुई. इसके बाद वह हिन्दी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए साल 1967 में मुंबई (तब के बॉम्बे) चले गए और वह 1992 में अपनी मृत्यु तक यहां काम करते रहे.

हिन्दी फिल्मों में काम के दौरान उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों की पटकथा और डायलॉग्स लिखे, जिसमें ‘मिली’ (1975), ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ (1978), ‘गोलमाल’ (1979), कर्ज (1980), ‘लम्हे’ (1991) प्रमुख हैं. ‘सीन-75’ 1970 के दशक में मुंबई पर आधारित लघु उपन्यास है, जिसमें एक कहानी के अंदर दूसरी कहानी शामिल है.

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