नई दिल्ली: साहिबज़ादी ज़ोहरा बेगम मुमताज़-उल्लाह खान यानी अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक पठान परिवार में हुआ. लेकिन किसको मालूम था कि बेगम मुमताज़-उल्लाह खान की ज़िंदगी आगे कैसे-कैसे मोड़ लेगी और वो किस तरह ज़ोहरा सहगल बनेंगी. उनकी ज़िंदगी किसी पेचीदा रास्ते की तरह थी, जिसमें कौन सा मोड़ किस राह पर ले जाए, किसी को नहीं मालूम.


ज़ोहरा सहगल ने साल 2014 में 102 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा. उससे पहले उन्होंने बॉलीवुड में वो कारनामा किया जो शायद ही कोई और सितारा कर पाया हो. ज़ोहरा सहगल ने पृथ्वी राज कपूर के साथ काम की शुरुआत की और उनकी चौथी पीढ़ी रणबीर कपूर तक के साथ फिल्म 'सावरिया' में काम किया. खास बात ये है कि ज़ोहरा को जो कुछ भी मिला वो एक टेलिग्राम के आने के बाद ही मिला.


दरअसल ज़ोहरा की मां की चाहत की वजह से वो कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए लाहौर गई थीं. उनके साथ उनकी एक बहन भी लाहौर गई थीं. क्वीन मेरी कॉलेज में दोनों बहनों ने दाखिला लिया. बाद में बहन की शादी हुई. उसकी हालत देखने के बाद ज़ोहरा ने फैसला किया कि पहले वो खुद की ज़िंदगी बनाएंगी, बाद में शादी के बारे में सोचेंगी.


अपने पैर पर खड़े होने की ज़िद की वजह से उनके मामू ने उन्हें जर्मनी बुला लिया. ज़ोहरा ने जर्मनी के मैरी विगमैन बैले स्कूल में एडमिशन लिया. खास बात ये है कि ज़ोहरा पहली भारतीय थीं, जिन्होंने इस बैले स्कूल से डांस सीखा. उन्होंने यहां करीब 3 साल तक बैले सीखा. जब वो बैले सीख रही थीं उसी दौरान एक नाटिका देखने के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर नर्तक उदय शंकर से हुई.


नृत्य में इतनी गहरी रुचि देख उदय शंकर ने ज़ोहरा से कहा कि वो भारत जाकर उनके लिए कोई काम ज़रूर देखेंगे. मुलाकात के बाद काफी वक्त बीत गया और एक दिन अचानकर जब ज़ोहरा यूरोप में ही थीं, उन्हें उदय शंकर का एक टेलिग्राम आया. जिसके बाद 8 अगस्त 1935 को ज़ोहरा जापान गईं और उदय शंकर के साथ जुड़ गईं.


भारत वापस लौटने के बाद उदय शंकर ने ज़ोहरा को अल्मोड़ा के अपने स्कूल में पढ़ाने का काम दे दिया. यहीं उनकी ज़िंदगी में इश्क ने दस्तक दी और मुलाकात हुई कमलेश्वर सहगल से. कमलेश्वर ज़ोहरा से आठ साल उम्र में छोटे थे. लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो ये किसी को पसंद नहीं आई. परिवार भी खिलाफ हो गया. कहते हैं हालात दंगे जैसे हो गए थे. हालांकि अंत में मुहब्बत की जीत हुई और सभी को मानना पड़ा.


बाद में वो लाहौर गए और फिर बंटवारे की आग के बीच बंबई भाग आए. यहां आकर उन्होंने 1945 में पृथ्वी थिएटर ज्वाइन की और नाटक करने लगीं. ज़ोहरा सहगल इप्टा की भी सदस्य थीं. इसी के बाद उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ और उन्होंने पहली फिल्म 'धरती के लाल' में अभिनय किया.


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