आज बात एक ऐसे एक्टर की, जिसे एक्टिंग का इंस्टीट्यूशन भी कहा जाता है. हम बात कर रहे हैं रवि बासवानी (Ravi Baswani) की और उन्हें एक्टिंग का इंस्टीट्यूशन क्यों कहा जाता है यह भी आपको बताएंगे. रवि का जन्म दिल्ली में ही हुआ था और कहते हैं कि बचपन से ही उन्हें एक्टिंग का शौक था. रवि फिल्मों में आने से पहले लंबे समय तक थियेटर से जुड़े रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रवि दिल्ली के किरोड़ी मल कॉलेज की ड्रामा सोसाइटी में काफी एक्टिव थे.
बताया जाता है कि एक समय जब दिल्ली में इंग्लिश प्ले का दबदबा हुआ करता था, उस ज़माने में रवि ‘बल्लभपुर की रूप कथा’ नाम से हिंदी प्ले लेकर आए जिसे दर्शकों ने काफी सराहा था. ख़बरों की मानें तो रवि ने एक्टिंग की कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी जो कुछ भी सीखा खुद से और अपने दम से ही सीखा था. कहते हैं कि रवि बासवानी नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के छात्रों से भी लगातार चर्चा करते थे.
रवि बासवानी हमेशा कहते थे कि सिनेमा यदि मेरे लिए बना है तो मेरे तक चलकर ज़रूर आएगा. हुआ भी कुछ ऐसा ही, थियेटर के दौरान उन्हें नसीरुद्दीन शाह से जुड़ने का मौक़ा मिला था. यहीं से उन्हें नसीर की मदद से सई परांजपे की फिल्म स्पर्श की प्रोडक्शन टीम में काम करने का मौक़ा मिला था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसी दौरान सई परांजपे की नज़र में रवि आ गए और उन्हें अगली फिल्म ‘धुआं-धुंआ’ के लिए ऑफर भेजा गया.
रवि बासवानी ने बिना देर किए यह ऑफर स्वीकार कर लिया यही फिल्म आगे चलकर ‘चश्मे बद्दूर’ के नाम से फेमस हुई और सुपर-डुपर हिट साबित हुई थी. रवि को फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ के लिए भी याद किया जाता है. बॉलीवुड का यह अनमोल सितारा साल 2010 में महज 63 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गया.
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