सूरमा की कहानी शुरू होती है सन् 1994 के शाहाबाद से, जिसे देश की हॉकी की राजधानी माना जाता था. यह एक छोटा सा कस्बा है, जहां ज्यादातर लोगों का बस यही सपना है कि वह भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बनें. लगभग सभी बच्चे, चाहे वह लड़की हो या लड़का इसी सपने को पाने की दौड़ में शामिल हैं.
निर्देशक शाद अली की स्पोर्ट्स बायोग्राफिकल ड्रामा दो साल पहले इसी दिन रिलीज हुई थी. दिलजीत अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पेज पर गए जहां उन्होंने फिल्म की एक क्लिप साझा की और यह भी बताया कि उन्हें किस बात ने फिल्म में संदीप सिंह की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया.
युवा संदीप सिंह (दिलजीत दोसांझ) भी इन्हीं लोगों में से एक है, लेकिन स्ट्रिक्ट कोच के कारण उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है और वह हॉकी से पल्ला झाड़ लेते हैं. टीनेज तक उनकी जिंदगी से हॉकी गायब रहता है, लेकिन फिर उनके जीवन में हरप्रीत (तापसी पन्नू) की एंट्री होती है, जिससे संदीप को प्यार हो जाता है. हरप्रीत फिर से संदीप में हॉकी के लिए जज्बा पैदा करती है और उसे आगे बढ़ते रहने और खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है. इससे एक बार फिर हॉकी प्लेयर बनना संदीप के लिए जीवन का मकसद बन जाता है.
उन्होंने लिखा, "सूरमा आज दो साल पूरे हो गए फिल्म को, संदीप भाजी की लाइफ की जर्नी जितनी प्रेरणात्मक है आज के यूथ के लिए भाजी रियल रोल मोडल हैं." उन्होंने आगे लिखा, "जब यह फिल्म मुझे ऑफर हुई तो पहले मैंने मना कर दिया था. दो कारण थे, एक मैंने कभी हॉकी नहीं खेली थी लाइफ में, दूसरा पंजाब में पहले से ही दो फिल्म बन रही थी हॉकी में." उन्होंने आगे लिखा, "पर लेकिन स्नेहा रजनी मैम, शाद अली सर, चित्रांगदा जी का शुक्रिया, जिनकी वजह से मैंने फिल्म की."
एक समय ऐसा आएगा जब सूरमा में तापसी पन्नू का किरदार दिलजीत दोसान्ज के किरदार संदीप सिंह को कहता है, "लाइफ में गोल होगा ना, तो यहां भी हो जाएगा." हमारी मानिए तो यही एक लाइन पूरी फिल्म सूरमा, का सार है. इसी एक लाइन पर शाद अली की ये पूरी फिल्म टिकी हुई है. आजकल बायोपिक का ज़माना है और शाद अली की कहानी प्रेरणा लेती है हॉकी स्टार संदीप सिंह की ज़िंदगी से.