कैसे फिल्म 'इस रात की सुबह नहीं' के पीछे की कहानी ने दिया बॉलीवुड को नया मोड़
90 के दशक का ये वो दौर था जब हिंदी सिनेमा में फिल्मों की एक नई श्रेणी अपनी जड़े जमा रही थी. इसमें हीरो सिर्फ हीरोइन से इश्क लड़ाने और अच्छा बनने के अलावा मार-पीट और गाली गलौज भी करता है
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90 के दशक का ये वो दौर था जब हिंदी सिनेमा में फिल्मों की एक नई श्रेणी अपनी जड़ें जमा रही थी. इसमें हीरो सिर्फ हीरोइन से इश्क लड़ाने और अच्छा बनने के अलावा मार-पीट और गाली गलौज भी करता है. हम बात कर रहे हैं माफिया वाली फिल्मों की, जिसकी शुरूआत साल 1996 में फिल्म 'इस रात की सुबह नहीं' के साथ हुई. ये फिल्म राम गोपाल वर्मा की ‘सत्या’ से लगभग दो साल पहले बनी थी.
फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ की कहानी सुधीर मिश्रा के छोटे भाई के साथ घटी सच्ची घटना पर आधारित है. इसीलिए फिल्म के क्रेडिट्स में उनके भाई सुधांशु मिश्रा का नाम लिखा गया था. दरअसल, पूना में दोनों भाई फिल्म इंस्टीट्यूट में काफी वक्त साथ ही गुजारते थे. सुधीर मिश्रा ने अपने भाई सुधांशु से ही सिनेमा के बारे में सीखा. पूना में एक रात सुधांशु ने रास्ते पर छेड़खानी करते एक आदमी को थप्पड़ मार दिया था और बाद में पता चला कि वो आदमी वहां के एक लोकल डॉन का भाई है. उस किस्से के बाद सुधांशु को कई दिनों तक हॉस्टल में छिपकर रहना पड़ा था. इसी सच्ची घटना पर बेस्ट है सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’.
वैसे सुधीर मिश्रा को हिंदी सिनेमा का फकीर भी बुलाया जाता है क्योंकि उनकी फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ जिसका पूरा अंडरकरंट दो साल बाद रामगोपाल वर्मा की ‘सत्या’ में दिखाई देता है, लेकिन सुधीर ने इस बात का जिक्र खुद से कभी नहीं किया. शायद इसकी वजह ये भी हो सकती है कि ‘सत्या’ की कहानी जिन्होंने लिखी यानि अनुराग कश्यप और सौरभ शुक्ला दोनों ही उनके बहुत अच्छे दोस्त रहे और इसका दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ उनकी दुखती रग है, इसी वजह से वो इसके बारे में ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते, क्योंकि इस फिल्म की रिलीज से पहले ही उन्होंने काफी कम उम्र में अपने भाई को खो दिया था और ये फिल्म बार-बार उन्हें अपने भाई की याद दिलाती रही है और रिलीज के बाद सुधीर ने अपनी सबसे करीबी दोस्त और फिल्म की एडीटर रेनू सलूजा को भी खो दिया था.
फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ का सबसे मशहूर गाना ‘वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहां’ जिसे हिंदी मशहूर लेखक निदा फाजली बेहद खूबसूरती से लिखा और इस गाने को अपनी आवाज दी थी साउथ सिनेमा के मशहूर संगीतकार एम एम क्रीम ने. आज भले ही लोग उन्हें बाहुबली सीरीज की दोनों फिल्मों के संगीत के लिए पहचानती हो, लेकिन इससे पहले भी उन्होंने साल साल 1995 में नागार्जुन और मनीषा कोईराला की फिल्म 'क्रिमिनल' में कमाल किया था, उस फिल्म का गाना ‘तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए’ आज भी दर्शकों का पसंदीदा गाना है. महेश भट्ट ने ही उन्हें ‘क्रिमिनल’ के लिए चुना था और एक बार फिर ‘इस रात की सुबह नहीं’ में भी महेश ही एम एम क्रीम को लेकर आए क्योंकि ये फिल्म प्लस चैनल के लिए उन्हीं की देखरेख में बन रही थी.
कहा जाता है कि अगर ‘इस रात की सुबह नहीं’ को अगर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में ठीक तरह से प्रचारित किया जाता तो सुधीर मिश्रा काफी साल पहले ही बेस्ट डायरेक्टर्स की पहली नाइन में बैठ चुके होते. हालांकि सुधीर मिश्रा एक ताकतवर राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं लेकिन मुंबई में उन्होंने अपने रुतबे का कभी इस्तेमाल नहीं किया. वो हमेशा बड़ी ही सादगी से रहे, उनकी सादगी की झलक उनकी फिल्मों में भी साफ दिखाई पड़ती है. अब तक उन्हें तीन नेशनल अवार्ड मिल चुके हैं मगर फकीरी आज भी वैसी ही दिल लुभाने वाली ही है.
फिल्म ‘इस रात की सुबह नहीं’ में सुधीर मिश्रा के साथ काम कर चुके तमाम लोगों की टीम आज किसी ना किसी मुकाम पर है. राइटर अतुल तिवारी आज खुद का प्रोडक्शन हाउस खोल चुके हैं निखिल आडवाणी जो फिल्म के चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर थे. रूचि नारायण जो फर्स्ट असिस्टेंट डायरेक्टर रहीं, उनकी सीरीज गिल्टी नेटफ्लिक्स पर और हॉटस्टार पर हंड्रेड ओटीटी प्लेटफार्म पर खूब धूम मचा रही है.
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