टी सीरीज के फाउंडर गुलशन कुमार की जिंदगी की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम दिलचस्प नहीं है. दिल्ली में जूसे बेचने से लेकर एक म्यूजिक और फिल्म प्रोडक्सन कंपनी के मालिक बनने तक की उनकी यात्रा किसी जादुई कथा से कम नहीं है.
कम लोग जानते हैं कि गुलशन कुमार के पिता चंद्रभान दुआ एक समय में दिल्ली के दरियागंज में जूस बेचा करते थे. गुलशन कुमार जूस की दुकान पर अपने पिता का हाथ बंटाते थे और वहीं से उनके व्यवसाय को लेकर एक उम्मीद जगी. उसके बाद, जब वह 23 साल का थे, तब उन्होंने परिवार की मदद से एक दुकान संभाली और रिकॉर्ड और ऑडियो कैसेट बेचना शुरू किया. गुलशन कुमार शुरू-शुरू में भजन और भक्ति गीत स्थानीय गायकों की आवाज़ में रिकॉर्ड कराए और उनके कैसेट बहुत कम दाम में बेचे. काम चल निकला और फिर उन्होंने फ़िल्म संगीत के व्यवसाय में उतरने का फ़ैसला किया.
गुलशन कुमार ने अपने ऑडियो कैसेट व्यवसाय को 'सुपर कैसेट इंडस्ट्रीज लिमिटेड' नाम दिया, जिसे आज टी-सीरीज के नाम से जाना जाता है. धीरे-धीरे वह म्यूजिक इंडस्ट्री के सफल बिजनेसमैन में शामिल हो गए और ऑडियो कैसेट्स में उनकी सफलता के बाद, गुलशन कुमार ने फिल्म उद्योग की ओर एक कदम बढ़ाया, जहां से उनका करियर शुरू हुआ. उनकी धर्म में भी बहुत रुचि थी और उन्होंने वैष्णो देवी आने वाले भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन शुरू किया, जो आज भी जारी है.
12 अगस्त, 1997 को अंधेरी के जितेश्वर महादेव मंदिर के सामने उन्हें गोली मार दी गई थी. जिसके कारण उसकी मौत हो गई. कहा जाता है कि गुलशन ने अंडरवर्ल्ड की जबरन वसूली के बदले रुपये देने से इनकार कर दिया, जिसकी वजह से उसकी हत्या कर दी गई. इसके अलावा यह भी बताया गया है कि जब अबू सलेम ने गुलशन कुमार को हर महीने 5 लाख रुपये देने के लिए कहा तो गुलशन ने मना कर दिया और कहा कि इतने पैसे देकर वह वैष्णो देवी में भंडारा कराएंगे.
इस हत्या का आरोप संगीतकार जोड़ी नदीमश्रवण के नदीम पर भी लगा था. नदीम भागकर इंग्लैंड चले गए थे और वहां की नागरिकता भी ले ली थी. भारत में अब्दुल रऊफ दाउद मर्जेंट को गुलशन कुमार की हत्या के आरोप में अप्रैल 2002 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई.
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