हर पीढ़ी को पसंद आती है गुलज़ार की शायरी, यहां पढ़ें उनकी मशहूर शायरी
हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम जिन्होंने सालों से बॉलीवुड को गुलज़ार किया. यहां हम गुलज़ार के बारे में बात कर रहे हैं. उनके नाम को आज किसी भी परिचय की जरूरत नहीं है.
हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम जिन्होंने सालों से बॉलीवुड को गुलज़ार किया. यहां हम गीतकार गुलज़ार के बारे में बात कर रहे हैं. उनके नाम को आज किसी भी परिचय की जरूरत नहीं हैं, उन्होंने ना सिर्फ अपने गीतों से बल्कि अपनी शायरी से भी फैंस का खूब दिल जीता. तो चलिए आज की इस खास स्टोरी में हम आपके लिए गुलज़ार की शायरी से रूबरू करवाते हैं.
1. ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता, मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता यूं भी एक बार तो होता कि समुंदर बहता, कोई एहसास तो दरिया की अना का होता सांस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती, कोई झोंका तेरी पलकों की हवा का होता कांच के पार तेरे हाथ नज़र आते हैं, काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता क्यूं मिरी शक्ल पहन लेता है छुपने के लिए, एक चेहरा कोई अपना भी ख़ुदा का होता.
2. कोई अटका हुआ है पल शायद, वक़्त में पड़ गया है बल शायद
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद, वो अकेले हैं आज-कल शायद दिल अगर है तो दर्द भी होगा, इस का कोई नहीं है हल शायद जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम, उन से होता नहीं अमल शायद आ रही है जो चाप क़दमों की, खिल रहे हैं कहीं कमल शायद राख को भी कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद चांद डूबे तो चांद ही निकले, आप के पास होगा हल शायद .
3. हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन,ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो, ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा, जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते जा के कोहसार से सर मारो कि आवाज़ तो हो, ख़स्ता दीवारों से माथा नहीं फोड़ा करते