गुलज़ार का अंदाज़ ही उनकी पहचान है
हिन्दी सिनेमा में गीतकार, निर्देशक गुलज़ार, पिछले कई दशक से बॉलीवुड पर राज कर रहे हैं. सफ़ेद कुरता-पायजामा, चेहरे पर मुस्कान, हिन्दी और उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाली इस शख्सियत को किसी परिचय की जरूरत नहीं है
हिन्दी सिनेमा में गीतकार, निर्देशक गुलज़ार, पिछले कई दशक से बॉलीवुड पर राज कर रहे हैं. सफ़ेद कुरता-पायजामा, चेहरे पर मुस्कान, हिन्दी और उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाली इस शख्सियत को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. बतौर गीतकार गुलज़ार ने अपने करियर की शुरुआत साल 1956 से शुरू की थी. जिसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा में निर्माता, निर्देशक, लेखक और कहानीकार बन शानदार काम किया. गुलज़ार को अब तक दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, ग्रैमी अवॉर्ड और ऑस्कर, पद्मभूषण अवॉर्ड्स के अलावा कई फ़िल्मफ़ेयर और राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिल चुके हैं. लेकिन गुलज़ार का यहां तक का सफर आसान नहीं था.
अपने करियर के शुरुआती दौर में गुलज़ार निर्माता बिमल राय और ऋषिकेश मुखर्जी के संपर्क में आए. गुलज़ार को बिमल रॉय की ही फिल्म में बतौर गीतकार पहला ब्रेक मिला. लेकिन संघर्ष अभी भी जारी था. वहीं बतौर निर्देशक गुलज़ार ने साल 1971 में फ़िल्म 'मेरे अपने' बनाई जिसे दर्शकों ने खूब सराहा.
जिसके बाद उन्होंने 'कोशिश', 'आंधी', 'मासूम', 'परिचय' जैसी कई शानदार फिल्में बनाई. एक निर्देशक के तौर पर गुलज़ार का सफ़र साल 1999 में खत्म हो गया. लेकिन वो आज भी 'कजरारे कजरारे' जैसे गाने बनाकर फैंस को झूमने पर मजबूर कर देते हैं तो दूसरी तरफ 'जय हो' से कई अवॉर्ड अपने नाम कर लेते हैं. आज 60 साल बाद भी गुलज़ार रोज़ कुछ नया रचते हैं, वो भी अपने पुराने अंदाज़ में.