निर्देशक रमेश सिप्पी बदलना चाहते थे 'शोले' का अंत, सलीम-जावेद के कहने पर बदला इरादा
45 साल पहले बनी हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म 'शोले', जिसने लोगों को दोस्ती, प्यार और वफादारी का सबक सिखाया. फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान जैसे बेहतरीन कलाकारों ने शानदार काम किया
45 साल पहले बनी हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म 'शोले', जिसने लोगों को दोस्ती, प्यार और वफादारी का सबक सिखाया. फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान जैसे बेहतरीन कलाकारों ने शानदार काम किया. हालांकि जब 15 अगस्त 1975 को 'शोल' सिनेमाघरों में लगी तो उम्मीद के हिसाब से इस फिल्म ने वैसा प्रदर्शन नहीं किया. फिल्म को बनाने में काफी मोटी रकम लगी थी. जब फिल्म टिकट खिड़की पर कमजोर पड़ने लगी तो डायरेक्टर रमेश सिप्पी को चिंता होने लगी.
फिल्म 'शोले' की रिलीज के दो दिन बाद यानि रविवार को रमेश सिप्पी ने अपने घर पर फिल्म के राइटर सलीम-जावेद को बुलाया. उस मीटिंग में सबने कहा कि फिल्म के अंत में अमिताभ का मरना दर्शकों को पसंद नहीं आ रहा जिसकी वजह से फिल्म अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही. तब रमेश सिप्पी ने कहा कि 'फिल्म का अंत बदला जाए. लोकेशन पर पहुंच कर नया अंत शूट करेंगे और फिल्म में डाल देंगे'. मगर तब सलीम-जावेद ने सिप्पी को सलाह दी कि एक-दो दिन रूकना बेहतर रहेगा, अगर फिर भी फिल्म नहीं चली तो नया अंत शूट कर लेंगे. रमेश सिप्पी ने भी उनकी बात मान ली.
नतीजा ये निकला कि हर गुज़रते दिन के साथ 'शोले' का बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन बेहतर होता चला गया. जिसके बाद पैसों की बरसात होने लगी. गली-गली में फिल्म के डायलॉग फेमस हो गए. जय-वीरू की दोस्ती की मिसाल दी जाने लगी. ज्यादा बोलने वाली लड़कियों को 'बंसती' के नाम से बुलाया जाने लगा. इतना ही नहीं घर-घर में मां अपने बच्चों को 'गब्बर' के नाम से डराने लगीं. आज भी फिल्म का एक-एक किरदार दर्शकों के बीच मशहूर है.
इतना ही नहीं रमेश सिप्पी की फिल्म 'शोले' पांच साल लगातार मुंबई के सिनेमाघर में चली थी. 'शोले' से पहले साल 19043 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'किस्मत' कलकत्ता में लगातार साढ़े तीन साल तक चली थी. फिर शाहरुख खान और काजोल की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे' ने शोले का रिकॉर्ड तोड़ा था.