Khaali Peeli Review: लॉकडाउन के कारण अगर आप बॉलीवुड की घिसी-पिटी कहानियों, बेसिर-पैर के इमोशन, नकली रोमांस, कमजोर ऐक्टरों और चालू ऐक्शन का फ्लेवर भूल गए हैं तो हाजिर है, खाली पीली. ऐसा लगता है कि सीमा अग्रवाल और यश मकवाना ने यह कहानी सड़क-2 सोच कर लिखी थी मगर भट्ट कैंप द्वारा रिजेक्ट होने के बाद उन्होंने दूसरे प्रोड्यूसर तलाश लिए. मकबूल खान के निर्देशन में इस रोमांस और ऐक्शन वाली फिल्म में नए जमाने के अंदाज सिरे से गायब हैं.
वजह यह कि कहानी में हीरो-हीरोइन 20-25 साल पुराने दौर में हैं. यहां हीरो अपने बचपन में 1997 में आई इश्क और गुप्त जैसी फिल्मों के टिकट सिनेमाहॉल के बाहर ब्लैक कर रहा है. फिर 2001 में नन्हीं नायिका के साथ गदर देख रहा है. दोनों के बड़े होते-होते दस साल बीतते हैं यानी कहानी 2010-11 में पहुंचती है. ऐसा दिखा कर राइटर-डायरेक्टर क्या कहना चाहते हैं, आप नहीं जान पाते। लगता है कि उन्हें इन दिनों बन रही फिल्मों की खबर नहीं है.
खाली पीली सड़क से शुरू होती है और सड़क पर खत्म होती है. पूरे सफर में कुछ नया नहीं है. कुछ बचकानी बातें जरूर नई है. जैसे, शिवपुर नाम की जगह से एक बच्चा अपने पिता को सुनार की दुकान में डकैती डालने ले जाता है और नाकाम होने पर पुलिस को चकमा देकर सीधे मुंबई भाग जाता है. जहां उसका एक परिचित युसूफ चिकना (जयदीप अहलावत) है, जो कमाठीपुरा इलाके में जिस्मफरोशी के धंधे का दलाल है. बच्चे को बड़ा होकर युसूफ चिकना बनना है. युसूफ कहता है कि ठीक है, फिर वहीं से स्टार्ट कर जहां से मैंने किया था. बच्चा सिनेमाघर के बाहर टिकट ब्लैक करने लगता है. कहानी में फिर एक बच्ची की एंट्री होती है, जिसे पता नहीं कहां से उठा कर कमाठीपुरा में लाया गया है. वह बच्चे की दोस्त बन जाती है.
उस बच्ची को युसूफ के एक रेगुलर क्लाइंट ने यह कहते हुए पसंद कर लिया कि उसके जवान होने तक अगले दस साल वर्जिन रहेगा. युसूफ ताड़ जाता है कि वह बच्चा और बच्ची नजदीक रहते हुए जवान हुए तो उनमें प्यार हो जाएगा. अतः वह उन्हें जुदा कर देता है. लेकिन वक्त का पहिया ऐसे घूमता है कि जब दस साल वर्जिन रहने वाले क्लाइंट के लिए जवान हो चुकी बच्ची को दुल्हन (अनन्या पांडे) बनाया जा रहा है, तभी वह नोटों और गहनों भरा बैग लेकर भाग जाती है. गुंडे पीछे हैं, भागती हुई दुल्हन को सामने से आ रही एक काली-पीली टैक्सी मिलती है, जिसे बचपन वाला दोस्त (ईशान खट्टर) ड्राइव कर रहा है.
दोनों एक-दूसरे को नहीं पहचानते. अब टैक्सी के पीछे गुंडे हैं और पुलिस भी। चूहा-बिल्ली वाली रेस शुरू हो जाती है। जिसमें एक के बाद एक रोमांस, कॉमेडी और ऐक्शन के हास्यास्पद सीन आते हैं. साथ ही कुछ ऐसे डायलॉग भीः -खिलाने वाले हाथ को कभी काटना नहीं, -गलत रास्ते की मंजिल कभी सही नहीं होती और -युसूफ कोई बनता नहीं है, मां के पेट से पैदा होता है.
बॉलीवुड किड्स ईशान खट्टर और अनन्या पांडे लगातार पारंपरिक हीरो-हीरोइन के खांचे में फिट होने की कोशिश कर रहे हैं परंतु वह स्टाइल और ग्लैमर उनके पास अभी तक नहीं दिखा है. बियॉन्ड द क्लाउड्स और धड़क के बाद ईशान की यह तीसरी फिल्म है. इसमें भी हीरो वाली बात नजर नहीं आती. वह पर्दे पर ऐसे बच्चे दिखते हैं, जो बड़ी-बड़ी बातें करता है. उनकी बॉडी उनके चेहरे से अधिक पकी हुई है. यही हाल अनन्या का है। स्टूडेंट ऑफ द ईयर-2 और पति पत्नी और वो के बाद इस फिल्म में भी वह असर नहीं छोड़ पातीं.
खाली पीली नाम के लिए ही नहीं, सचमुच खाली पीली है. कहानी, निर्देशन और अभिनय से लेकर संगीत तक खाली है. निर्देशक मकबूल खान क्लाइमेक्स को लेकर बहुत कनफ्यूज हैं. वह लंबे सीन में भी यह तय नहीं कर पाते कि विलेन को कौन मारेगा, हीरो या हीरोइन. अगर दोनों नहीं तो तीसरा कौन?
बॉलीवुड फिल्म की एक निशानी यह है कि अत्यंत तनाव भरी जीवन स्थितियों में हीरो-हीरोइन सब कुछ भूलकर रोमांस, कॉमेडी और नाच-गाना करने लगते है. ईशान-अनन्या भी यहां यहीं करते हैं. ऐक्शन के नाम पर भागते हुए हीरो और टैक्सी-कार की दौड़ के लंबे सीन यहां हैं. टैक्सी में साथ सफर करते नायक-नायिका के बचपन की लवस्टोरी बीच-बीच में खुद को दोहराती रहती है जिससे बोरियत पैदा होती है. इन तमाम बातों के बाद भी फिल्म में आपका उत्साह बना हुआ है तो जी प्लेक्स पर मात्र 299 रुपये और दो घंटे खर्च करके सुकून पा सकते हैं.