किस्सा-ए- बॉलीवुड: फिल्म 'मुगल-ए-आजम' का नाम आते ही मुगल साम्राज्य की भव्यता नजरों के सामने साकार होने लगती है. जिस तरह से इस फिल्म में शहजादे सलीम को अनारकली से इश्क था, ठीक उसी तरह से डायरेक्टर के आसिफ को अपनी फिल्म 'मुगल-ए-आजम' (Mughal-E-Azam) से इश्क हो गया था. इस फिल्म से जुड़े अनगनित किस्से हैं, जिसमें से एक किस्सा इसके एक गाने से जुड़ा है.


'मुगल-ए- आजम' भारतीय सिनेमा के इतिहास की अजीमों शान प्रस्तुती है. जिसे पर्दे पर साकार करने में के आसिफ को कई साल लग गए. 1960 में जब यह फिल्म सिनेमा घरों में रिलीज हुई तो इस फिल्म ने लोकप्रियता की सारी हदें पार कर दीं. उस जमाने में इस फिल्म को बनाने में करीब सवा करोड़ रूपये खर्च हुए. रिलीज होने के बाद इस फिल्म ने 3 करोड़ रूपये से अधिक की कमाई की थी. उस जमाने में 'मुगल-ए- आजम' अपने समय की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी.


इस फिल्म का संगीत नौशाद ने तैयार किया था और गाने शकील बदायुनी ने लिखे थे. फिल्म के डायरेक्टर के आसिफ ने 'मुगल-ए-आजम' को बनाने में सारी हदें पार कर दी थीं. वे किसी भी मामले में कोई समझौता करने को तैयार नहीं थे. 'मुगल-ए- आजम' में एक गीत में तानसेन को गाते हुए दिखाया जाना था. के.आसिफ  तानसेन की आवाज के लिए क्लासिकल सिंगर उस्ताद बड़े गुलाम अली खान को लेना चाहते थे. के आसिफ ने अपनी इस इच्छा को संगीतकार नौशाद को बताया. नौशाद ने कहा कि बड़े गुलाम आली खान फिल्मों में गाने के सख्त खिलाफ हैं. के आसिफ नहीं माने और जिद कर गए कि यह गाना तो बड़े गुलाम अली खान ही गाएगें.


संगीतकार नौशाद ने कई बार बड़े गुलाम अली खान को मनाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. एक दिन के आसिफ खुद नौशाद के साथ बड़े गुलाम अली खान से मिलने उनके घर पहुंच गए. के आसिफ ने बड़े गुलाम अली खान से कहा कि 'ये गाना तो आपको को ही गाना पड़ेगा'. इस पर गुलाम अली खान ने कहा कि 'आप अगर इस गाने के 25 हजार रूपये भी देंगे तो भी न गाएंगे'. इस पर के आसिफ ने कहा कि 'ठीक है तो फिर मैं इस गाने के लिए आपको 25 हजार 1 रूपये देता हूं, अब तो इंकार नहीं करेंगे'. इस पर बड़े गुलाम अली खान को हां कहना पड़ गया और इस तरह से फिल्म में उनका गाना तय हो गया. उस जमाने में बड़े बडे सिंगर भी एक गाने 500 या 1000 रूपये से ज्यादा नहीं लिया करते थे.


गाने की बात फाइनल होने के बाद उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से दोनों विदा ली. लौटते समय संगीतकार नौशाद ने के आसिफ से कहा कि 'ये क्या किया आपने, इतनी बड़ी अमाउंट एक गाने के लिए दे दी'. इस पर मुगले आजम के डायरेक्ट के आसिफ ने संगीतकार नौशाद के कंधे पर हाथ रखकर कहा कि 'मुगल-ए- आजम को देखते हुए यह कोई बड़ी रकम नहीं है, 'मुगल-ए- आजम' जैसे फिल्में बार-बार नहीं बना करती है'. के आसिफ की यह बात सच साबित हुई. इस फिल्म को आज भी लोग याद करते हैं. इतने बरस बीत जाने के बाद भी इस फिल्म को लेकर लोगों का आकर्षण कम नहीं हुआ है. जब इस फिल्म को रिलीज किया गया तो हाथी पर फिल्म की प्रिंट रख कर सिनेमा हॉल तक भेजे गए.


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