Mirzapur जैसी है मुन्ना बजरंगी डॉन की कहानी, बदला लेने के लिए BJP MLA को दिन दहाड़े मारी थी गोलियां
आज हम आपको असली डॉन मुन्ना बजरंगी की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने अस्सी के दशक में पूर्वांचल में कोहराम मचा दिया था. उसने 1984 में लूट के लिए एक व्यापारी की हत्या कर दी थी.
वेब सीरीज 'मिर्ज़ापुर 2' रिलीज हो चुकी है और इन दिनों दर्शकों के बीच इसका ज़बरदस्त भौकाल है. इस वेब सीरीज में आपको डॉन, बदला और वायलेंस का ज़बरदस्त कॉकटेल देखने को मिलेगा. हालांकि, रील लाइफ से इतर आज हम आपको एक ऐसे डॉन की रियल कहानी बताएंगे, जिसने ना सिर्फ मिर्ज़ापुर, गाज़ीपुर और जौनपुर में अपना टेरर कायम किया था बल्कि इस डॉन की धमक से एक समय पूरा पूर्वांचल तक कांपने लगा था. हम बात कर रहे हैं कुख्यात डॉन 'मुन्ना बजरंगी' की जिसने 40 से ज्यादा मर्डर करके पूरे यूपी में कोहराम मचा दिया था.
कहा जाता है कि मुन्ना को बचपन से ही डाकुओं की फ़िल्में देखने का शौक था जिसके चलते वह छोटी सी उम्र में ही क्राइम की तरफ आकर्षित हो गया था. मुन्ना ने पहला मर्डर 17 साल की उम्र में किया था, जिसके बाद क्राइम की दुनिया में वह आगे बढ़ता चला गया. आगे चलकर ‘मुन्ना’ जिसका असली नाम ‘प्रेम प्रकाश सिंह’ था, जौनपुर के माफिया डॉन गजराज सिंह के संपर्क में आता है और अपराध की सीढ़ियां चढ़ने लगता है. मुन्ना का नाम अपराध की दुनिया में उस वक़्त चमकता है जब वह 1984 में एक व्यापारी की ह्त्या कर देता है. इस घटना के कुछ समय बाद ही मुन्ना जौनपुर के एक भाजपा नेता रामचंद्र सिंह की हत्या करके पूरे पूर्वांचल में अपना दबदबा कायम कर लेता है.
अब तक क्राइम की दुनिया में स्थापित हो चुका मुन्ना, गजराज के बाद पूर्वांचल के ही एक अन्य माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का दामन थाम लेता है. अंसारी का साथ मिलते ही मुन्ना के पास पॉलिटिकल सपोर्ट भी आ जाता है, जिसकी दम पर वह कई सरकारी ठेके हथियाने लगा था. अंसारी के लिए उस समय तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय एक चुनौती बनकर उभरे थे. मुख्तार अंसारी ने मुन्ना बजरंगी की मदद से दिन दहाड़े भाजपा विधायक कृष्णानंद की ह्त्या करवा कर उस समय पूरे उत्तरप्रदेश में सनसनी फैला दी थी.
आपको बता दें कि मुन्ना ने उस समय एके 47 जैसी राइफल से ताबड़तोड़ फायरिंग करके कृष्णानंद की हत्या की थी. बताया जाता है कि कृष्णानंद को 400 गोलियां मारी गईं थीं.
हालंकि, वो कहते हैं ना कि बुराई का अंजाम भी बुरा ही होता है. ऐसा ही डॉन मुन्ना के साथ हुआ, जब कृष्णानंद के केस के सिलसिले में जेल में बंद मुन्ना को पेशी के लिए झांसी से बागपत जेल शिफ्ट किया. यहां एक अन्य कैदी से मुन्ना की झड़प हुई और नतीजा था मुन्ना की मौत..और इस तरह जेल की चार दीवारी के भीतर इस कुख्यात डॉन की कहानी पर फुल स्टॉप लग गया.