Best Hindi Web Series 2021: साल 2021 जाते-जाते सिनेप्रेमियों के लिए एक से एक शानदार कंटेट दे गया है. कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन में हर किसी की लाइफ में ओटीटी प्लेटफॉर्म एक खास जरूरत बन चुका है. ऐसे में आज हम आपको उन वेब सीरीज की रीव्यू और रेटिंग के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके नाम 2021 में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहे. तो अगर आपने अभी तक ये सीरीज नहीं देखी है तो देखने पहले यहां पढ़िए इनके इंस्टेंट रिव्यू और रेटिंग्स:
1. कोटा फैक्ट्री- 2
एबीपी न्यूज़ ने इस वेब सीरीज को साढ़े तीन स्टार दिए थे. नए सीजन में भी कहानी पहले सीजन की तरह ठीक सधे अंदाज में बढ़ती है, जैसे तीर निशाने पर. दाएं-बाएं भटकाव नहीं. आईआईटी क्रैक करने की जंग में उतरे वैभव पांडे, बालमुकुंद मीणा, उदय गुप्ता, शिवांगी राणावत, वर्तिका रतावल और मीनल पारेख के संग पूरे रंग मगर नई मंजिल पर निकले टीचर जीतू भैया भी यहां प्रॉडिजी क्लासेस और माहेश्वरी क्लासेस के साथ मौजूद हैं.
दूसरे सीजन में घटनाओं की जगह भावनाएं उभारने पर जोर दिया गया है. सभी कलाकार बढ़िया हैं और अपने-अपने किरदारों में जमते हैं. मगर जितेंद्र कुमार दिल जीत लेते हैं. जीतू सर के पास हर सवाल का जवाब और हर मुश्किल परिस्थिति से निकलने का रास्ता है. उनकी बातें हारे हुए मन को प्रेरित करती हैं. यह सीरीज महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए है. जो आईआईटी जैसी परीक्षाएं क्रेक करना चाहते हैं.
ऐसे युवाओं को यह वेब सीरीज अपने से जोड़ेगी मगर जो ऐसी परीक्षाओं के दौर से गुजर चुके हैं, उन्हें भी पुराने दिनों की याद दिलाएगी. अगर आप कोटा फैक्ट्री के पहले सीजन में इसके मुरीद थे, तो निश्चित ही दूसरा भी आपको देखना चाहिए. निराश नहीं होंगे. दूसरे सीजन की कहानी वहीं से आगे बढ़ती है, जहां खत्म हुई थी. दूसरा सीजन तीसरे के दरवाजे-खिड़कियां खोलते हुए खत्म होता है. यानी बात अभी और आगे बढ़ेगी.
2. फैमिली मैन-2
मनोज वाजपोयी और सामंथा की वेब सीरीज द फैमिनी मैन 2 को एबीपी न्यूज़ ने पांच में से तीन स्टार दिए थे. द फैमिली मैन का दूसरा सीजन कई जगहों पर पहले को याद करता है और धीमी रफ्तार से बढ़ता है. पुराना थ्रिल यहां गायब है और सिर्फ मनोज बाजपेयी इसे अपने कंधों पर लेकर आगे बढ़ते हैं. प्रसिद्ध तमिल अभिनेत्री समांथा अक्कीनेनी सधा हुआ अभिनय करती हैं परंतु उनके हिस्से आया एक सख्त-जान, सताई और बदले की आग में जलती युवती का सिंगल ट्रेक दर्शकों को अधिक प्रभावित नहीं करता.
इसमें संदेह नहीं कि मनोज बाजपेयी जबर्दस्त हैं और उन्हें साथी कलाकारों का अच्छा साथ मिला. खास तौर पर प्रियमणि और समांथा का. प्रधानमंत्री बसु की भूमिका में सीमा बिस्वास लगातार ममता बनर्जी की याद दिलाती हैं. शारिब पिछली बार की तरह रोचक नहीं हैं. शरद केलकर समीति दृश्यों के लिए हैं, जिनका कोई खास मतलब नहीं है.
3. बॉम्बे बेगम्स
एबीपी न्यूज़ ने इस वेब सीरीज को पांच में से दो स्टार दिए थे. विश्व महिला दिवस (आठ मार्च) पर रिलीज हुई इस वेबसीरीज में अलंकृता पिछली फिल्मों की तरह स्त्री विमर्श की जरूरी परतों में उतरने के बजाय सस्ते, चटपटे और मसालों के तड़के लगाती हैं. इससे रायता फैल जाता है. यहां वह जमीन से नहीं जुड़ीं और कॉरपोरेट जगत की हवा में तैरते मी-टू अभियान के गुब्बारे पर कब के मुंबई बन चुके बॉम्बे का स्टीकर छाप कर ले आईं. यहां नायिकाओं को उन्होंने बेगम क्यों कहा, यह साफ नहीं है. बाजार तुकबंदी कराता है. संवेदनाएं तुकबंदियों में असर खो देती हैं. ‘बॉम्बे बेगम्स’ भी तुकबंदी है और अंत आते-आते मी-टू की नारेबाजी में बदल जाती है.
‘बॉम्बे बेगम्स’ की बेगमें सामान्य स्त्रियों से बिल्कुल जुदा, हैरान-परेशान हैं. उनके जीवन में कुछ ठीक नहीं चलता. हर किरदार उलझा, जटिल और असहज है. कॉरपोरेट बीवियां विवाहेतर संबंधों में लिप्त हैं और फ्रेशर लड़की अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर असमंजस में है. वह समलैंगिक संबंध बनाती है और अपने पुरुष सह-कर्मी के साथ लिव-इन में रहती है. तर्क यह कि वह खुद को तलाश कर रही है.
4. गुल्लक 2
पिछली ‘गुल्लक’ में जितना ठहराव था वो इसके दूसरे भाग में कहीं नजर नहीं आता है. इसे देख ऐसा लगता है कि निर्देशक को इसे बनाने की इतनी जल्दी थी की उन्होंने न कहानी पर जोर दिया न तो इसके डायलॉग पर. इस तरह की सीरीज को दर्शक ज्यादातर परिवार के साथ देखना पसंद करते हैं जिस वजह से सीरीज के डायलॉग थोड़े और अच्छे होते तो काम बन जाता लेकिन ऐसा कुछ हमें तो देखने को नहीं मिला.
इस बार ‘गुल्लक’ के दूसरे भाग को देखते हुए लगता है कि चाय में चायपत्ती और चीनी की मात्रा को कम किया गया है. जिस वजह से गुल्लक की चाय फीकी और कड़क दोनों ही नहीं है. सीरीज के डायलॉग में अब वो दम नहीं दिखाई देता जो हमें सीरीज के पहले भाग में नजर आया था. 25 मिनट के 5 एपिसोड में बिजली विभाग का कोई भी करंट नहीं है. जिस वजह से इसे आप याद रख पाएं. परिवार की कहानी दिखाने के चक्कर में मुझे लगता है ‘गुल्लक’ के किस्सों को सही से लिखा नहीं गया है. जिसकी कमी इसे देखने में खलती है.
5. मुंबई डायरिज 26/11
मुंबई डायरिज 26/11 को एबीपी ने पांच में से चार स्टार दिए हैं. विश्व इतिहास की सबसे कायराना और शर्मनाक आतंकी घटनाओं में शुमार इस हमले को निर्माता-निर्देशक निखिल आडवाणी ने एक अलग सिरे से पकड़ा है. सिनेमा ऐसे हादसों को या तो सुरक्षा बलों के नजरिये से देखता है या कभी आतंकियों के नजरिये से. कभी घटना को जस-का-तस फिल्माने की कोशिश होती है. मगर डी-डे और बाटला हाउस जैसी फिल्मों के निर्देशक ने 26/11 की अपनी कहानी में, अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाने वाले मेडिकल-जवानों के साहस, शौर्य और बलिदान को दिखाया है.
मुंबई डायरीज 26/11 में दिखाया गया कथानक पूर्ण सत्य नहीं है. बल्कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसके लेखकों और निर्देशक ने हमले की शक्ल दिखाने के लिए बेहिसाब छूट ली है और हमले की भयावता को सफलता से रचा है. वेब सीरीज हमलों की दर्दनाक तस्वीरें दिखाने के साथ सरकारी अस्पतालों का हाल भी पेश करती है. किसी आपात स्थिति के लिए वे कितने तैयार हैं यह बात तो दूर, आम दिनों में ही वहां न दवाएं होती हैं और न औजार या जरूरत का बाकी सामान. यह देखने योग्य वेब सीरीज है, जो हर बढ़ते एपिसोड के साथ अपनी जकड़ बढ़ाती है. हालांकि पूरे तनावपूर्ण घटनाक्रम में डॉ. ओबेराय की जिंदगी फिल्मी ड्रामे की तरह हल्की लगती और आउट-ऑफ-फोकस लगती है.