Happy Birthday Lata Mangeshkar : लता मंगेशकर को 'स्वर कोकिला' और 'सुर सामाज्ञी' कहा जाता है, उनके आवाज की पूरी दुनिया दीवानी है, लेकिन खुद लता मंगेशकर को क्रिकेट का खुमार है. एक आम इंसान की तरह वो सचिन तेंदुलकर जबरा फैन हैं. क्रिकेट के अलावा उन्हें फोटोग्राफी का बड़ा शौक है. वो पहले जब भी किसी टूर पर जातीं तो कैमरा जरुर उनके साथ होता. उन्हें कैमरे की इतनी बारीक जानकारियां हैं कि कभी कभी लोग सुनकर चौक जाते हैं.
लता मंगेशकर की जीवनी लिखने वाली हरीश भिमानी ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है. किताब के सिलसिले में करीब 7 सालों तक हरीश भिमानी लता मंगेशकर के टूर में उनके साथ रहे. इसी दौरान एक बार उन्हें फोटोग्राफी के बारे में पता चला. वो लिखते हैं, ''आज अगर फोटोग्राफर लता का फोटोग्राफी का मूड है तो कमरे में लेन्स वगैरह निकालकर बिस्तर पर बिछाए जाएंगे. लेकिन किसी के आने पर कहा जाएगा कि बस यूं ही सफाई हो रही थी. इसके बाद वो कहेंगी कि चलो तुम्हारी एक तस्वीर खींच लेती हूं और इसी के साथ ही फोटोग्राफी सेशन की शुरुआत हो जाएगी.''
पेरिस सुनते ही चमक जाती हैं लता की आंखें
हर बड़े सितारे को अपनी चमक धमक की एक कीमत चुकानी पड़ती है. आम लोगों की तरह ना वो सड़क पर चल सकते हैं ना ही घूम सकते हैं. सितारों को अपने देश से बाहर उस जगह, उस शहर की तलाश रहती है जहां वो आम लोगों तरह कुछ समय बिता सकें. ऐसे सुकून भरे पल के लिए लता मंगेशकर को पेरिस बहुत पसंद है.
हरीश भिमानी ने अपनी किताब में लिखा है कि पेरिस का नाम आते ही उनकी आंखों में चमक आ जाती है. खुद लता इस बारे में कहती हैं, ''यहां पर होटल में रहने वाला, रास्ते पर चलने वाला हर इंसान मुझे पहचानता नहीं है. ऐसा लगता है कि 'लाइट्स ऑफ हो गई हैं और कैमरा हटा दिया गया है.'''
क्रिकेट की जबरा फैन हैं लता मंगेशकर
भारत में क्रिकेट का खुमार हर किसी के सिर पर छाया रहता है. ऐसा ही लता मंगेशकर के साथ भी है. वो कोई भी मैच मिस नहीं होने देती. अगर भारत कोई मैच हार जाए तो उनका मूड ऐसा खराब होता है कि नॉर्मल होने में उन्हें वक्त लग जाता है. उनके इस क्रिकेट से प्यार का जिक्र यतीन्द्र मिश्र ने अपनी किताब ‘लता : सुर-गाथा' में विस्तार से किया है.
किताब लिखने के दौरान का एक वाकया याद करते हुए यतीन्द्र ने कुछ समय पहले एक ब्लॉग में लिखा, ''अगर किसी दिन सचिन तेंदुलकर खेल रहे हैं और भारत हार गया है, तो समझिए कि बातचीत हफ्तों तक टलने वाली है. यह क्रिकेट ही था, जो ‘लता : सुर-गाथा’ में एक विवादी स्वर की तरह सामने आ जाता था. हर बार दीदी जब क्रिकेट के मोह से निकलकर कई दिनों के अन्तराल के बाद बतियाती थीं, तो उनकी आवाज़ में वो खुशी भी शामिल रहती थी कि कैसे पिछला मैच बड़े शानदार ढंग से भारत जीत गया है. फिर एस.डी. बर्मन की बात के बीच में बड़े आराम से महेन्द्र सिंह धोनी चले आते थे.''
पांच साल की उम्र से गायन की शुरुआत
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 में एक मध्यम वर्गीय मराठा परिवार में हुआ. पांच साल की उम्र से ही उन्होंने गाना शुरु किया था. पिता दीनानाथ मंगेशकर ही उनके गुरु थे. पिता नहीं चाहते थे कि लता फिल्मों में गाएं. लेकिन सब कुछ ऐसा नहीं हुआ जैसा उन्होंने सोचा था. उनके निधन के बाद लता के ऊपर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई.
लता ने 2016 में प्रभु चावला को दिए एक इंटरव्यू में उन दिनों को याद करते हुए बताया, ''13 साल की उम्र में पिता का देहांत हो गया. इंसान को वक्त सब सिखा देता है. मराठी लोग जो हिंदी में काम करते थे उनके उच्चारण वैसे ही होते थे. शुरु में मुझे भी डर लग रहा था. जब मेरे सर पर पूरा भार आ गया तो मैंने उर्दु, हिंदी सीखी.''
लता मंगेशकर करीब 30,000 गाने गा चुकी हैं. अब लता गाने कम ही गाती हैं. इस दौर के संगीत से लता निराश भी दिखती हैं. अपने इसी इंटरव्यू में लता ने कहा, ''गानों का महत्व अब फिल्मों में कम होता जा रहा है. पहले कैबरे होता था और उसके लिए आर्टिस्ट अलग होते थे. हेलन थीं उनके लिए गाने बनते थे. आज हीरोइन ही कैबरे करने लगी है. पहले जैसे गाने अब आते नहीं है. अब तो एक ही टाइप के गाने गाते हैं. अब हीरो हीरोइन सपना देख रहे हैं, ऐस ही गाने आते हैं अब.''