Mohammad Rafi Facts: महान गायक मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi) जब पहली बार मुंबई आए तो उन्हें सबसे पहले केएल सहगल की फिल्म शाहजहां में कोरस गाने का मौक़ा मिला. फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद थे. पहले दिन की रिकॉर्डिंग खत्म हुई तो नौशाद ने देखा कि रफी स्टूडियो से गए नहीं और वहीं बैठे हुए हैं. उन्होंने रफी साहब से पूछा, तुम घर नहीं गए? रफी बोले, नहीं नौशाद ने पूछा, क्यों, आज की रिकॉर्डिंग तो पूरी हो गई… रफी बोले, हां हुजूर लेकिन कल फिर रिकॉर्डिंग है और मेरे पास घर जाकर वापस आने के पैसे नहीं… नौशाद बोले, पैसे नहीं हैं तो मांग लेते … रफी बोले-साहब अभी रिकॉर्डिंग पूरी नहीं हुई तो मेहनताना कैसे मांग लूं?
रफी साहब की ये बातें सुनकर नौशाद खुश हो गए. उन्होंने मोहम्मद रफी को कुछ पैसे दिए और ढेर सारा आशीर्वाद भी. इसके बाद नौशाद ने मोहम्मद रफी को उनका हिंदी सिनेमा का पहला गाना दिया. गाने के बोल थे-दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी. यह बतौर प्लेबैक सिंगर रफी साहब का पहला गाना था जो कि फिल्म गांव की गोरी में था.
इसके बाद नौशाद ने रफी साहब से कई गाने गवाए और उनकी गायिकी को तराशते रहे. 1951 में नौशाद साहब फिल्म बैजू बावरा का संगीत बना रहे थे जिसके गानों के लिए उन्होंने रफी साहब को ही चुना. फिल्म एक शास्त्रीय गायक की कहानी थी जो कि अपने ज़माने में तानसेन की टक्कर में खड़ा हो जाता है.
ऐसे में रफी साहब को इतना रियाज़ करना पड़ा कि उनका गला छिल गया और इससे खून भी आने लगा. रफी साहब ने बिना शिकवे-शिकायत के नौशाद साहब के कहने पर खूब रियाज किया और कठिन से कठिन रिकॉर्डिंग को पूरा किया. आखिरकार जब फिल्म हिट हुई तो रफी साहब लेजेंडरी सिंगर बन गए.
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