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Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

2016 में हुए उरी हमले का हमने खूब बदला लिया. शत्रु को बता दिया या कि तुम एक मारोगे तो हम सौ मारेंगे. यह आसान नहीं था. हर हाल में शांतिदूत बने रहने के पुराने संकल्प की हिचक से पार पाना कठिन था. अवरोध, उसी हिचक के टूटने की कहानी है...

Avrodh: The Siege Within Review: आजकल इतिहास तेजी से लिखा जा रहा है. पाकिस्तान के पाले हुए जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी स्थित भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर हमला किया. भारत ने सधा हुआ पलटवार किया. यह किताबों और सिनेमा में दर्ज हो चुका है. अब बारी है डिजिटल प्लेटफॉर्म की. सोनी लिव पर प्रसारित हो रही वेबसीरीज अवरोधः द सीज विदिन बताती है कि उरी हमले के कई पहलू अभी तक लोगों के सामने नहीं आए. वह इन्हें दिखाने की कोशिश करती है. यह वेबसीरीज शिव अरुर और राहुल सिंह की किताब इंडियाज मोस्ट फीयरलैस पर आधारित है.

पिछले साल की बड़ी हिट फिल्म उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक से अवरोध एक मायने में खास तौर पर अलग है. वह यह कि वेब सीरीज हमें भारत सरकार के द्वंद्व के बारे में बताती है. हिंदुस्तान बदल रहा है. कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को आदर्श मानकर व्यवहार करने वाला देश अब वीर सुभाष की बातें भी सुनने लगा है. यह बदलाव रातोंरात नहीं आया.

Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

शीर्ष नेताओं, अधिकारियों और रणनीतिकारों के लिए शांति के आलाप की दशकों पुरानी घेराबंदी तोड़ना आसान नहीं था. यह सच है कि इस बदलाव की प्रक्रिया में देश के अंदर भी कुछ टूट-फूट हो रही है. अवरोधः द सीज विदिन राजनीति और मीडिया के टकराव को खास तौर पर सामने लाती है. जिसमें राष्ट्रवादी नेताओं, रणनीतिकारों और नीतियों के आगे मीडिया घुटने टेकता नजर आता है.

Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

अवरोधः द सीज विदिन (Avrodh: The Siege Within) उरी में सेना के कैंप पर हमले के षड्यंत्र और उस काली रात (18 सितंबर) की घटनाओं से शुरू होती है. यह दिखाती है कि हमले के बाद सरकार में बैठे अधिकारी और नेता शुरुआत में खुद को बेबस महसूस कर रहे थे. मगर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शैलेष मालवीय (नीरज कबी) को लगता है कि अब बहुत हो चुका, जैसे को तैसा जवाब देने से ही बात बनेगी. मगर रक्षा सचिव सतीश महादेवन (अनंत महादेवन) को अपने पक्ष में कर लेना आसान नहीं था.

Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

प्रधानमंत्री (विक्रम गोखले) जरूर मालवीय को तवज्जो देते हैं परंतु कैबिनेट के नेताओं, सेना प्रमुखों की राय के बगैर कुछ नहीं हो सकता. फिर सेना के पास भी वैसे कमांडर और तैयारी चाहिए जो रातोंरात कड़ा जवाब दे सकें. उस पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्रसंघ का दबाव.

वेब सीरीज में यह कश्मकश साफ दिखती है कि कैसे दशकों से चली आ रही शांति के पहरुए की छवि से बाहर निकल कर दुश्मनों और दुनिया को बताया जाए कि बहुत हो चुका है, हिंदुस्तान अपने ऊपर अब किसी तरह के हमले नहीं सहेगा.

वेब सीरीज में उरी का घटनाक्रम वही है जिसमें भारतीय सैनिकों के अत्यंत कुशल दस्ते ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाकर कई आतंकी ठिकानों को उड़ा दिया. दर्जनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इस दस्ते की जांबाजी नौ कड़ियों की आखिरी दो कड़ियों में सिमटी है.

Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

पहले के हिस्से राजनीतिक और राजनयिक घटनाओं को केंद्र में रखते हैं कि कैसे भारत सरकार ने अपने पुराने इरादों को 180 डिग्री तक घुमाया. उसकी जिद्दोजहद कैसी थी. इनके बीच वेबसीरीज में जो सबसे अहम बात उभरती है, वह है रायसीना हिल्स से मीडिया का नियंत्रण.

अवरोध में तेज तर्रार पत्रकार नम्रता जोशी (मधुरिमा तुली) को अंदर की खबरें करने से रोका जाता है और आश्चर्यनक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार साफ शब्दों में उससे कहता है कि तुम्हें देशहित में पत्रकारिता छोड़ कर कोई किताब लिखने का काम करना चाहिए. अवरोधः द सीज विदिन में सत्ता और मीडिया की खींचतान खूब उभरी है.

रोचक बात यह कि मीडिया के रूप में वेबसीरीज में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल को ही यहां दर्ज किया गया है. प्रिंट गायब है. वेबसीरीज साफ संकेत देती है कि जब राष्ट्रवाद सरकार का मुख्य स्वर होगा तो उसमें मीडिया की क्या जगह होगी और उसे किस तरह से काम करना या न करना होगा.

Avrodh Review: उरी हमले के बदले की बची हुई कहानी

वेब सीरीज की कास्टिंग अच्छी है. अभिनेताओं का चयन सटीक है. इन कलाकारों ने अपना काम अच्छे ढंग से किया है. मगर इनके बीच नीरज कबी, अमित साध, मधुरिमा तुली और अनिल जॉर्ज अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अमित साध पाकिस्तान में घुस कर हमला करने वाले जांबाजों के नायक हैं. जबकि जॉर्ज वेबसीरीज के एकमात्र खलनायक, आतंकी लीडर जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया के रोल में हैं.

निर्देशक राज आचार्य ने सीरीज का लुक वास्तविक रखा है. चीजें अतिरंजित नहीं होने दीं. अतः यहां घटनाओं में ड्रामा नहीं है. उन्हें सहजता से पेश किया गया है. कई लोगों को यह वेबसीरीज प्रोपगंडा भी लग सकती हैं परंतु तब भी यह सत्ता के नए तेवरों और उसके कामकाज के बदले ढंग और विचारों के नए-पुराने अवरोधों को सामने तो लाती ही है.

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