जब रिश्ते में प्यार खत्म हो जाता है तो वह जेल बन जाता है. जेल में कोई नहीं रहना चाहता. आजादी इंसान का हक है. लेकिन ब्लैक विडोज में रिश्ते से आजादी पाने के लिए तीन शादीशुदा महिलाएं मिलकर अपने-अपने पतियों को खत्म कर देती हैं. काम तो एक झटके में हो जाता है मगर सवाल यह कि इसके बाद क्या. तीन लोगों के गायब होने पर क्या पुलिस केस नहीं बनेगा. क्या उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली जाएगी. जांच-पड़ताल नहीं होगी. क्या बीवियों पर शक नहीं जाएगा. क्या वो बच पाएंगी. आजादी की भी कीमत होती है. यहां गुत्थी तब और उलझ जाती है जब सिर्फ दो लाशें मिलती हैं और एक का पति जिंदा लौट आता है. अब कैसे बचेंगी षड्यंत्र रचने वाली बीवियां.


ब्लैक विडो एक काली जहरीली मकड़ी होती है. ब्लैक विडो ऐसी महिला को भी कहते हैं जो अपने प्रेमी या प्रेमियों के लिए एक से अधिक हत्याएं करती है. ब्लैक विडो उस महिला को भी परिभाषित किया जाता है जो आत्मघाती बम बन जाती है, जिसका पति पहले ही मारा जा चुका हो. मगर जी5 पर आई इस वेबसीरीज में ब्लैक विडो एक पासवर्ड है. यहां तीन सहेलियां वेरा (मोना सिंह), कविता (शमिता शेट्टी) जया (स्वास्तिका मुखर्जी) अपने पतियों के अत्याचारों से तंग हैं. एक अपनी पत्नी को बुरी तरह मारता-पीटता है, दूसरा करिअर में आगे बढ़ने के लिए पत्नी को दूसरों के आगे पेश करता है और तीसरा रिश्ता टूटने पर बेटी को तक जान से मारने की धमकी देता है. ऐसे रिश्तों में कैसे रहा जा सकता है. यह कहानी तीनों महिलाओं के इर्द-गिर्द घूमती है और शुरू से अंत तक बांधने में कामयाब होती है.



ब्लैक विडोज 12 कड़ियों की वेबसीरीज है, जिसमें निरंतर उतार-चढ़ाव आते हैं. पहले ही एपिसोड में पतियों की मोटरबोट में विस्फोट के बाद पुलिस की एंट्री होती है और फिर थोड़ी-थोड़ी देर में कहानी में नए-नए रंग आते हैं. तीनों पतियों की जिंदगी, उनका कारोबार, पुलिस जांच, एक के बाद एक हत्याएं, पैसों का लेन-देन, सौदेबाजी और ब्लैकमेलिंग कहानी को रफ्तार देती हैं. पतियों के अत्याचार या पति-पत्नी की निजी जिंदगी की तस्वीरें गायब हो जाती हैं. सीरीज का केंद्र बिंदु एक-दूसरे से गुंथी अपराध कथाओं पर शिफ्ट हो जाता है. हत्याओं की पुलिस जांच में मेडिसिन इंडस्ट्री का ट्रेक भी आ जाता है. जिसमें बिहार के दूर-दराज के एक गांव में वैक्सीन के चोरी-छुपे ट्रायल की बात निकल कर आती है और फिर दूर तलक जाती है.



वेरा, कविता और जया की जिंदगियों में नए पुरुषों की एंट्री होती है लेकिन अलग-अलग अंदाज में. अच्छी बात यह है कि लेखक-निर्देशक ने इस बात को तूल नहीं दिया. वेरा के रूप में मोना सिंह का अभिनय सधा हुआ है जबकि कविता बनी शमिता शेट्टी यहां भावनात्मक रूप से असुरक्षित और तीनों में सबसे कमजोर कड़ी हैं. शमिता ने यह रोल अच्छे ढंग से निभाया है. लंबे समय बाद वह किसी भूमिका से न्याय करती नजर आई हैं. स्वास्तिका बेहतरीन अभिनेत्री हैं और यहां फिर उन्होंने यह बात साबित की है. तीनों किरदारों ने मिलकर ब्लैक विडोज को इस बात के बावजूद संभाले रखा कि यहां आगे बढ़ती हुई कहानी में सहजता खत्म हो जाती है. कहीं-कहीं ड्रामा ओवर लगता है. ब्लैक विडोज की शुरुआत में कॉमिक टोन और ब्लैक ह्यूमर नजर आते हैं, जो धीरे-धीरे गायब हो जाते हैं. सारा मामला संवेदनाओं से सिमट कर सीधे घटनाक्रम पर फोकस हो जाता है और दर्शक के सामने सिर्फ यही आना बाकी रहता है कि क्या पुलिस ब्लैक विडोज का पर्दाफाश करेगी.


ब्लैक विडोज अपनी बुनावट में रोचक है. तीनों नायिकाओं के किरदार अच्छे से लिखे गए हैं. एसआईटी ऑफिसर पंकज मिश्रा के रूप में परमब्रत चट्टोपाध्याय के किरदार में भी रोचक परतें हैं. जबकि रायमा सेन की एंट्री कहानी को सहज ढंग से आगे बढ़ाने में कामयाब रहती है. थोड़ी देर से आने के बाद भी रायमा कहानी का मुख्य हिस्सा बन जाती हैं. कई अन्य छोटे-छोटे किरदार भी यहां समय-समय पर आते-जाते हैं. कोरोना के बाद मानव निर्मित वायरस का बड़ा खतरा हमारे सामने है और वायरस के लिए वैक्सीन की तलाश थ्रिल से कम नहीं है. लेखक-निर्देशक ने इस बात को यहां अच्छे ढंग से भुनाया है. ब्लैड विडोज अपने मूल आइडिये से बहुत दूर निकल जाती है मगर बिखरती नहीं. इसका श्रेय निर्देशक बिरसा दासगुप्ता को जाता है, जो बांग्ला के एक मजबूत फिल्मी बैकग्राउंड वाले परिवार से आते हैं. इससे पहले जी5 पर उनकी थ्रिलर वेबसीरीज माफिया आई थी, जो काफी पसंद की गई. यहां भी बिरसा गिरगिट के जैसी रंग बदलती कहानी पर अपना नियंत्रण रखने में सफल रहे हैं.