धर्म का धंधा करने वाले कभी टॉर्च की रोशनी भक्तों की आंखों में झोंक कर उनकी पॉकेट मारा करते थे मगर अब वह हैलोजन लाइट से उन्हें नहलाते हैं और 360 डिग्री एंगिल में अपना बिजनेस फैलाते हैं. सिर्फ समाज के पिछड़े, गरीब, दुखियारे ही इन धंधेबाजों से गंडा नहीं बंधवाते बल्कि बड़े रईस, व्यापारी, उद्योगपति और राजनेता भी उनकी शरण में जाते हैं. इन रसूखदारों के धर्म की छतरी के नीचे आने से यह धंधा अब बड़ा गोरखधंधा बन चुका है. निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा ने अपनी पहली वेबसीरीज आश्रम में इसी गोरखधंधे की परतें उघाड़ी है. आश्रम का पहला सीजन शुक्रवार को एमएक्स प्लेयर पर रिलीज हुआ.


प्रकाश झा ने बड़े कैनवास पर आश्रम की तस्वीर उतारी और वह सधे हुए दृश्यों से बात रखते हैं. हालांकि पहले ही यह वैधानिक सूचना देते हैं कि यह धर्म की असली तस्वीर नहीं है. वह केवल उन लोगों की कारगुजारियां सामने ला रहे हैं जो धर्म की आड़ में भोले-गरीबों को बहला कर उन्हें बकरा बनाते हैं. हम अपने पुराने अनुभवों से कह सकते हैं सहनशील सनातन समाज आश्रम की कथा उसी भाव से स्वीकार करेगा, जैसे वह संसार को माया मानकर पूरी लगन से अपने जीवन का निर्वाह करता है. जैसे सच्चे भक्त अंधे होते हैं, वैसे ही सच्चे दर्शक रेनकोट पहन कर मनोरंजन के शॉवर में नहाते हैं.



इधर के समय में कहानियां और हकीकत एक-दूसरे में मिक्स हो चुके हैं. कब कहानी में हकीकत आती है और कब हकीकत किसी कहानी जैसा दिल बहलाने लगती है, फर्क करना मुश्किल हो जाता है. आश्रम में सच और एंटरटेनमेंट के सारे तत्व घुले-मिले हैं. एक हैं काशीपुर वाले बाबा. एक रूप-महास्वरूप बाबा निराला सिंह (बॉबी देओल). उन्हें गरीबों के बाबा, नसीब वालों के बाबा और न जाने क्या-क्या कहा जाता है. प्रकाश झा सधे हुए फिल्मकार हैं और सामाजिक थ्रिलर उनका मैदान है. इसलिए उन्होंने इस वेबसीरीज में बाबा की एंट्री के लिए पहले मजबूत जमीन तैयार करने का काम किया. फिर असली कहानी की तरफ बढ़े. उन्होंने पहले जातियों की ऊंच-नीच, नफरत-सहानुभूति का खेल दिखाया है, जिसमें बाबा आसानी से पैर जमा लेता है. फिर चलती है बाबा के अतीत की फिल्म, बिजनेस के साथ राजनीति की गलबहियां, जंगल-जमीन की लूट, पुलिस का भ्रष्टाचार और मजबूरियां, मोक्ष दिलाने के नाम पर छल, नारी उद्धार के नाम पर शोषण, अस्पतालों और शिक्षा की आड़ में भक्त-भेड़ें पालने का धंधा. प्रकाश झा आश्रम की दिव्यता के पतन का सच सामने लाते हुए एक के बाद एक दरवाजे खोलते हैं. रंगीन झालरों से सजे हर दरवाजे के पीछे एक गहरी कालिख वाला अंधेरा है.


यहां बाबा अपने लाखों भक्तों को राजनीतिक दलों के वोट बैंक में बदल देता है तो कभी प्रताड़ित नारी उद्धार का झंडा बुलंद करने के लिए सैकड़ों सेक्स वर्करों को पुलिस से पकड़ा कर अपने दीन-हीन सेवादारों से उनका ब्याह करा देता है. युवाओं को आकर्षित करने के लिए वह यूथ आइकन नशेड़ी पॉप गायक को उठवा लेता है तो किसी सेवादार की बीवी पसंद आने पर सेवादार को आत्मिक शुद्धिकरण के नाम पर नपुंसक बनवा देता है. अपने खिलाफ जांच करने वाले उच्च पुलिस अधिकारी को वह विषकन्या के जाल में फंसाता है तो अपने राज बनाए रखने लिए किसी की हत्या करके दफन कराने में भी पीछे नहीं रहता. ये सारी बातें आश्रम की कहानी में आते हुए सच का ही आभास देती हैं. बीते कुछ वर्षों में दर्जनों ढोंगी, पाखंडी, लुटेरे, बलात्कारी और हत्यारे बाबाओं का पर्दाफाश हुआ और वह जेलों में भी गए. आश्रम की कई घटनाएं साफ बताती हैं कि इसके लेखकों की टीम ने इन्हीं बाबा-लोग की करतूतों से प्रेरणा ली है.



आश्रम में बॉबी देओल अपनी भूमिका में फिट हैं और यह किरदार उनकी लीड रोल में वापसी पर मुहर लगाता है. लेकिन उन्हें मुख्य सेवादार भूपा जी बने चंदन रॉय सान्याल का अच्छा साथ मिला है. काले कारनामे करती यह जोड़ी जब सामने आती है तो नया गुल खिलाती है. पुलिस अधिकारी के रूप में दर्शन कुमार प्रभाव छोड़ते हैं. प्रकाश झा ने उजागर सिंह (दर्शन कुमार) के बहाने पुलिस महकमे में काबिल और कोटे से आए/प्रमोशन पाने वाले पुलिस अधिकारियों के बीच तनाव को आश्रम की कहानी के सामानंतर खूबसूरती से उभारा है. यह अलग बात है कि उजागर का पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टर नताशा (अनुप्रिया गोयनका) से प्रेम का ट्रेक फिल्मी आभास देता है. आश्रम की कहानी भले ही पहलवान पम्मी (अदिति पोहनकर) से शुरू होती है मगर सीजन वन में उसके बाबा निराला की भक्त बनने के साथ इस किरदार में ठहराव आ जाता है. दूसरे सीजन में पम्मी से करिश्मे की उम्मीद रहेगी. पम्मी के भाई बने तुषार पांडे और उनकी पत्नी बनी त्रिधा चौधरी की कहानियां भी अगले सीजन में अधिक विस्तार के साथ सामने आएंगी. प्रकाश झा ने सीजन वन को ऐसे मोड़ पर छोड़ा है, जहां से आप दूसरे सीजन का इंतजार करेंगे.