Chakravyuh Review: यह नए जमाने का थ्रिलर है. जब कैमरे की नजर से कुछ भी बचा नहीं है और बंद कमरों की अंतरंग तस्वीरें तथा प्राइवेट वीडियो तक उसमें कैद हैं. कैमरे की ये निजी तस्वीरें और वीडियो कभी गलती से, कभी शरारतन और कभी षड्यंत्र के द्वारा लीक हो जाते हैं. पूरी दुनिया में इनका बड़ा बाजार बन चुका है. ग्लोबल दुनिया के ये लीक वीडियो आपको गली-मोहल्लों में मिल जाएंगे. इस कारोबार का ऐसा चक्रव्यूह बन चुका है, जिसमें फंसने वाला बाहर नहीं निकल पाता. ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर आई ताजा वेबसीरीज में इसी चक्रव्यूह का थ्रिलर बुना गया है. जो न केवल इसमें फंसने वालों की छटपटाहट दिखाता है बल्कि इससे जुड़े अपराधों तथा अपराधियों को भी सामने लाता है.


लेखक पीयूष झा के करीब सात साल पहले आए अंग्रेजी उपन्यास ‘एंटी सोशल नेटवर्कः एन इंस्पेक्टर वीरकर क्राइम थ्रिलर’ से प्रेरित यह वेबसीरीज निर्देशक सजित वारियर लाए हैं. चक्रव्यूह की कहानी रोचक है. मुंबई में अकेलेपन की शिकार सागरिका पुरोहित (रूही सिंह) की मुलाकात सहेली के जरिये एक युवक, राज से होती है. मोबाइल पर सोशल नेटवर्किंग के सहारे हुआ ‘इंट्रो’ सागरिका को पहले क्लब और फिर ऐसे कमरे तक पहुंचाता है, जहां उसका सेक्स वीडियो बन जाता है. यह सोशल मीडिया में लीक न हो जाए, इसलिए वह ब्लैकमेल होना शुरू होती है. इसी दौरान राज की हत्या हो जाती है और क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर वीरकर (प्रतीक बब्बर) की कहानी में एंट्री होती है. इससे पहले कि यह केस सुलझे सागरिका गायब हो जाती है और एक के बाद एक हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है. क्या सागरिका अपने साथ हुए धोखे का बदला ले रही है? जब तक वीरकर यह बात स्थापित कर सके तब तक सागरिका की लाश सामने आ जाती है. पता चलता है कि कोई मास्टर माइंड है, जो युवाओं को ‘सेक्सप्लॉइट’ करके ब्लैकमेलिंग का बिजनेस चला रहा है. यह भी उभरता है कि यह गंदा धंधा इंडियन करेंसी में नहीं बल्कि क्रिप्टो करेंसी में हो रहा है.



चक्रव्यूह एक अनदेखी दुनिया में ले जाती है. जहां सब कुछ तेज रफ्तार से चलता है. यहां इंटरनेट की तरंगों से पैदा होने वाली वह आभासी दुनिया है, जिसमें आज का युवा जकड़ा है और निरंतर कई तरह के खतरों की जद में है. यहां बड़ी मछलियां छोटी मछलियों का आसान शिकार कर रही हैं. वेबसीरीज में एक के बाद एक किरदार तेजी से आते-जाते हैं. ड्रग्स, अल्कोहल, सेक्स, हैकिंग, डार्कवेब, अकेलापन, डिप्रेशन और ब्लैकमेलिंग केंद्र में है. जबकि इन तमाम नेगेटिव चीजों से अकेले जूझने की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर वीरकर पर है. इसमें भी समस्या यह कि वीरकर के काम करने के तेज-तर्रार अंदाज से उसके सीनियर नाखुश हैं और डीसीपी उसे चलते केस के बीच से सस्पेंड करने का आदेश जारी कर देते हैं. तय है कि इसके बाद भी इंस्पेक्टर अपराधियों का पीछा नहीं छोड़ता और मिशन पूरा करने ही दम लेता है.


प्रतीक बब्बर के अलावा निर्देशक ने बाकी कलाकारों का सीमित उपयोग किया है. सिमरन कौर मुंडी की भूमिका में जरूर थोड़ा विस्तार है लेकिन शिव पंडित की एंट्री काफी देर से होती है. जबकि बाकि कलाकार तेजी से अपना काम निपटा कर कहानी से बाहर हो जाते हैं. इस लिहाज से चक्रव्यूह में लगातार रफ्तार बनी रहती है और कहीं ठहराव नहीं आता. इतना जरूर है कि प्रतीक बब्बर के किरदार के बहाने पुलिस विभाग की अंदरूनी खींच-तान और अफसरों के रवैये में कोई नई बात नहीं दिखाई गई. ऐसा पहले भी कई कहानियों में आप देख चुके हैं. वेबसीरीजों में इधर, नायकों को अक्सर नायिका से प्रेम में बजाय आजाद और अलग-अलग महिलाओं के साथ संबंध में लिप्त दिखाने का चलन हो गया है. चक्रव्यूह में भी प्रतीक से प्रेम करने वाली दफ्तर की जूनियर एकतरफा ही दिल लगाती है, जबकि हीरो ‘मैच्योर महिला’ के साथ संबंध स्थापित करता है.



प्रतीक अच्छे अभिनेता हैं और यहां अपने रोल को उन्होंने बखूबी निभाया है. सिमरन कौर मुंडी, रूही सिंह और आशीष विद्यार्थी भी अपनी भूमिकाओं में जमे हैं. सजित वारियर कहानी पर पकड़ बनाए रहते हैं और करीब आधे-आधे घंटे की आठ कड़ियों वाली यह वेबसीरीज कहीं ढीली नहीं पड़ती. इतना जरूर है कि इसे और बेहतर ढंग से लिखा जा सकता था क्योंकि उपन्यास में बहुत कुछ विस्तार से पहले ही मौजूद है. खास तौर पर पुलिस डिपार्टमेंट की कार्यशैली में कुछ नया जोड़ने-दिखाने की जरूरत थी. यहां की जाने वाली मेहनत वेबसीरीज को नया रंग दे पाती.