अपने इरादे साफ हैं तो सारे बहाने माफ हैं. कई लोग यह मानते हुए ईमानदार बने रहते हैं मगर दुनिया इरादों की सफाई नहीं देखती. वह तमाम गोरखधंधों के बीच सीधा-सच्चा इंसान चाहती है. इसीलिए अक्सर महानगरों की रिहायशी सोसायटियों में जब अमर प्रेम की कसम से बंधे लड़का-लड़की लिव-इन के इरादे से किराये पर मकान मांगने जाते हैं तो ज्यादातर उन्हें नाकामी हाथ लगती है.
यही मुश्किल कॉमेडी कपल में दीप शर्मा (शाकिब सलीम) और जोया बत्रा (श्वेता बसु प्रसाद) के सामने खड़ी है. वह स्टेज से लेकर रीयल लाइफ तक कपल यानी जोड़ी हैं परंतु देश की राजधानी से लगे गुरुग्राम में उन्हें धक्के खाने पड़ते हैं. ब्रोकर दोस्त के जुगाड़ के बीच उनकी दुनिया बसती-उजड़ती रहती है. परंतु असली समस्या तब आती है जब दीप के झूठ जोया के सामने आने लगते हैं.
दीप किसी सोसायटी में जोया को बहन बता कर फ्लैट लेता है तो कभी शादी का फर्जी सेर्टिफिकेट बनवाने की तैयारी करता है. उसका यह झूठ भी पकड़ा जाता है कि दो-तीन बरस बीतने के बावजूद उसने जोया संग लिव-इन रिलेशनशिप की बात मां-बाप से छुपा रखी है. उसने परिवार में यह भी झूठ कहा है कि वह एक कंपनी में इंजीनियर है, जबकि दो साल पहले नौकरी छोड़ वह स्टैंड-अप कॉमेडी में आ चुका है.
वास्तव में कॉमेडी कपल दीप शर्मा के भेड़िया आया जैसे सिलसिलेवार झूठ-पर-झूठ की कहानी है. जबकि गांधीवादी पिता (राजेश तैलंग) बचपन में ही उसे समझा चुके हैं कि झूठ की बुनियाद गीली मिट्टी पर टिकी होती है. कॉमेडी कपल जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसकी गीली मिट्टी पर दीप के पैर फिसलते जाते हैं और उसकी दुर्गति होती जाती है.
जी5 पर रिलीज हो रही एक घंटे 55 मिनिट की कॉमेडी कपल मूल रूप से महानगरों के उन युवाओं को आकर्षित करने वाली फिल्म है, जो यहां की समस्याओं और तनावों बीच हंसी के पल ढूंढते हैं. मैट्रो स्टैंड-अप कॉमेडी के चुटकुले किताबी नहीं होते और इन्हें समझने के लिए एक खास मानसिक बुनावट की जरूरत होती है. जो रात-दिन यहां की आपा-धापी से रू-ब-रू होते हुए समय के साथ पैदा होती है. अतः यह आम दर्शक की फिल्म होने के बजाय ऐसी कॉमेडी है, जिसे समझने के लिए आपको महानगरों और उसके उथल-पुथल भरे जीवन को कम या अधिक जानना पड़ेगा. कॉमेडी कपल उस दर्शक वर्ग की फिल्म है, जो दिल्ली-मुंबई-चेन्नई-बंगलुरू जैसे महानगरों में रहता है.
बिकास रंजन मिश्रा, राघव राज कक्कड़, कश्यप कपूर और गौरव शर्मा जैसे लेखकों की टीम ने इसे मिलकर लिखा और विकसित किया है. निर्देशक ने महानगरीय जीवन के रिश्तों को दीप और जोया की कहानी के बहाने पर्दे पर उतारा है. इस रिश्ते में लगातार हिचकोले पैदा होते हैं और स्थायित्व आसानी से नहीं आता. कॉमेडी कपल बताती है कि दोनों की परवरिश बिल्कुल अलग-अलग ढंग से हुई. जोया जहां सिंगल मदर (पूजा बेदी) की बनाई हुई आत्मनिर्भर युवती है तो दीप एक पारंपरिक हिंदू परिवार से आया युवक है, जो बचपन से मिले संस्कारों से न बगावत कर पाता है और न खुद को उनमें एडजस्ट कर पाता है.
इन बातों के बीच निर्देशक ने देश के बदलते राजनीतिक-सामाजिक माहौल को भी उतारने का भरसक प्रयास किया है. स्टैंड-अप कॉमेडी में आने वाले गौ-मूत्र के प्रसंग से कहानी की धारा में कुछ मोड़ पैदा किए गए हैं और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे सवाल को छुआ गया है. इन बातों के बीच फिल्म पूरी तरह से दीप-जोया की जिंदगी की अस्थिरता पर केंद्रित है. कहने को वह कपल हैं मगर परिस्थितियों की वजह से उनके लिए साथ बने रहना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में उनके रिश्ते का क्या होगा.
कॉमेडी कपल में मैट्रो अंदाज की कॉमेडी के साथ रोमांस भी है और इसकी का नतीजा है, कुछ सुनने लायक गीत-संगीत. कहानी में संगीत को अच्छे ढंग से पिरोया गया है और रोमांटिक गाने अच्छे बने हैं. फिल्म में ठहाका मार कर हंसने के मौके नहीं आते मगर स्टैंड-अप कॉमेडी के अवसरों को साकिब और श्वेता ने खूब संभाला है. खास तौर पर श्वेता फिल्म में खूबसरत और प्रभावी ढंग से निखर कर आई हैं. वेब की दुनिया में वह लगातार अच्छा काम कर रही हैं और जोया का यह रोल नोटिस करने योग्य है. पूजा बेदी नौ साल बाद एंटरटेनमेंट की दुनिया में लौटी हैं. निर्देशक नचिकेत सामंत इससे पहले मराठी फिल्में बना चुके हैं. यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है. निश्चित ही उन्होंने कहानी के मैट्रो फील को शुरू से अंत तक बरकरार रखा. फिल्म को थोड़ा और कसा जा सकता था. यह फिल्म मैट्रो युवाओं के मन में गुदगुदी पैदा करेगी.