Ginny Weds Sunny Review: जब फिल्म का नाम ही गिन्नी वेड्स सनी हो तो आप पहले से जानते हैं कि चाहे कुछ हो जाए ये शादी होकर रहेगी. बादल, बरसात, बिजली, आंधी, तूफान हो, कितना ही खतरनाक विलेन हो, चाहे प्यार का दुश्मन जमाना हो, कोई इस शादी को रोक नहीं पाएगा. मगर गिन्नी वेड्स सनी में ये कुछ नहीं है.
दरअसल यह उस पीढ़ी के युवाओं की कहानी है जिनका फेवरेट शब्द है कनफ्यूजन. खास तौर पर वह प्यार और रिलेशनशिप के स्टेटस में अक्सर कनफ्यूज पाए जाते हैं. ऐसे में विलेन कोई और नहीं बल्कि उनके अपने इमोशंस होते हैं. मंडप तक पहुंचने से पहले वह भावनाओं के जाने कितने जंगलों, पर्वतों, घाटियों में सफर कर आए होते हैं और अंत में भागते-भागते सात फेरे लेते हैं. अंततः प्यार है क्या चीज. फिल्म में शादियां ही शादियां नाम की मैरिज सर्विस देने वाली नायिका की मां नायक से कहती हैः प्यार एक हैबिट है. तू उसे अपनी हैबिट डलवा दे और उसकी हैबिट तू डाल ले. प्यार ऑटोमेटिक हो जाएगा.
मामला यहां यह है कि गिन्नी (यामी गौतम) इतनी सुंदर है कि सातवीं से दसवीं तक उसके साथ पढ़ चुके सनी (विक्रांत मैसी) को अपनी पहुंच के बाहर लगती है. पिता सनी की शादी कराना चाहते हैं और बेटे की स्थिति देख कर मानते हैं कि मंगतों के नखरे नहीं होते. सनी पूर्वी दिल्ली में हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले पिता का पुत्र है मगर अपना रेस्तरां खोलना चाहता है.
उधर एक बीमा कंपनी में काम करने वाली गिन्नी को लव मैरिज करनी है. अरेंज मैरिज के बारे में उसकी मां से शिकायत है कि वह एक से बढ़ कर एक सेंपल लाती है और सोचती है कि बेटी गोबर को केक समझ कर खा ले. गिन्नी का एक एक्स-बॉयफ्रेंड है, जो कहानी का कॉमेडियन-कम-विलेन है. उसके साथ गिन्नी का सैकड़ों बार ब्रेक-अप हो चुका है मगर कॉमन फ्रेंड सर्किल के कारण दोनों साथ में मगर एक-दूसरे को लेकर कनफ्यूज रहते हैं.
गिन्नी वेड्स सनी में ऐसा कुछ नहीं है, जो आपने बॉलीवुड फिल्मों में न देखा हो. लड़का जेब में मंगलसूत्र लिए घूम रहा है. लड़की आगे, लड़का पीछे. लड़के की फैमिली और हीरोइन की मां भी लगी हैं कि किसी तरह दोनों की शादी जम जाए. चूंकि लड़की पहले रोमांस चाहती है तो सबकी कोशिश है कि गिन्नी-सनी के बीच पहले प्यार का चमत्कार घटे.
जब-जब लगता है कि लड़का-लड़की में प्यार होने वाला है बीच में कॉमेडियन-कम-विलेन आ जाता है. इन रूटीन घटनाक्रमों के बीच लेखक-निर्देशक अंत आते-आते थोड़ा ट्विस्ट डाल कर गिन्नी-सनी के फेरे करवा देते हैं. इन तमाम बातों में दो घंटे निकल जाते हैं. अतः इस फिल्म की पहली शर्त यही है कि दो घंटे खाली हों, जिसमें आप बगैर दिमाग लगाए कुछ देखना चाहते हों.
निर्माता विनोद बच्चन पर्दे की शादियां पसंद करते हैं. इससे पहले वह तनु वेड्स मनु और शादी में जरूर आना भी बना चुके हैं. नेटफ्लिक्स अपने कंटेंट में अधिक से अधिक भारतीयता लाना चाह रहा है. ऐसे में यह शादी उसे एक सुरक्षित प्लॉट लगी, जिसमें पंजाबियत का तड़का लगा है. कुल जमा यह ऐसी फिल्म है जो न तो किसी तरह का उत्साह पैदा करती है और न ही इसे देख कर आप कुछ पाते हैं. बॉलीवुड में ज्यादातर सिनेमा ऐसा ही बनता है. जिसका एकमात्र पवित्र लक्ष्य रहता है, देखने वाले का एंटरटेनमेंट. अब यह देखने वाले पर है कि वह इसे देखते हुए खुद एंटरटेन हो.
यामी गौतम और विक्रांत मैसी की जोड़ी नहीं जमती. खास तौर पर विक्रांत इस रोल में मिस-फिट नजर आते हैं. एक फिल्मी रोमांटिक युवा के रोल वाला चेहरा और बॉडी लैंग्वेज उनके पास नहीं है. जबकि यामी गौतम अपनी भूमिका में अच्छी हैं. वह सुंदर हैं और यहां उन्हें अदाएं दिखाने का भरपूर मौका मिला. निर्देशक पुनीत खन्ना ने रोमांटिक दृश्यों को फिल्माने में खास मेहनत नहीं की और न ही उन्होंने यह कोशिश की कि कहानी में कुछ नया कहा जाए. यह उन बॉलीवुड फिल्मों में से है, जो आप सब कुछ जानते बूझते देखते हैं. फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो इसके खत्म होने पर याद रह जाए. गीत-संगीत औसत हैं मगर गजल, वो रूबरू खड़े हैं मगर फासले तो हैं... जरूर सुनने जैसी है.