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Gunjan Saxena- The Kargil Girl Review: मेहनत के बाद अब गुंजन को चाहिए किस्मत का साथ

जाह्नवी कपूर की दूसरी फिल्म 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' जल्द ही रिलीज होने वाली है. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 12 अगस्त को रिलीज होगी. अगर आप भी इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो पहले यहां पढ़ें इसका रिव्यू...

गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल देशभक्ति के इस दौर में सपनों के पंख लगा कर उड़ने वाली लड़कियों की प्रेरणा बन सकती है. यहां निर्देशक का फोकस गुंजन के हौसले और बहादुरी से ज्यादा उनके मर्दों की दुनिया के बीच अपनी जगह बनाने को लेकर है.

गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल हमारी वायुसेना की पहली ऐसी महिला पायलट की कहानी है, जिसने युद्ध में भी हिस्सा लिया. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों को हथियार और रसद पहुंचाई, घायल सैनिकों को युद्धभूमि से लेकर खेमों में पहुंचाया, बर्फीले ऊंचे पहाड़ों पर पाकिस्तानी आतंकियों-सैनिकों के ठिकाने ढूंढे और अपनी सेना को खबर दी. लेकिन यह फिल्म गुंजू (जाह्नवी कपूर) की कहानी कम कहती है और समाज के सामंती सोच वाले मर्दों की मानसिकता का पर्दाफाश करने में ज्यादा दिलचस्पी लेती है. चाहे यह सोच गुंजन के भाई (अंगद बेदी) के रूप में हो या वायुसेना के कर्मचारियों-अफसरों के रूप में. एक अफसर (विनीत कुमार) गुंजन से साफ कहता है कि हमारी जिम्मेदारी है इस देश की रक्षा करना, तुम्हें बराबरी का मौका देना नहीं. 2020 में यह 1990 के दशक की बातें हैं. वक्त करवट बदल चुका है और आज वायुसेना में 1625 वर्किंग महिला ऑफिसर हैं.

Gunjan Saxena- The Kargil Girl Review: मेहनत के बाद अब गुंजन को चाहिए किस्मत का साथ

निर्देशक शरण शर्मा ने गुंजन के किरदार की खूबियों और उनके संघर्षों को इस बायोपिक के फोकस में नहीं रखा. उन्होंने कहानी का दायरा निजी से बढ़ा कर सामाजिक कर दिया. उन्होंने गुंजन की कहानी में उनका सहयोग करने वाले पिता और संवेदनशील मुख्य अफसर को महत्वपूर्ण जगह दी. जबकि इसका दूसरा सिरा गुंजन के वायुसेना में जाने का विरोध करने वाले भाई और स्त्री विरोधी मानसिकता वाले सहयोगियों से बंधा हुआ है. इस तरह गुंजन की कहानी दो छोरों के बीच में झूलती है. यहां और बेहतर होता कि निर्देशक ने कारगिल युद्ध में गुंजन की सक्रियता और बहादुरी को कुछ अधिक विस्तार से दिखाया होता. ऐसा न होने से गुंजन की कहानी का बड़ा फलक यहां सिमट गया है. लेखक-निर्देशक यहां काफी सिनेमाई छूट ली है. अधिक रिसर्च फिल्म को और मजबूत बना सकता था.

यह बात खटकती है कि गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल का ओपनिंग सीन द्विअर्थी संवाद से शुरू होता है. कारगिल घाटी में गश्त कर रहे जवानों की टोली में एक अपने साथी से कहता है कि हम लोग बंदूकें टांगें ही घूमते रहेंगे या इन्हें चलाएंगे भी. तब उसका साथी आगे चल रहे लीडर की तरफ इशारा करते हुए कहता है, ‘दयाल जी की मिसेज भी यही बोलती है कि बंदूक लेकर घूमते ही रहोगे या फायर भी करोगे.’ यह भी गौर करने लायक है कि ओपनिंग क्रेडिट्स में गुंजन और उनके भाई ने अपनी कहानी के लिए मां (श्रीमती कीर्ति सक्सेना) का शुक्रिया अदा किया हैः मां, दिस स्टोरी बिगेन्स विद यू एंड इज बिकॉज ऑफ यू (मां, यह कहानी तुमसे शुरू होती है और यह तुम्हारी वजह से ही है). लेकिन फिल्मकारों ने बायोपिक में सिनेमाई छूट लेते हुए मां का किरदार लड़की को हतोत्साहित करने वाला बताया है. फिल्म में मां लगातार गुंजन के सपनों के खिलाफ खड़ी है और बीच में ही कहानी से गायब हो जाती हैं.

Gunjan Saxena- The Kargil Girl Review: मेहनत के बाद अब गुंजन को चाहिए किस्मत का साथ

शरण शर्मा की गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल की कहानी आज के बेटी पढ़ाओ-बेटी बढ़ाओ के राष्ट्रीय आह्वान से जुड़ जाती है. फिल्म के गीत-संगीत में भी इसे महसूस किया जा सकता है. यहां गुंजन (जाह्नवी कपूर) के रिटायर्ड कर्नल पिता (पंकज त्रिपाठी) हमेशा बेटी के आसमान में उड़ान भरने के सपने को हौसला देते हैं और कम-ज्यादा करके वही फिल्म के सबसे मजबूत किरदार के रूप में उभरे हैं. पंकज त्रिपाठी शानदार अभिनेता हैं और उन्होंने धीमी आवाज में खास अदा से संवाद बोलते हुए हर दृश्य में गहरी छाप छोड़ी है. उनका डायलॉग ‘जो लोग कभी मेहनत का साथ नहीं छोड़ते, किस्मत उनका हाथ नहीं छोड़ती’ सहज ही याद रह जाता है.

Gunjan Saxena- The Kargil Girl Review: मेहनत के बाद अब गुंजन को चाहिए किस्मत का साथ

गुंजन सक्सेना के किरदार के लिए जाह्नवी कपूर कड़ा परिश्रम करती नजर आती हैं. पंकज त्रिपाठी के साथ उनके पिता-पुत्री वाले दृश्य खूबसूरत बने हैं. जबकि फिल्म की शुरुआत में जाह्नवी की एंट्री का दृश्य एक अच्छे मोड़ पर आता है. शरण शर्मा की बतौर स्वतंत्र निर्देशक यह पहली फिल्म है और उन्होंने धर्मा प्रोडक्शंस की परंपरा में और जाह्नवी कपूर के लिए ही यह फिल्म बनाई है. निखिल मल्होत्रा और शरण शर्मा ने मिलकर फिल्म लिखी है और इसमें रिसर्च की दरकार थी. पंकज त्रिपाठी गुंजन सक्सेना की मजबूत कड़ी हैं. विनीत कुमार का अभिनय प्रभावी है और अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाएं सहज ढंग से निभाई हैं. जाह्नवी कपूर की 2018 में आई धड़क के बाद यह दूसरी फिल्म है, जिसमें वह अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही हैं. वह दोनों फिल्मों में कड़ी मेहनत करती नजर आई हैं और अब उन्हें किस्मत के साथ की जरूरत है. गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल 12 अगस्त (बुधवार) से ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है.

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