सभी का अतीत कभी न कभी, किसी न किसी तरह सामने आता है. पिछले साल की कामयाब वेबसीरीज होस्टेजेस का सीजन-2 नई कहानी के साथ डिज्नी-हॉटस्टार पर आया है. इसमें अतीत यानी सीजन वन से आगे निकल कर आई कहानी एक नए रोमांचक मोड़ पर है. देश-दुनिया के लिए मर चुके पूर्व रक्षामंत्री और मुख्यमंत्री खुशवंत लाल हांडा (दिलीप ताहिल) का अपहरण करने वाले रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर पृथ्वी सिंह (रोनित रॉय) ने उसे लेकर दिल्ली से निकलने की तैयारी कर ली है.
पृथ्वी के साथ पत्नी (श्रीस्वरा) और कुछ सहायक भी हैं. मगर कार में शहर छोड़ते हुए ऐसी घटनाएं होती हैं कि ये सभी दिल्ली-गुरुग्राम हाइवे पर एक पुरानी कोठी में फंस जाते हैं. गोलियां चलने की आवाजें सुन पुलिस वहां पहुंच कर कोठी को निशाने पर ले लेती है. पुलिस को नहीं पता कि अंदर कौन है. कितने लोग हैं. मीडिया का भी जमावड़ा वहां हो गया है. सिर्फ इतनी खबर है कि कुछ आतंकियों ने कुछ लोगों को बंधक बना रखा है. आतंकियों की तरफ से मांग आई है कि तिहाड़ जेल में बंद अफगानी आतंकी असगर नबी को कोठी के अंदर भेजा जाए.
इस नींव पर खड़े हॉस्टेजेस-2 के ड्रामे में धीरे-धीरे उतार-चढ़ाव आते हैं. सरल-सी दिखती कहानी में अंदर-बाहर कुछ और कहानियां जुड़ती हैं. कुछ खून बहता है. कुछ हत्याएं होती हैं. एक कंपनी सामने आती है जनरल इंटरनेशनल, जो पूरी दुनिया में जमीन, तेल, शेयर बाजार से लेकर हथियारों तक का धंधा करती है. यह भारत में भी मोटा निवेश कर रही है. मगर क्योंॽ दूसरी तरफ हमारा इंटेलिजेंस विभाग है. जिसमें एक जूनियर शिखा पांडे (श्वेता बसु प्रसाद) के दिमाग की बत्ती एक मर्डर केस की फाइल पलटते हुए जलती है. वह पाती है कि मर्डर साधारण नहीं है. इसके पीछे कोई खेल है. मगर उसके सीनियर यह बात मानने को तैयार नहीं. जनरल इंटरनेशनल और श्वेता की खोजबीन की कहानियां खुशवंत लाल हांडा से जुड़ती हैं, जो पृथ्वी के कब्जे में है. कुल मिलाकर एक रोचक ताना-बाना बुन जाता है.
12 कड़ियों वाले हॉस्टेजेस के दूसरे सीजन में चार दिनों की यह कहानी धीरे-धीरे खुलती है और आप पाते हैं कि अलग-अलग किरदार अपने आप में ही किसी बंधक जैसे हाल में है. कोई वक्त का मारा है तो किसी की मजबूरी है. ये सभी छूटने को कसमसा रहे हैं परंतु सभी अपने-अपने कर्मों और एक-दूसरे से बंधे हैं. इनकी बेबसी के बीच डायलॉग कहानी में आता हैः जिस लाठी में आवाज नहीं होती, उसकी चोट सबसे गहरी होती है. पूरी कहानी में समस्या यह है कि तमाम घटनाक्रम में हालात पर काबू पाने के लिए मुस्तैद पुलिस की भूमिका बहुत कमजोर है. वह कोठी के सामने लगभग असहाय और निष्क्रिय है.
यह जानने के बावजूद कि कोठी के अंदर कोई गांधी के भक्त नहीं बैठे हैं, वह अपने सामने आने वाली मांगों को मानती चली जाती है. पुलिस की यह भूमिका दिव्या दत्ता और कंवलजीत सिंह जैसे ऐक्टरों की मौजूदगी में उसके पक्ष को कमजोर करती जाती है. यहां वेबसीरीज की राइटिंग में समस्याएं उभरती हैं. कहानी का संतुलन हिल जाता है. कथानक खुलने की रफ्तार धीमी है और कई जगह दिमाग लगाते हुए बहुत धैर्य रखना पड़ता है. साथ ही यह बात भी है कि कुछ सवालों के जवाब अंततः साफ-साफ नहीं मिल पाते.
अपनी डिजाइनिंग, मेकिंग और पैकिंग में हॉस्टेजेस-2 आकर्षक है. निर्देशक हॉस्टेज-सिचुएशन का माहौल बनाने में कामयाब रहे और उन्होंने पूरा ध्यान रखा कि कहानी सिर्फ पुरानी कोठी में बंधी न रह जाए. जनरल इंटरनेशनल के लिए काम करने वाली ईशा एंड्रूज (शिबानी दांडेकर) और रणवीर (डिनो मोरिया) के किरदार मुख्य कहानी के रोमांच में घुल-मिल जाते हैं. हालांकि कई जगहों पर उनके किरदारों और गतिविधियों को अधिक स्पष्ट किए जाने की जरूरत महसूस होती है.
इंटेलिजेंस विभाग की शिखा का किरदार इनके बीच अलग से उभरता है. वह गालियां बकने वाली, बिंदास, सिंगल, समाज-दफ्तर में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्षरत नवयुवती के रूप में ध्यान खींचती है. शिखा के ट्रेक को ठहराव के साथ रचा गया. श्वेता प्रसाद बसु ने इसे निभाया भी बढ़िया ढंग से है.
हॉस्टेजेस-2 को लेकर सबसे आगे खड़े रोनित रॉय का अभिनय यहां भी बढ़िया है मगर पिछले सीजन के मुकाबले उनकी एनर्जी कम है. वेबसीरीज लगभग आठ घंटे का समय मांगती है. इसके कुछ अनावश्यक रूप से लंबे दृश्यों को देख कर लगता है कि क्या इसे कुछ कम नहीं किया जा सकता था. दिव्या दत्ता को निर्देशकों ने कुछ खास नहीं करने दिया. वह यहां एक्शन में नहीं हैं. दिलीप ताहिल, श्रीस्वरा, अशीम गुलाटी और मोहन कपूर अपनी भूमिकाओं में फिट हैं. अगर आपको हॉस्टेजेस का पहला सीजन पसंद आया था तो दूसरा वाला निराश नहीं करेगा.