London Confidential Review: लंदन कॉन्फिडेंशियल का ट्रेलर देख कर आपको लगता है कि निर्माता-निर्देशक ने मौके पर चौका मार दिया. चीन के साथ सीमा पर मामला गरम है. पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जंग लड़ते हुए चीन को कोस रही है. ऐसे में पता चले कि एक इंटनेशनल कॉन्फ्रेंस में चीन का भंडाफोड़ होने वाला है और यह कोई अन्य देश नहीं बल्कि भारत ही करने वाला है. तब तो कहानी के आइडिये का धांसू होना पक्का है.


मगर ट्रेलर में जो शॉट बाउंड्री लाइन के पार जाता दिखता है, वह फिल्म में लेखक-निर्देशक की गलतियों के कारण अपने आप धीमा पड़ कर रुक जाता है. गेंद सीमा पार नहीं जा पाती. आप निराश होते हैं. अव्वल तो जी5 की यह एक घंटे 17 मिनट की फिल्म किसी लंबे टीवी एपिसोड की तरह नजर आती है. जिसमें बल्ले हवा में ही घूमते रहते हैं, मुद्दे की कोई बात नहीं आती.


कहानी शुरु होती है कि लंदन में इंडियन इंटेलिजेंस काम कर रहा है. उसके एक सदस्य बीरेन की चीनी एजेंटों ने पकड़ कर हत्या कर दी है क्योंकि उसे अपने एक चीनी सूत्र से पता चल गया था कि कोरोना के बाद चीन भारत की सीमा पर एक वायरस अटैक करने जा रहा है. अब इंटेलिजेंस टीम को लीड कर रही यंग एंड ब्यूटिफुल उमा (मौनी रॉय) को पता लगाना है कि आखिर वह चीनी सूत्र कौन है और उसे अपने कवर में लेना है ताकि पड़ोसी का भंडाफोड़ हो सके. जबकि चीनी खुफिया एजेंसी एमएसएस के लोग भी सक्रिय हैं कि ऐसा न हो पाए. सात दिनों में लंदन में दुनिया भर के वायरस विशेषज्ञों का सम्मेलन होना है.



तेज रफ्तार में भागती कहानी में अचानक एक के बाद एक मर्डर होने लगते हैं क्योंकि चीनियों को हर उस शख्स की खबर होती जाती है, जो उनकी तलाश में लगा है या प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उनकी खबर भारतीय एजेंटों तक पहुंचा सकता है. उमा और उनके सहयोगी अर्जुन (पूरब कोहली) के सामने यह भी सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर उनकी टीम में कौन ‘भेदिया’ है, जो उनकी गतिविधियों की खबर चीनियों तक पहुंचा रहा है. कहानी दौड़ती है और उसमें भारतीय दूतावास, वहां के दो-तीन अधिकारी और चीनी एजेंट उभरते हैं. हनी ट्रेप का मुद्दा भी उठता है जिसमें फंसा आदमी दिमाग से नहीं कहीं और से सोचता है. मगर इन सबके बीच उमा का लक्ष्य है, उस चीनी सूत्र को ढूंढना जिसने बीरेन को सीमा पर वायरस अटैक वाली खबर दी थी.



लॉकडाउन में लंदन में शूट की गई यह फिल्म रफ्तार के साथ हड़बड़ी में भी लगती है. वह नहीं बताती कि मुख्य नायिका उमा प्रेग्नेंट है तो उसकी इस स्थिति का जासूसी कहानी से क्या संबंध हैॽ इससे कहानी में क्या कुछ खास जुड़ रहा हैॽ इस अवस्था के बगैर भी मौनी यह रोल निभा सकती थीं. वह हर समय अपना शरीर संभालती हुईं असहज नजर आती हैं. पूरी फिल्म में केवल एक सीन में वीडियो कॉल पर उमा के पति को दिखाने का मतलब सिर्फ दर्शकों को यह बताना था कि वह भारतीय नारी है और विवाहित होकर प्रेग्नेंट है!! साथ ही अपने काम और देश के प्रति समर्पित भी है. लंदन कॉन्फिडेंशिय (London Confidential) में यह बेहद अतार्किक स्थितियां हैं.


शक के दायरे में घिरे इंडियन एंबेसी के दो अधिकारियों में से एक की कहानी बीच में छूट जाती है और दूसरे का समलैंगिक प्यार सामने आता है. यह फिल्म वालों के लिए नई समानांतर कहानी है. पूरब कोहली न तो किसी इंटेलिजेंस एजेंट की तरह लगते हैं और न ऐक्शन दृश्यों में उनकी बॉडी लैंग्वेज फिट हो पाती है. भारतीय राजदूत नीरू (कुलराज रंधावा) की कहानी खुलती है तो आपको बुरी तरह निराश करती है. फिल्म के क्लाइमेक्स के लिए निर्माता-निर्देशक को दर्शकों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़े तो आश्चर्य नहीं होगा.



लंदन कॉन्फिडेंशियल (London Confidential) खांचों में बंटी फिल्म है, जिसमें कोई बड़ी तस्वीर नहीं उभरती. फिल्म में दोनों तरफ के किरदारों के संवाद बताते हैं कि देशों के बीच खींचतान जारी है और जरा-सी गलती युद्ध की चिंगारी बन सकती है. एस.हुसैन जैदी के बुने आइडिये पर निर्देशक कंवल सेठी फूंक-फूंक कर आगे बढ़े लेकिन अंततः असर नहीं छोड़ पाए. फिल्म में तात्कालिकता है जो आंशिक रूप से ही आकर्षित कर सकती है. मगर जासूसी-थ्रिलर जैसी बात इसमें नहीं है. जासूसी के घटनाक्रमों का रोमांच यहां नहीं उभरता. किरदारों को जल्दी-जल्दी खत्म करके कहानी अंत तक पहुंचने की जल्दबाजी में छलांगें मारती है. ऐक्शन दृश्य ढीले हैं. कमजोर पटकथा के बीच कोई दृश्य या संवाद ऐसा नहीं जो आपको याद रह सके.