Saina Movie Review: साइना में ड्रामा कम और इमोशन हैं ज्यादा, परिणीति का परफॉरमेंस करता है प्रभावित
Saina Review: चैंपियन खिलाड़ी की बायोपिक में जो कुछ होना चाहिए, वह सब साइना में है. मैदान की उपलब्धियों से लेकर निजी और पारिवारिक भावनात्मक उतार-चढ़ाव साइना नेहवाल की जिंदगी पर बनी इस फिल्म में देखने योग्य हैं. अमोल गुप्ते की साइना ‘भारत की बेटी’ के तौर पर उभरती हैं, जिससे करोड़ों किशोरवय बच्चे और युवा प्रेरित होते हैं.
अमोल गुप्ते
परिणीति चोपड़ा, मेघना मलिक, मानव कौल, इशान नकवी, निशा कौर भतोय.
Saina Review: खेल और भावनाएं एक सिक्के के दो पहलू हैं. लेखक-निर्देशक अमोल गुप्ते की फिल्म साइना भी दोनों को साथ-साथ लेकर चलती है. खेल में जहां एक प्रतिभाशाली बच्ची है, उसके माता-पिता हैं, कोच हैं और थोड़ा-सा रोमांस भी है तो दूसरी तरफ बच्ची का जुनून, मां-पिता की मेहनत, मां की जिद, कोच की सख्ती और कुछ हल्के-फुल्के पल भी यहां हैं. आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म साइना में वह सब है जो एक स्पोर्ट्स बायोपिक में होता है. खिलाड़ी का जीवट, उसके मजबूत इरादे, जीवन और मैदान के उतार-चढ़ाव और अंत में उसकी जीत. साइना में हालांकि कुछ चीजें ऐसी भी हैं जो सवाल खड़े करती है. जैसे परिवार में दो बच्चों के होने पर सिर्फ एक पर ही सारा ध्यान केंद्रित करना और प्यार उड़ेलना. बच्ची के मैदान में नंबर दो आने पर उसके गाल पर करारा थप्पड़ जड़ना कि वह अव्वल क्यों नहीं आ सकी.
साइना उस बैडमिंटन ‘शेरनी’ की कहानी है, जिससे बेहतर शटलर देश में अभी तक कोई नहीं हुआ. जिसकी उपलब्धियों ने देश को विश्व बैडमिंटन मानचित्र पर ‘शेर’ बनाया. जिसने मजबूत चीन की चुनौती को कड़ी टक्कर दी और उसकी दीवार में सेंध लगाई. जो लाखों लड़कियों की प्रेरणा बनी और आज भी है. विश्व की नंबर वन बैडमिंटन खिलाड़ी रही साइना नेहवाल की यह बायोपिक एक लिहाज से सीधी-सरल है. कोर्ट पर साइना के संघर्ष के साथ माता-पिता का उन पर कड़ा परिश्रम करना, उन्हें खेल पर निरंतर फोकस बनाए रखने और हर उतार-चढ़ाव में साथ देना, फिल्म से पहले मीडिया में कई बार आ चुका है. साइना का अपने कोच पुलेला गोपीचंद से विवाद और पी वी सिंधु से प्रतिद्वंद्विता को छोड़ दें तो ऐसा कुछ नहीं है, जो बेवजह की सुर्खियां बना हो. गोपीचंद के साथ मतभेदों को जरूर अमोल गुप्ते ने कहानी में रखा है, लेकिन वह सिंधू के साथ प्रतिद्वंद्विता को बिसरा कर आगे बढ़े हैं.
साइना मूलतः प्रेरक कहानी है. जिसमें वह इतनी फोकस हैं कि उसका एक ही रूटीन है. जागना, खेलना, सोना और फिर यही करना. इसमें बॉयफ्रेंड कश्यप (इशान नकवी) की एंट्री जरूर होती है मगर खेल से उसका ध्यान नहीं हटता. कोच राजन (मानव कौल) जब अफेयर पर आपत्ति उठाता है तो साइना साफ कहती है कि जब सचिन तेंदुलकर ने 22 साल की उम्र शादी कर ली तो किसी ने उसके खेल को लेकर सवाल नहीं किया. कोच साइना के विज्ञापन फिल्मों में काम करने के भी विरुद्ध है. दोनों के बीच ये बातें टकराव और मनमुटाव का कारण बनती हैं.
फिल्म में साइना (परिणीति चोपड़ा) के समानांतर जो किरदार मजबूती से उभरता है, वह है मां ऊषा रानी (मेघना मलिक) का. खुद जिला लेवल तक बैडमिंटन खेलने वाली मां की जिद ही वास्तव में साइना को पहले खिलाड़ी और फिर चैंपियन बनाती है. यूं तो साइना के पिता (शुभ्रज्योति भरत) भी बैडमिंटन के खिलाड़ी रह चुके होते हैं परंतु जिस तरह से ऊषा रानी का किरदार यहां दिखता है उससे यह बात सच नजर आती है कि पिता ‘दो बीघा जमीन के बलराज साहनी’ हैं. वह हमेशा साइना को मां की सख्ती से बचाते दिखते हैं और मिडिल क्लास परिवार के लिए जरूरी पीएफ की रकम से इसलिए एडवांस लेते हैं कि बेटी के लिए ढेर सारे शटलकॉक खरीद सकें. फिल्म में नन्हीं साइना का रोल निभाने वाली निशा कौर भतोय प्रभावित करती हैं. वह जूनियर बैडमिंटन प्लेयर हैं और फिल्म में उनका अभिनय और खेल दोनों छाप छोड़ते हैं.
साइना का जीवन और खेल के मैदान की उपलब्धियां एम.एस. धोनी और मैरी कॉम की कहानियों जैसी ही लोगों के सामने समय-समय पर आती रही हैं. इसलिए कई बार उन उपलब्धियों के फिल्म में जिक्र पर आपके सामने साइना का ही चेहरा उभरता है. यही कुछ ऐसे क्षण हैं जब परिणीति चोपड़ा अपने किरदार से बाहर नजर आती हैं. यह भी लगता है कि क्या चेहरे-कद-काठी के हिसाब से श्रद्धा कपूर साइना के ज्यादा करीब नहीं लगतीं! जो पहले यह रोल निभाने वाली थीं. बावजूद इसके मानना होगा कि परिणीति ने इस भूमिका को अच्छे ढंग से निभाया है. कोर्ट पर सही शॉट्स लगाने और साइना की बॉडी लैंग्वेज को हू-ब-हू उतारने के लिए कड़ा परिश्रम किया है. यह परिणीति के करिअर का अब तक का सबसे बेहतर किरदार है. इशकजादे (2012) और शुद्ध देसी रोमांस (2013) के बाद वह अपनी किसी भूमिका में जमी हैं. इस बीच उन्होंने ऐसी फिल्में की, जिन्होंने उनके करिअर में सिर्फ गिनती बढ़ाने का काम किया.
अमोल गुप्ते ने साइना की बायोपिक में उतने ही ड्रामाई दृश्य अपनी तरफ से जोड़े, जो फिल्म बनाने के लिए जरूरी थे. इस तरह वह फिल्म को भटकने नहीं देते और साइना को ‘भारत की बेटी’ बनाते हुए प्रेरक कहानी में बदल देते हैं. उन्होंने कोर्ट के दृश्यों को सटीक फिल्माया और कहानी पर पकड़ बनाए रखी. अमोल बच्चों के साथ विशेष संवेदनशीलता के साथ काम करते हैं, इसलिए नन्हीं साइना के दृश्य कहीं-कहीं परिणीति से बेहतर मालूम पड़ते हैं. फिल्म का गीत-संगीत कहानी के अनुकूल सपनों की उड़ान को बयान करने वाला है.