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Serious Men Review: अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में बेटे को जोकर बनाने वाले पिता की कहानी

Serious Men Review: यह सीरियस होकर देखने वाली फिल्म नहीं है मगर इसकी बातें आपको हंसते हुए बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेंगी. यहां कॉमेडी नहीं, व्यंग्य है. 4जी से आगे निकलने को आतुर जनरेशन अंतहीन स्पर्द्धा में आखिर कहां पहुंचेगी. नवाज यहां ऐसे पिता बने हैं, जो अपने बेटे को दुनिया के सामने जीनियस बनाकर पेश करता है लेकिन दांव उल्टा पड़ जाता है.

Serious Men Review: बच्चों का बचपन छीन कर आप उन्हें सुपरमैन नहीं बना सकते. वह फूलों की तरह होते हैं. मौसम आने पर खिलते हैं मगर माता-पिता के रूप में आपको बागवान बनकर बीजों को सींचते रहना पड़ता है. अगर बच्चों की मौलिकता से छेड़छाड़ हुई तो वे नष्ट हो जाएंगे. क्या 2जी से 4जी तक आई पीढ़ी में तेजी से बचपन से खिलवाड़ नहीं हो रहा है. आज हर माता-पिता अपने बच्चे को आइंसटीन से कम देखना नहीं चाहते.

यह सच है कि अभिभावक नहीं चाहते कि उनकी संतान वह अभाव देखे, दुख झेले जो उन्होंने खुद उठाए लेकिन बच्चों पर अपने सुख-दुख और महत्वाकांक्षाओं का बोझ लादने से उनका भी भला नहीं होता. निर्देशक सुधीर मिश्रा की फिल्म सीरियस मैन इन्हीं मुद्दों को सामने लेकर आती है. यह फिल्म दो अक्तूबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी.

Serious Men Review: अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में बेटे को जोकर बनाने वाले पिता की कहानी

सीरियस मैन जोसफ मनु के अंग्रेजी में इसी नाम से आए उपन्यास पर आधारित एक घंटे 54 मिनट की फिल्म है. जिसे नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने हमेशा की तरह अपने अभिनय से निखारा है. पहले ही सीन से वह अपने अंदाज में दर्शक को बांध लेते हैं. यहां वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में संस्थान के प्रमुख डॉ. आचार्य (नासेर) के पीए अय्यन मणि बने हैं. अय्यन दलित है. बचपन से लेकर इस नौकरी में आने और शादी करके घर बसाने तक उसने बहुत दुनिया देखी है. उसे दलित होने का दर्द पता है. उसे पता है कि मजदूरी से सिर्फ रोटी कमाई जा सकती है, जिंदगी नहीं. उसके अंदर इस दुनिया के विरुद्ध एक किस्म की बगावत है.

वह चाहता है कि उसके बेटे आदि (अक्षत दास) को वह सब मिले, जो उसकी पिछली सौ पीढ़ियों से छीना गया. अय्यन यह सब सोचता है तो इसमें गलत क्या है. लेकिन समस्या यह है कि वह अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं को आदि के माध्यम से पूरा करना चाहता है. वह दुनिया को बताता है कि उसका बेटा जीनियस है. उसका आईक्यू 169 है. वह भविष्य का आइंस्टीन और आंबेडकर है. इस जगह पर सीरियस मैन एक कदम आगे बढ़ते हुए मार्मिक कहानी में बदल जाती है.

Serious Men Review: अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में बेटे को जोकर बनाने वाले पिता की कहानी

सवाल यह भी है कि क्या अय्यन ही गलत है. क्या उसके सपने और बेटे को समाज में ऊंची जगह दिलाने की जी-तोड़ कोशिशें गलत हैं. क्या वे लोग गलत नहीं हैं, जो ऊंचे पदों पर बैठे अंतरिक्ष में एलियन और ब्लैक होल के सिद्धांत ढूंढ रहे हैं और जिन्हें अपने आस-पास के खस्ता हाल लोगों से कोई वास्ता ही नहीं. जिनके लिए गरीबों के लिए जरूरी धन, एक फंड मात्र है. आसमान से तारे तोड़ने वाले पहले अपने आस-पास की गरीबी, असमानता, अभावों और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए क्यों नहीं खड़े होते.

Serious Men Review: अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में बेटे को जोकर बनाने वाले पिता की कहानी

यह वही लोग हैं जो दूरबीनों और गुब्बारों को करोड़ो रुपये की लागत से अंतरिक्ष में भेजने के कुछ महीनों बाद नतीजा सुनाते हैं कि मनुष्य के पास अभी कोई ज्ञान नहीं है. ये सीरियस मैन होते हैं. ये कंडोम पर डॉट्स क्यों होने चाहिए से लेकर ऐसे-ऐसे ‘सी-मार्का’ मुद्दों पर रिसर्च करते हैं, जिनका इंसान की जमीनी जिंदगी से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं. सीरियस मैन में सुधीर मिश्रा ने इन लोगों के बहाने कुछ तीखे व्यंग्य किए हैं. साथ ही बताया है कि जिन नेताओं के हाथों में जनता ने व्यवस्था चलाने की बागडोर दी है, वही उसे री-डेवलपमेंट के बहाने विस्थापित करने के षड्यंत्र रच रहे हैं.

फिल्म में नवाज नरेटर हैं और उनकी आवाज का तीखा व्यंग्य कहानी में पसरा है. इस व्यंग्य के साथ एक तनाव भी लगातार सीरियस मैन में बना रहता है. यह वही दम घोंटू तनाव है जो आप आम जिंदगी में सीरियस बने रहने वाले नकली लोगों के आस-पास महसूस करते हैं. अय्यन मणि की जिंदगी बताती है कि वह अपने मूल स्वभाव से अलग होकर जीता है तो खुद खत्म होता जाता है और अपने बच्चे को भी खत्म करता चलता है. हालांकि अंत में वह जान जाता है कि किसी भी स्टार का द एंड ब्लैक होल की तरह ही होता है. अपने अंदर सिमटने लगता है वह. उसका कुछ भी बाहर नहीं आ पाता.

Serious Men Review: अपनी महत्वाकांक्षा के सर्कस में बेटे को जोकर बनाने वाले पिता की कहानी

इस कहानी का अंतः सुंदर है. लेखक-निर्देशक ने अय्यन और आदि के लिए एक ‘एक्जिट स्ट्रेटजी’ (निकासी रणनीति) रची है. मगर तय मानिए कि यह अपने हक के लिए लड़ने वालों की लड़ाई का अंत नहीं है क्योंकि स्टेटस का आईक्यू से कोई कनेक्शन नहीं होता और टैलेंट का भी कोई कलर (काला या गोरा) नहीं होता. अक्षत दास और इंदिरा तिवारी ने नवाज का इस फिल्म में खूब साथ दिया है और नासेर अपने किरदार में परफेक्ट हैं.

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