कोरोना महामारी आने वाले दिनों में कई फिल्मों, शॉर्ट फिल्मों और वेबसीरीज में अहम रोल निभाएगी. द गॉन गेम में कोरोना लॉकडाउन के दौरान गुजराल परिवार में हुई एक ऐसी मौत की कहानी है, जो धीरे-धीरे हत्या की तरह सामने आती है. क्या यह वाकई कोविड-19 से हुई मौत है, हत्या है या इससे भी बढ़कर कोई और रहस्य खुलेगा.


साहिल कोरोना से मर गया है. फिर पता चला कि नहीं, वो जिंदा है. इसके बाद मालूम हुआ कि चौधरी ने किडनैप कर लिया. नहीं, नहीं प्रतीक ने किडनैप किया. फिर बात आई कि सुहानी और प्रतीक ने उसका मर्डर कर दिया. इतने घुमाव-फिराव के बाद यह भी बात आती है कि साहिल वापस से जिंदा है. ...और यह जलेबी भी द एंड नहीं. द गॉन गेम का सीजन वन ही खत्म हुआ है. अब इंतजार कीजिए सीजन टू का.


कोरोना काल में मार्च 2020 में जब पूरे देश में लॉक डाउन लागू हुआ, तब गुजराल परिवार की कहानी शुरू हुई. जिसमें परिवार के सारे सदस्य अलग-अलग शहरों दिल्ली, मुंबई, बंगलूरू, देहरादून में हैं. अलग-अलग घरों में. दूरियों के बावजूद सभी किरदार वीडियो कॉल्स से एक-दूसरे से जुड़े हैं. यहां बातें हैं, वारदातें हैं. आज के दौर की स्मार्ट लाइफ और स्मार्ट गैजेट्स यहां अहम किरदारों की तरह हैं. तय है कि यह कम-ज्यादा स्मार्ट होना हमारी जिंदगी का अंग बन चुका है. ऐसे में अगर किसी मर्डर का खुलासा होता है तो उसकी तह तक जाने के लिए खासी मशक्कत लगेगी.


द गॉन गेम का पहला सीजन क्रिकेट के 20-20 मैच के जैसा है. जिसमें आगे बढ़ती पारी में रनों की रफ्तार तेज होती जाती है और जब आप पूरे जुनून में भरकर सिक्सर की उम्मीद करते हैं, तभी एक गेंद चकमा देती हुई गिल्लियां बिखेर देती है. द गॉन गेम में सब कुछ बहुत तेज है. इसलिए यहां साहिल के मरने के बाद रोना-धोना और शोक मानना स्क्रिप्ट में नहीं है. बात तुरंत आगे बढ़ जाती है. कुछ ही पल बीतते-बीतते महसूस हो जाता है कि यह मौत सहज नहीं है. साहिल कोरोना से मरा है मगर दाल में कुछ काला है. थ्रिल के बीच में डायरेक्टर ने हॉरर जैसा तड़का भी लगा दिया. कमरों की बत्तियां अपने आप जलने-बुझने या मोबाइल पर उसके नंबर से बजी घंटी से आप महसूस करते हैं कि मुंबई के जानकी सदन कोविड हॉस्पिटल में मरा साहिल (अर्जुन माथुर) घर में अपनी बीवी (श्रीया पिलगांवकर) और बंगलूरू में अपनी बहन (श्वेता त्रिपाठी शर्मा) से कुछ कहना चाहता है. क्या वह अपने दोस्त और बहन के पुराने डॉक्टर बॉयफ्रेंड (इंद्रनील सेनगुप्ता) की कोई बात और रईस उद्योगपति पिता (संजय कपूर) को पैसों के लिए धमका रहे एडवोकेट चौधरी (दिव्येंदु भट्टाचार्य) के बारे में बताना चाहता है. या फिर बात कुछ और ही है.



द गॉन गेम बताती है कि समय कितना बदल गया है. दूर-दूर होकर भी सब हर पल कनेक्ट हैं. लेकिन ऐसे में जबकि कोई आमने-सामने नहीं है, अपराध ने भी चेहरा बदल लिया है. जितना आंखों के सामने होता है उससे ज्यादा पर्दे के पीछे घटता है. ऐसे मामलों को सुलझाना कठिन हो जाता है. परंतु मजे की बात यह कि जो तकनीक स्मार्ट बना रही है, वही अपराध की उलझनों को सुलझाने में भी मदद करती है. कोरोना काल में इधर कई फिल्में-शॉर्ट फिल्में-वेबसीरीज बन रही हैं और द गॉन गेम एक शुरुआत मात्र है. आने वाले दिनों में आप कई कहानियों में कोरोना को थ्रिलर, कॉमेडी या सोशल ड्रामा में बड़ा रोल निभाते देखेंगे.


द गॉन गेम सिनेमा/वेबसीरीज बनने की तकनीक का भी टर्निंग पॉइंट है. सभी ऐक्टरों ने अपने-अपने हिस्से की कहानियां अपने-अपने घरों में शूट की और निर्देशक निखिल नागेश भट ने उन्हें एक सूत्र में पिरो कर मुकम्मल थ्रिल तैयार किया. ओटीटी प्लेटफॉर्म वूट पर आई द गॉन गेम का यह सीजन रोचक है. स्क्रिप्ट लिखने का अंदाज भी यहां बदल गया. इससे यही पता चलता है कि कितना भी, कैसा भी संकट हो इंसान को कहानियों की जरूरत हमेशा है. वह बंदिशों के बावजूद इन्हें कहने का रास्ता ढूंढ लेता है. कोरोना काल चुनौती की तरह आया और द गॉन गेम उससे पार पाकर नए शिल्प के साथ हमारे सामने है. यह अलग बात है कि इसमें कुछ बातें छूट गई हैं और कुछ सवाल बाकी रह गए हैं. यह भी नहीं होना चाहिए कि तकनीक ही हावी हो जाए और कहानी पीछे रह जाए. वेब सीरीज में चूंकि कोई स्टार नहीं है, इसलिए यहां कहानी, निर्देशन और अभिनय का संतुलन ही इसे मजबूत बनाता है. यह संतुलन द गॉन गेम में नजर आता है.