Nawazuddin Siddiqui Life Struggle: नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) ने हमेशा अपनी दमदार अदाकारी से फैंस का दिल जीता है. मगर एक वक्त था जब उन्हें हर तरफ से रिजेक्शन का सामना करना पड़ रहा था. एक इंटरव्यू में नवाज ने अपने संघर्ष के बारे में खुल कर बात की. उन्होंने बताया कि, 'मैंने सोचा था कि अगर मुझे 25 सालों तक भी काम नहीं मिलता तो मैं 25 साल तक स्ट्रगल करता रहूंगा.' नवाज को अक्सर इस बात से चिढ़ हो जाया करती थी कि, जब उन्हें काम आता है, फिर भी काम क्यों नहीं मिल रहा है. संघर्ष के दिनों में ही एक्टर ने फैसला कर लिया था कि चाहें उन्हें काम मिले न मिले फिल्मों में काम करने के लिए वो ट्रॉय करते रहेंगे. उन्होंने कहा, '50 साल होते 60 या 70 मैं अपने काम को लेकर स्ट्रगल करता रहता, क्योंकि मैं बेशर्म हो चुका था'.



नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने इंटरव्यू में बताया कि, 'मैंने अपने माता-पिता को कभी नहीं बताया कि मैं यहां किस दौर से गुज़र रहा हूं. मैंने नहीं बताया कि, मैं यहां parle g बिस्कुट खा कर गुज़ारा कर रहा हूं. लेकिन मां को अंदाज़ा हो गया था. फिर भी उन्होंने मुझे वापस नहीं बुलाया. नवाज ने बताया कि मैरी मां मुझे खत लिखती थीं जिसमें वो एक शेर जरूर लिखती थीं. मां की उन लाइनों से नवाज को बहुत हिम्मत मिलती थी.


वहीं, जब इंटरव्यू में नवाजुद्दीन से पूछा गया कि आपको मां की उन लाइनों में से कौन सी याद है? तो उन्होंने कहा, 'हां एक शेर था, 'मिटा दे अपनी हस्ति को गर कुछ मरतबा चाहे, कि दाना ख़ाक में मिलके गुले गुलज़ार होता है'. इसका मतलब है कि, अगर आप कुछ बनना चाहते हैं और तो आपको उसके लिए अपनी हस्ति भी मिटानी पड़ती है. मेहनत करते करते-आप अपनी हस्ति मिटा देते हैं लेकिन जब मेहनत का फल मिलता है वो बहुत खूबसूरत होता है.'


नवाजुद्दीन ने मुंबई में अपनी पसंदीदा जगह के बारे में भी बताया और कहा, कि 'मुंबई में ऐसे बहुत से काेने हैं, क्योंकि समंदर के सामने मुझे लगता था कि मैं खो जाउंगा. इसीलिए मैं एक काेना पकड़ लेता था. वहां मैं खुद से बातें भी करता और रोता भी था.' इसके अलावा नवाज अपनी सफलता का श्रेय अपने डायरेक्टर्स को देते हैं.


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