Kho Gaye Hum Kahan: फिल्म की इन 5 पंचलाइन में है सिचुएशनशिप, हुक-अप, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और लड़का-लड़की की दोस्ती से जुड़े सवालों के जवाब
Kho Gaye Hum Kahan: फिल्म के ये डायलॉग टिंडर और सोशल मीडिया के जमाने में सिचुएशनशिप, हुकअप और लड़के-लड़कियों के बीच संबंधों से जुड़े सवालों के जवाब देते हैं. जानिए यूथ कैसे देखता है इन्हें?
Kho Gaye Hum Kahan: 'खो गए हम कहां' एक मीनिंगफुल फिल्म है, जो बड़ी ही सहजता से सोशल मीडिया के जाल में फंसे यूथ की कहानी कहती है. फिल्म में कई बेहतरीन चीजें एक साथ हैं, जैसे कि एक्टिंग, स्टोरीटेलिंग, स्टोरीलाइन. लेकिन फिल्म की एक खास बात है फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी के स्टैंडअप सीन.
Kho Gaye Hum Kahan: पूरी फिल्म में उनके स्टैंडअप देखते समय यही लगता है कि सच में हम किसी स्टैंडअप कॉमेडियन का शो देख रहे हैं. उनके स्टैंडअप हंसाते हैं. साथ ही, हर स्टैंडअप सीन में वो कई मीनिंगफुल बातें कर जाते हैं. यहां उनकी हर पंचलाइन को समझने की कोशिश कीजिए और फिर फिल्म देखिए. सच में आप सोच में पड़ने वाले हैं.
1- सिचुएशनशिप का मतलब होता है- हुकअप, एक साथ खाना-पीना और 'नेटफ्लिक्स एंड चिल'. इसमें एक-दूसरे के साथ इमोशनल फीलिंग शेयर नहीं करते. इसमें मेरे डैड ने कहा- 'बेटा ये सब तो तेरी मां के साथ हमने बहुत किया है जिसे हम 'अरेंज्ड मैरिज' कहते हैं'- ये लाइन अप्रत्यक्ष रूप से कपल के बीच पारंपरिक रिश्तों का स्याह सच दिखाता है.
2- 'मेरी बचपन की दोस्त अहाना मेरी फ्लैटमेट है, लेकिन हम किसी सिचुएचनशिप में नहीं हैं. हम एक-दूसरे को स्पेस देते हैं. मेरी गर्लफ्रेंड है और उसका बॉयफ्रैंड है- ये लाइन बदलते दौर में लड़के-लड़की के बीच रिश्तों पर एक तस्वीर पेश करती है और इस बात को नकारती है कि 'लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते'.
3- 'सोशल मडिया पर किसी की प्रोफाइल देखकर हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उसको फॉलो करने लग जाते हैं और उसे देख-देखकर हम डिप्रेशन में जाते हैं और असुरक्षित महसूस करते हैं. लेकिन फिर भी हम उसे फॉलो करते रहते हैं'- ये लाइन बताती है कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली हर चमकदार चीज असल में सिर्फ फोटो में ही चमकदार लगती है. इसलिए इससे परेशान होकर खुद को किसी और से कंपेयर करना बंद कर दें.
4- 'एक एवरेज इंसान अपना फोन दिन में 224 बार चेक करता है. अगर आप कोई भी एक्टिविटी दिन में 224 बार कर रहे हैं न, तो वो एक्टिविटी नहीं नशा है. हम दूसरों की जिंदगी को देखने के एडिक्टेड हो जाते हैं और हमारी आंखों में चश्मा और दिमाग में ताला लग जाता है. ये जानने की जरूरत नहीं है कि कौन दिन में क्या खा रहा है, क्या पहन रहा है.- ये लाइन सोशल मीडिया एडिक्शन पर निशाना साधते हुए संदेश देती है कि कैसे सोशल मीडिया हमें नुकसान पहुंचा रहा है.
5- 'मुझे इन्फ्लुएसर्स समझ नहीं आते. ये कैसा जॉब है यार? इनके बच्चे क्या बोलेंगे स्कूल में? हमारे टाइम में हम अपने पापा की जॉब के बारे में बताते थे, लेकिन आज के जमाने के बच्चे क्या बताएंगे कि उनके पापा 'इंस्टाग्राम पर नाच-नाच के साबुन बेचते हैं'?- इस लाइन के जरिए ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि सोशल मीडिया पर आप जिनसे प्रभावित होते हैं. असल में वो चलते-फिरते ऐड हैं, जिनसे प्रभावित होने से पहले खुद से सवाल पूछना चाहिए.