'मेरा मुंह काला किया, पैरों में गिरकर माफी मंगवाई, हंसल मेहता का शिवसेना पर आरोप, कुणाल कामरा को किया सपोर्ट
Kunal Kamra Controversy: हंसल मेहता ने कुणाल कामरा को सपोर्ट किया है और अपने साथ हुए जुल्म की कहानी सुनाई है. उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि कॉमेडियन के साथ जो कुछ हुआ वो गलत हुआ.

Kunal Kamra Controversy: कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को लेकर जो विवादित कॉमेडी की थी, उसे लेकर शिवसेना के कार्यकर्ताओं का हंगामा जारी है. वहीं कुणाल कामरा ने इस मामले पर बयान देते हुए साफ तौर पर कहा है कि वे अपनी की वे इस मामले में माफी नहीं मांगेगे. वहीं अब फिल्म डायरेक्टर हंसल मेहता ने कुणाल को सपोर्ट किया है और अपने साथ हुए जुल्म की कहानी सुनाई है.
हंसल मेहता ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर करते हुए बताया है कि 25 साल पहले अपनी एक फिल्म 'दिल पे मत ले यार' जिसमें मनोज बाजपई लीड रोल में थे, इसमें कथित तौर पर एक आपत्तिजनक लाइन की वजह से (अविभाजित) शिवसेना के गुंडों ने उनके दफ्तर में तोड़फ़ोड़ मचाई थी. उन्होंने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हुए लिखा- 'कामरा के साथ जो हुआ, वो दुखद है, महाराष्ट्र के लिए नया नहीं है. मैं खुद भी इससे गुजर चुका हूं.'
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'मेरे साथ मारपीट की, मेरा चेहरा काला कर दिया'
हंसल मेहता ने लिखा- 25 साल पहले, उसी (तब अविभाजित) राजनीतिक पार्टी के वफादारों ने मेरे दफ्तर में घुसकर तोड़फोड़ की, मेरे साथ मारपीट की, मेरा चेहरा काला कर दिया और मुझे अपनी फिल्म (दिल पे मत ले यार)) के एक डायलॉग के लिए पब्लिकली माफी मांगने के लिए मजबूर किया. 'एक बुज़ुर्ग महिला के पैरों पर गिरकर'- ये लाइन नुकसानदेन नहीं थी, लगभग तुच्छ. सेंसर बोर्ड ने 27 दूसरे कट के साथ फिल्म को पहले ही मंजूरी दे दी थी. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.
'मेरी आत्मा को चोट पहुंचाई'
फिल्म मेकर ने आगे कहा- 'तथाकथित माफी स्थल पर, कम से कम 20 राजनीतिक हस्तियां पूरी ताकत के साथ उस घटना की देखरेख करने के लिए पहुंचीं, जिसे सिर्फ शर्मिंदगी के तौर पर डिफाइन किया जा सकता है. दस हजार दर्शकों और मुंबई पुलिस के साथ चुपचाप देख रही थी. उस घटना ने सिर्फ मेरे शरीर को ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा को भी चोट पहुंचाई. इसने मेरी फिल्म मेकिंग की काबिलियत को कुंद कर दिया, मेरी हिम्मत को दबा दिया और मेरे उन हिस्सों को खामोश कर दिया जिन्हें वापस पाने में सालों लग गए.'
आखिर में हंसल मेहता ने लिखा- 'चाहे असहमति कितनी भी गहरी क्यों न हो, चाहे उकसावे की गहराई कितनी भी हो - हिंसा, धमकी और अपमान को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता. हमें खुद को और एक-दूसरे को बेहतर बनाने का हक है. हमें खुद से डायलॉग, असहमति और गरिमा का हक है.'
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