EXCLUSIVE INTERVIEW: Paatal Lok का ‘हाथीराम’ बेमिसाल है, पंकज त्रिपाठी जैसे दिग्गजों से तुलना होने पर ख़ुशी ही होती है: जयदीप अहलावत
हाल ही में आई वेब सीरीज 'Paatal Lok' को दर्शकों से खूब तारीफ मिल रही है और साथ ही जिस किरदार की सबसे ज़्यादा तारीफ हो रही है वो है 'हाथीराम चौधरी' का, जिसे निभाया है अभिनेता जयदीप अहलावत ने. जयदीप अहलावत से अभिनय और इस वेब सीरीज़ के विषय में हमारे सह-संपादक सौरभ कुमार गुप्ता ने विस्तार से बात की. यहाँ पेश है यह पूरी बातचीत.
सौरभ: जयदीप, सबसे पहले तो आपको Lockdown में आई आपकी सीरीज़ ‘पाताल लोक’ की क़ामयाबी और आपके अभिनय के लिए मिलने वाली सराहना के लिए बधाई.
सवाल: ‘पाताल लोक’ में इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी के किरदार को आपने परदे पर जीवंत कर दिया है, इस रोल को मिलने और इसके लिए खुद को तैयार करने के पीछे की कहानी हमसे शेयर करें.
जवाब: हाथीराम का जो किरदार जो है वो जब लिखा गया तो, सुदीप शर्मा जी ने लिखा है, बाकी कुछ टीम है उनकी और मुझे जब ऑफर हुआ तो मेरे लिए इंटरेस्टिंग था क्योंकि बहुत ही कमाल का लिखा हुआ किरदार है और उतनी ही कमाल की लिखी हुई कहानी है. उसको पढ़ते ही लगा कि हां ये मैं बिल्कुल मना नहीं कर पाउंगा, इस रोल के लिए और बड़ी खूबसूरत टीम है. डायरेक्टर्स जो हैं उनमें से कम से कम अविनाश को मैं पहले से जानता था. प्रोसित दा हैं उनका सबका, एक टीम से मिलकर जब आपको अहसास होता है कि बहुत ही अच्छी कहानी लिखी है और बहुत ही अच्छी टीम है, तो उसकी तैयारी के लिए शुरू हो गया था. बस फिर उसके लिए ये सब हुआ. वेट बढ़ाया गया, लैंग्वेज को लेकर बातें की गईं, किरदार के जिस तरह के जितने-जितने रिलेशनशिप हैं, उसकी बातें की, उसके ऊपर डिस्कशन हुए और फिर लोगों को जिस तरह से वो जिन-जिन परिस्थितियों में जैसा-जैसा बिहेव करता है, वो बहुत अच्छे से लिखा हुआ था तो एक प्रक्रिया के तहत, एक तरह से मानके चलिए कि आप धीरे-धीरे उन चीजों के, उस किरदार के छोटे- छोटे जो एक तरह से धागे जिसको हम कह सकते हैं वो पिरोने शुरू हुए और कोई भी किरदार जो है क्योंकि ये बायोपिक तो है नहीं, तो ऐसा कोई रीयल किरदार नहीं है सब फिक्शनल कैरेक्टर्स हैं. किसी एक किरदार को स्टडी करने का मौका होता लेकिन ये एक किरदार कुछ ऐसा था जो, हम अपने आस-पास के समाज में देखते हैं, उन चेहरों को देखते हैं. आम इंसान सिर्फ एक पुलिस इंस्पेक्टर नहीं है, एक पति है, पिता है, तो दोस्त है तो वो सब भी है. धीरे-धीरे उन सब चीजों की तैयारी शूरू हुई. उसकी स्क्रिप्ट को बहुत बार पढ़ा गया क्योंकि आम तौर पर जब अच्छी कहानी लिखी जाती है तो किरदार के जो उसकी एक तरह से कैरेक्टरस्टिक्स होते हैं वो मुझे हमेशा लगता है कि वो कहानी में बड़े पड़े होते हैं तो ये सब चीजें तैयार हुईं.
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सवाल: आप जिस पृष्ठभूमि से आते हैं उस लिहाज़ से ये रोल आपके लिए निभाना कितना मुश्किल या फिर कितना आसान रहा?
जवाब: हां ये फायदा जरूर था कि मैं और मेरा बैकग्राउंड हरियाणा से है और मैं हरियाणा, दिल्ली को बेहतर समझता हूं और किरदार का भी बैकग्राउंड जो फिर हमने हरियाणवी रखा तो, उस सूरत में वो सब ठीक हो गया. आसान इसलिए था कि मेरा वो बैकग्राउंड रहा है क्योंकि मैं जानता हूं, उस लैंग्वेज को जानता हूं तो लैंग्वेज की पकड़ थोड़ी जल्दी हो गई, उन किरदारों को देखने की जो समझ है, वो जिस तरह से बिहेव करते हैं उनको समझने की थोड़ी सा फायदा जरूर हुआ लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि उसके लिए तैयारी नहीं करनी पड़ती क्योंकि सभी किरदारों को साधारण जिंदगी में देखना अलग बात है लेकिन उनको पर्दे पर उतारना दूसरी बात होती है तो उस तरह से उसकी तैयारी उतनी ही ज़रूरी होती है, चाहें आप किरदार को पहले से जानते हैं या नहीं जानते. फायदा जरूर हुआ क्योंकि मैं उस माहौल को पहले से समझता था और हां उसको करने में बहुत मज़ा आया.
सवाल: ‘पाताल लोक’ की कहानी में खुद आपका पसंदीदा किरदार कौन सा है और क्यूँ?
जवाब: डेफिनेटली मुझे हाथीराम बहुत पसंद है और वो इसलिए क्योंकि हाथीराम बहुत ही vulnerable आदमी है, बहुत ही आम आदमी की तरह है. हम सब उन इमोशन को जानते हैं और हम सब में वो इमोशन होते हैं तो वो रिफ्लेक्शन है पूरा का पूरा एक ऐसे इंसान का जो हमारे समाज के बीच में होता है जिसका एक काम है, जिसका एक घर है, जिसका परिवार है और वो जिंदगी में कुछ ना कुछ चाहता है, कुछ ना कुछ अच्छा करे, कुछ ना कुछ बेटर करे, अपने पास्ट से बेटर करे, उसका जो पास्ट है उससे बेटर उसकी लाइफ हो और आने वाली जिंदगी जो है बच्चों के लिए उसको और बी बेहतर बनाए, तो ये बहुत सारी चीजें हैं और अपने आपको प्रूव करे कि वो worth है, He is capable of doing things. घर बाहर जो भी आपको एक इज्जत, एक सम्मान, आत्मसम्मान की जरूरत होती है वो उसी यात्रा पर है, इसीलिए वो बहुत ही ज्यादा पसंद है मुझे.
सवाल: ‘पाताल लोक’ में कई अन्य मंझे हुए कलाकार इसको और मज़बूत बनाते हैं. उनके साथ काम करने के अपने अनुभव कुछ साझा करें. जवाब: बिल्कुल, बिल्कुल बहुत अच्छे-अच्छे एक्टर हैं इस वेबसीरीज का ये भी एक बड़ा प्लस पॉइंट है कि बहुत खूबसूरत और बहुत ही कमाल के एक्टर्स लिए गए हैं और इन सबके साथ जितना-जितना भी काम था, जितना उनके साथ मेरा स्क्रीन शेयर हुआ उसके अलावा भी बहुत ही कमाल का अनुभव रहा क्योंकि सब अपने-अपने जोन में एकदम ऐसे फिट बैठे हुए थे कि ज्यादा हमें, सही कहूं तो, रिहर्सल की जरूरत नहीं पड़ती थी, क्योंकि सबके सब बहुत अच्छी तैयारी के साथ आए थे.
सवाल: जयदीप अहलावत जब ‘हाथीराम चौधरी’ का किरदार निभाते हुए नज़र आते हैं तो बेहद सहज दिखते हैं. असल ज़िंदगी में जयदीप और हाथीराम में क्या कुछ समानताएँ हैं या दोनों बिल्कुल अलग हैं?
जवाब: नहीं, ऐसा नहीं होता है कि समानताएं होती हैं, हां बिल्कुल हाथीराम में और जयदीप अहलावत में कुछ ना कुछ समानताएं हो सकती हैं क्योंकि जयदीप भी हरियाणा का और हाथीराम भी हरियाणा का है, तो ये समानताएं जरूर है. मेरा ये मानना है कि बिल्कुल आप जैसे आप होते हो वैसा भी स्क्रीन पर उतारना आसान नहीं होता है. ये बड़ा आसान कहने में लगता है कि हां आपमें ऐसी कुछ खूबियां होंगी तो जब आप अपने आपको भी प्ले करोगे तो स्क्रीन पर बहुत मुश्किल होता है उसको प्ले करना. लेकिन कुछ समानताएं जरूर है, जैसे कि मेरे अंदर है वो ड्राइविंग फोर्स जो मैं समझता हूं हाथीराम में है. अगर उसको एक बार वो ड्राइव फ़ोर्स में काम करना शूरू किया तो फिर वो किसी भी हद तक जा सकता है और बहुत सारी चीजें है जो परिवार के साथ, जो रिलेशनशिप है कि आप उनको हमेशा प्यार करते हैं, उनकी भलाई के लिए कुछ ना कुछ चाहते है, वो समानता है, मेरे पिताजी. मैंने जैसे हाथीराम की चाल-वाल वो सब मैंने अपने पिताजी से, actually उनकी चाल थोड़ी सी वैसी ही है और अगर उनकी लाइफ के कुछ incident जो स्पेशली जब मैं टीनएजर था तब जैसा हमारा रिलेशनशिप था उसकी कुछ हल्की-फुल्की झलक हाथीराम और उसके बेटे के बीच दिखाई देती है, लेकिन मेरे पिताजी हाथीराम से ज्यादा, क्या कहें कि ज्यादा मोटिवेशनल रहें हैं, उस दौर में मेरे लिए तो मुझे कभी मारा-वारा नहीं उन्होंने थैंकफुली. हां, कुछ समानताएं जरूर हैं.
सवाल: ‘पाताल लोक’ की तुलना दर्शकों का एक बड़ा वर्ग पहले कुछ और सफल हुई सीरीज़ से कर रहे हैं. क्या आप इस तुलना को सही मानते हैं या इस तुलना को प्रशंसा के रूप में लेते हैं?
जवाब: नहीं, ठीक है क्योंकि दर्शक हमेशा ऐसा करते हैं कि इससे पहले जो जो उस प्लेटफार्म पर काम आएं हैं, लोगों का एक स्वाभाविक है कि वो उसकी तुलना करते हैं, लेकिन एक एक्टर और एक टीम के तौर पर मेरे ख्याल से हम कभी इस तरह से नहीं सोचते हैं कि हमें इसको किसी और दूसरे प्लेटफार्म से या किसी दूसरे काम से जो है इसका हमारा कम्पटीशन है क्योंकि फिर आज, मुझे लगता है कि अगर आप ऐसा कोई कम्पटीशन बनाते हैं तो आप ऑलरेडी अपने आपको लिमिट कर लिया है कि आप उसको कितना क्या बना सकते हैं.
सवाल: ‘पाताल लोक’ में क्या ऐसा कुछ है जिसे आप बदलना चाहेंगे या कुछ और बेहतर करना चाहेंगे?
जवाब: नहीं पाताल लोक में ऐसा कुछ नहीं मानता हूं मैं कि कुछ बदलना चाहूंगा या बेहतर करना चाहूंगा. वो एक बड़ी ही खूबसूरती से लिखी हुई कहानी है. मैं पर्सनली उसमें से कुछ नहीं बदलना चाहूंगा.
सवाल: एक अच्छी कहानी के साथ साथ हमारे सिस्टम पर भी चोट करती है ‘पाताल लोक’ और कहीं ना कहीं कुछ इस वजह से भी लोगों की नब्ज़ को छूती है. इस पर आपकी टिप्पणी?
जवाब: हां, कहानी जो है हमारे समाज के बहुत सारे हिस्सों को छूती हुए निकलती है, चाहे बहुत गहराई में नहीं पर हल्का सा टच जरूर देती है, वो आपको आगाह कराती है, एक तरह से आपको अहसास दिलाती है कि हां ये सब हम सबके बीच में है, होता है हमारे यहां, तो हमने देखा है उसको, पढ़ा है, सुना है, अखबारों में, हम सब उन सब मुद्दों को हम जानते हैं, वो हमारे सामाजिक मुद्दे हैं तो डेफिनेटली ये कहानी आपको ज्याद रिलेट करती हुई लगती है, चाहे फिर वो पॉजीटिव हो, नेगेटिव हो जो भी आपको लगता है उसमें, पर बड़ा खूबसूरती से लिखा हुआ है इसलिए सुदीप सर ने उसको, तो उसकी ब्यूटी भी है कि वो आपको हर तरीके से, हर तरफ से, हर पॉइंट ऑफ व्यू से आपको वो कहानी दिखाती है, इसीलिए जो किरदार शूरू में या जो घटनाएं शूरू में आपको सही लगती हैं वो आपको बाद में गलत लगने लगती हैं या हो सकता है पहले जो गलत लगती हों वो सही लगने लगता है तो वो अलग-अलग पॉइंट ऑफ व्यूज है और उसकी एक थी पंच लाइन इसमें कि सच सिर्फ उतना ही नहीं होता है जितना आपको बताया जाता है या हमें सुनाया जाता है, सच उसके आगे होता है, तो उस तरह की एक जर्नी है.
सवाल: आने वाले समय में हम और किन प्रोजेक्ट्स में जयदीप अहलावत से ऐसे ही बेमिसाल अभिनय को देखेंगे?
जवाब: हां, अभी कुछ प्रोजेक्ट्स आ रहे हैं, जिनमें से एक Netflix के लिए शार्ट फिल्म है, जो कि शशांक खेतान ने डायरेक्ट किया है, Dharma Production ने उसे प्रड्यूस किया है और मैं और फातिमा सना शेख हैं उसमें. इसके अलावा मैंने एक फिल्म है ‘ट्रस्ट विद अ डेस्टिनी’ जो आजकल फिल्म फेस्टिवल में गई है और उन्होंने रीसेंटली, पिछले महीने जो ट्रिबेका फिल्म फेस्टिवल होता है अमेरिका में वहां से हमने इस फिल्म के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवॉर्ड जीता है. उसके अलावा एक फिल्म है ‘खाली-पीली’ ईशान खट्टर और अन्नया पांडे और मैं हूं तो ये कुछ काम है जो ऑलरेडी तैयार है, बाकी आगे का लॉकडाउन के बाद देखेंगे.
सवाल: ‘पाताल लोक’ की क़ामयाबी के बाद लोग आपके अभिनय में पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, नवाजुद्दीन जैसे कलाकारों की खूबी के साथ साथ भदेस उत्तर भारत के स्पर्श को भी महसूस कर रहे हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: जी बिल्कुल बढ़िया लगता है, बहुत बड़े-बड़े कलाकार हैं और कुछ लोगों ने तो बहुत सारी जगहों पर कुछ फैंस ने ऐसे-ऐसे इरफान सर के साथ ही तुलना कर दी थी, बिल्कुल बहुत बड़े-बड़े कॉम्प्लिमेंट्स हैं हमारे लिए और अच्छा लगता है कि आपका काम लोगों तक पहुंच रहा है. हां ये भले ही उत्तर भारत के स्पर्श को महसूस कर रहे हैं पता नहीं, ऑफकोर्स कर रहे होंगे क्योंकि किरदार उस तरफ का है वो तो वो करते ही हैं, तो जहां का किरदार होगा, उस एरिया के लोग हमेशा ही ये फील होता है कि उनको अपने जैसा लगने लगता है और होता भी है क्योंकि उनके लिए बनाया गया है तो इसमें क्या कहूं मुझे समझ नहीं आता, लेकिन ये ज़रूर है कि बहुत लोगों ने बहुत काम पसंद किया है और अच्छा लगता है, बड़े-बड़े कलाकारों के साथ आपना नाम जोड़ा जाता है, अगर आपका नाम इरफान सर के साथ जोड़ा जाता है तो इससे बड़ी क्या बात हो सकती है मेरे लिए.
सवाल: कई जगह आपके दृश्य हंसाते भी हैं, हरियाणा के प्रादेशिक हास्य का पुट भी दिखता है, आपका ‘थप्पड़’ भी कबीर सिंह के थप्पड़ की तरह चर्चित हो रहा है. इस पर कुछ रोशनी डालें.
जवाब: हां, हरियाणा में एक्चुअली हरियाणा का अपना ही एक हास्य है, बड़ा ही ड्राई ह्यूमर है हरियाणा का. वो मज़ेदार है उसको मैंने डालने की कोशिश की जहां तक भी पॉसिबल हो पाया लेकिन बड़ा इंटरेस्टिंग भी है वो गालियां, वो थप्पड़ वो सब जो बेसिकली आपके इमोशन का हिस्सा होते हैं और वो निकल जाते हैं बड़े स्वाभाविक तौर से, तो मैंने उसी को उतनी ही स्वाभाविकता के साथ कोशिश की है कि वो आपको उस कहानी में, उस किरदार में बेसिकली, उसके उस पहलू को भी दिखाया जाए, चाहे फिर वो गुस्से में है या नहीं है. मेरा मानना है कि वो एक इमोशन के तहत निकले हुए शब्द होते हैं, बिल्कुल उसमें हरियाणा का एक हास्य पुट जरूर रहता है. हां थप्पड़ भी कुछ ज्यादा ही चर्चित हो गया है, अच्छा लगता है, मुझे लगता है कि वो बड़ा एक इंटरेस्टिंग सा moment है तो अच्छा लगा कि सबको वो मोमेंट पसंद आया.
सवाल: आपका किरदार एक अच्छा पति, एक आदर्श पिता बनने और एक अच्छा बेटा ना हो पाने के बीच संघर्ष करता दिखता है, इसको निभाने में खुद आपको कितना संघर्ष करना पड़ा?
जवाब: नहीं, कोई ज्यादा संघर्ष, ऐसा तो नहीं कहुंगा कि बहुत ज्यादा संघर्ष हुआ लेकिन ये बड़ा काम्प्लेक्स कैरेक्टर था जिसको समझना शूरूआत में आपको वक्त लगता है. कठिनाइयों का सामना तो नहीं कहुंगा कि संघर्ष करना पड़ा है पर वक्त लगा ये समझने में कि साइकी समझने में हाथी राम की, कि वो किस तरह का इंसान है, क्या उसका पास्ट है, क्या उसका प्रेजेंट है और क्या उसका फ्यूचर होने वाला है और उसके रिलेशनशिप जो हैं, उसके काम के ऊपर जो रिलेशनशिप्स हैं प्रोफेशनली, पर्सनली, एक्चुअली लाइफ थोड़ी सी काम्प्लेक्स उसमें है जो कि हाथी राम की जर्नी में धीरे-धीरे और काम्प्लेक्स भी होती है और उसके साथ-साथ बेटर भी होना शूरू हो जाती है. हां वो खूबसूरती है इस किरदार कि वो बड़ा ही एक ऑनेस्ट और मोरल आदमी है, पर वो जिस जगह खड़ा है वो ऐसा दिख नहीं रहा है, उतना खुश नहीं दिख रहा है, उसके बाद उसकी जो जर्नी शुरू होती है अपने बेटे के साथ, उसके बेटर रिलेशनशिप हो या वाइफ के साथ हो, चाहे काम पर हो, वही मजेदार है, इसीलिए वो कहानी आपको इतनी रिलेटेबल लगती है, इतना उसमें खो जाते हैं जब उन किरदारों को देखते हैं उसके आस-पास.
ABPLive.com से बात करने और हमारे सवालों का जवाब देने के लिए आपका आभार.
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