कैफ़ी आज़मी और चेतन आनंद की बेमिसाल जुगलबंदी का नतीजा थी फ़िल्म ‘हीर रांझा’
50 साल पहले साल 1970 में चेतन आनंद की फिल्म 'हीर रांझा' रिलीज हुई. आज भी दो प्रेमियों के लिए या किसी भी हिंदुस्तानी के लिए ये कहानी बेहद खास है
50 साल पहले साल 1970 में चेतन आनंद की फिल्म 'हीर रांझा' रिलीज हुई. आज भी दो प्रेमियों के लिए या किसी भी हिंदुस्तानी के लिए ये कहानी बेहद खास है. हीर राझां जिनकी मोहब्बत की मिसाल आज तक दी जाती है और शायद जब तक दुनिया है तब तक दोनों का नाम लिया जाता रहेगा. कहते हैं सच्ची मोहब्बत कभी पूरी नहीं होती जैसा कि इस फिल्म में दिखाया गया है. रांझा को उसकी हीर नहीं मिलती. राजकुमार और प्रिया राजवंश की इस फिल्म ने उस वक्त हिंदी सिनेमा को अलग राह पकड़ा दी थी. हालांकि चेतन आनंद की इस फिल्म से पहले साल 1948 में भी एक 'हीर रांझा' बनी थी जिसे निर्देशक वली ने डायरेक्ट किया था और बाद में श्रीदेवी और अनिल कपूर ने भी साल 1992 में हरमेश मल्होत्रा की 'हीर रांझा' की थी लेकिन चेतन आनंद की 'हीर रांझा' की बात सबसे अलग है.
लेखक कैफी आज़मी ने फिल्म 'हीर रांझा' के डायरेक्टर चेतन आनंद के कहने पर जो कमाल किया जो सबने देखा. उन्होंने फिल्म में सिर्फ प्रिया राजवंश और राज कुमार के लिए ही काव्यात्मक संवाद ही नहीं लिखे बल्कि इस फिल्म के हर कलाकार के लिए ऐसा किया फिर चाहे वो अचला सचदेव हों प्राण हों जयंत, वीणा, जीवन, पद्मा खन्ना या फिर पृथ्वीराज कपूर, कैफी ने सबके लिए काव्यात्मक संवाद लिखे, जिसे हर कलाकार ने पर्दे पर बेहद खूबसरती से बोला. उसपर पंजाब की खूबसूरती. ये वो पंजाब था जहां सोनी महिवाल, मिर्जा साहिबां और हीर रांझा की मोहब्बत की सदा आज भी सुनाई देती है और इसी पंजाब के वारिस शाह नाम के एक सूफी संत की लिखी हीर रांझा की कहानी ने ना सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि सरहदों के पार जाकर भी खूब शोहरत पाई. कैफी ने वारिस शाह की इसी काव्यात्मक रचना को आम इंसान को समझ आने वाली लाइनों में लिखकर फिल्मी पर्दे पर दिखाया.
ये बात सिर्फ फिल्म 'हीर रांझा' को देखने वाले ही समझ सकते हैं कि कैफी आज़मी और चेतन आनंद की बेमिसाल जोड़ी ने पर्दे पर क्या कारनामा कर दिखाया है. इस फिल्म को शूट करने के लिए ना किसी फॉरेन लोकेशन का इस्तेमाल किया गया ना डिजाइनर कपड़ो का. राजकुमार के चेहरे पर रांझे की बेकरारी साफ दिखाई दी तो वहीं हीर बनीं प्रिया राजवंश भी अपने रांझे के लिए तड़पती लोगों को खूब भाईं. बेहद सी साधारण तरीके से शूट की गई इस फिल्म को दर्शकों ने दिल खोलकर प्यार दिया. कलाकारों के बाद दर्शकों को फिल्म का संगीत बहुत पसंद आया, जिसे मदन मोहन ने दिया और मोहम्मद रफी ने गानों में जैसे अपना कलेजा निकालकर रांझे का दिल का दर्ज बन गाने रिकॉर्ड किए और लता मंगेशकर ने हीर की शोखियों का बखान अपनी आवाज़ मे बड़ी ही खूबसूरती से किया.
वहीं इसी फिल्म की शूटिंग के साथ जहां एक तरफ पर्दे पर 'हीर रांझा' की प्रेम कहानी आगे बढ़ रही थी तो वही दूसरी तरफ फिल्म की लीड एक्ट्रेस प्रिया राजवंश और डायरेक्ट चेतन आनंद भी रीयल लाइफ में एक-दूसरे के नज़दीक आ रहे थे, लेकिन दोनों की मोहब्बत मुकम्मल ना सकी और 'हीर रांझा' की तरह ये दोनों भी जुदा हो गए.