Pushpa 2 The Rule: जानें कैसी है 'पुष्पा 2', सच में तूफानी या सिर्फ हवाहवाई? 5 पॉइंट में समझिए
5 Reasons to Watch Pushpa 2: अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना की मच अवेटेड फिल्म पुष्पा 2 क्या सच में धमाल है? यहां समझिए 5 वजहों से कि क्या सच में फिल्म में कुछ कमाल है या नहीं
Pushpa 2 The Rule: पुष्पा 2 रिलीज हो चुकी है. पहले ही दिन सारे रिकॉर्ड्स चकनाचूर कर दिए हैं. फिल्म हाइएस्ट ओपनर बन चुकी है. लेकिन इन सभी चीजों पर बहुत ज्यादा गौर करने के बजाय दर्शक सिर्फ ये जानना चाहता है कि फिल्म कैसी है, देखनी चाहिए या नहीं? तो हम आपको वो 5 वजहें बताते हैं जो इस फिल्म को देखने लायक बनाती हैं.
कहानी
पिछली फिल्म में हमने पुष्पा को अपना साम्राज्य फैलाते देखा था. इस फिल्म में कहानी उसके आगे की है. गद्दी हासिल करना जितना मुश्किल होता है उससे कहीं ज्यादा मुश्किल होता है उसे बनाए रखना. लेकिन इन मुश्किलों की जो कमर तोड़ दे वो नाम है पुष्पा.
इस बार पुष्पा के पास केजीएफ वाले रॉकी भाई जैसी पॉवर आ चुकी है. वो स्टेट पॉलिटिक्स में उलटफेर करने की ताकत पा चुका है. इस लाजवाब देसी कहानी को दोबारा से इंजॉय करने के लिए आपको ये फिल्म देख लेनी चाहिए.
कमाल के ट्विस्ट एंड टर्न्स के लिए
कहानी में ट्विस्ट एंड टर्न्स की ऐसी भरमार है जैसी 2008 में सैफ अली खान वाली रेस में देखने को मिली थी, लेकिन बिल्कुल देसी अंदाज में. हर बार लगता है कि अब क्या होगा और फिर जो होता है वो गूजबंप देता है.
पिछली फिल्म में भी ये गजब तरीके से दिखाया गया था, इस फिल्म में भी वही तरीका अपनाया गया है. आपको हर बार पता होगा कि आखिर में पुष्पा ही जीतेगा,लेकिन उसके बावजूद आप उसके जीतने का इंतजार करेंगे.
प्योर मसाला
फिल्म में क्लास ढूंढेंगे तो नहीं मिलेगा, लेकिन फिल्म देखते समय आपके अगल-बगल के लोगों का रिएक्शन देखकर ही आपको मजा आ जाएगा. हर दूसरे सीन में तालियों की गडगड़ाहट सुनते ही आप अंदाजा लगा पाएंगे कि ये फिल्म प्योर मास फिल्म है.
सलमान खान की फिल्म देखते समय जैसा माहौल सिनेमाहॉल में होता है, इस फिल्म को देखते समय वही माहौल मिलेगा.
एक्टिंग
पुष्पा के रोल में अल्लू अर्जुन 3 साल के गैप के बाद जो वापसी की है वो 2021 वाले पुष्पा से भी बेहतर है. फिल्म में उनके किरदार में वैरायटी दिखी है जिसमें उनकी एक्टिंग निखर के बाहर आती है. रश्मिका मंदाना को प्रॉपर स्पेस मिला है. जितनी समझदारी से उनका रोल लिखा गया है उतनी ही संजीदगी से उन्होंने इसे निभाया भी है.
आखिर में सबसे जरूरी फहाद फासिल. विलेन के किरदार में वो वॉन्टेड वाले प्रकाशराज के किरदार के आसपास होकर गुजरते हैं. उनके पर्दे पर आते ही अलग चमक आती है. अल्लू के साथ-साथ उनकी फैन फॉलोविंग भी इस फिल्म के बाद बहुत तेजी से बढ़ने वाली है. क्योंकि एक्टिंग की बात करें तो वो केक में लगी चेरी उड़ा ले गए हैं.
एक्शन और डायरेक्शन
सुकुमार को पता था कि उन्हें दर्शकों को क्या देना था उन्होंने वही दिया है. एक्शन की बात करें तो फिल्म के एक्शन वैसे ही हैं जैसे पिछले दो दशक से साउथ मूवीज में देखने को मिलते आ रहे हैं. लेकिन उनकी कोरियोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक उनका प्रभाव बढ़ाता है.
फिल्म में एक लंबा सीन है जहां मां काली के गेटअप में फाइट करते पुष्पा को देखकर लगता है कि उस सीन को 'कविता' की तरह लिखा गया है. यानी डायरेक्टर-राइटर सुकुमार ने यहां वो किया है जो संजय लीला भंसाली अपनी कई फिल्मों में करते दिख चुके हैं.
डायरेक्टर सुकुमार के कंधे पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी कि उन्होंने अल्लू अर्जुन के साथ पिछली 3 फिल्मों में 100 प्रतिशत सफलता का ट्रैक रिकॉर्ड बनाकर रखा था. इस चौथी फिल्म के साथ भी उन्होंने उस जिम्मेदारी को निभाया है.
राइटिंग करते समय पूरा ख्याल रखा गया है कि दर्शकों को कुछ मिनट का भी टाइम नहीं देना है. अगर थोड़ा बहुत टाइम मिल भी जाता है तो पूरी कोशिश करनी है कि अगले ही कुछ मिनट में उन्हें मजूबर किया जाए कि वो सीटी बजा दें.
सिनेमाई छूट के नाम पर उन्होंने फिल्म में क्या कुछ नहीं कर दिया. कई जगह इल्लॉजिकल चीजें दिखाने के बावजूद वो लॉजिकल लगे हैं क्योंकि जो दर्शकों को चाहिए वो उन्होंने दे दिया. यही उनके डायरेक्शन का कमाल है.