Flashback Friday: बॉलीवुड की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' साल 1912 में आई. दादा साहेब फाल्के ने इसका निर्माण किया था. बॉलीवुड की पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' थी और ये साल 1931 में रिलीज हुई थी. ये तो रही हिंदी सिनेमा की बात, लेकिन कभी क्या आपके मन में ये सवाल आया कि साउथ की फिल्म इंडस्ट्री की पहली फिल्म कब बनी थी? और जिस तरह बॉलीवुड आज 112 साल का हो चुका है वैसे ही साउथ फिल्म इंडस्ट्री कितने साल पुरानी है?


आज साउथ फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास पर नजर डालते हैं. जानते हैं कि साउथ फिल्म इंडस्ट्री की नींव कब पड़ी और कौन सी पहली फिल्म थी जिसने इस इंडस्ट्री का आगाज किया. साथ ही, ये भी जानेंगे कि साउथ में किस भाषा में पहली फिल्म बनी. क्या ये तमिल या तेलुगु थी या फिर कन्नड़ या मलयालम?


कितना पुराना इतिहास है साउथ सिनेमा का?
साउथ सिनेमा का इतिहास लगभग उतना ही पुराना है जितना पुराना हिंदी सिनेमा का है. जहां हिंदी सिनेमा में पहली मूक फिल्म 1912 में बनी थी. वहीं, साउथ में पहली फिल्म इसके ठीक 5 साल बाद 1916 में बनी जिसका नाम 'कीचक वधम' था. इस फिल्म को तब मद्रास (चेन्नई) में बनाया गया था. फिल्म तमिल में बनी थी. हालांकि, ये एक मूक फिल्म थी यानी फिल्म में कोई आवाज नहीं थी, लेकिन इस फिल्म में तमिल कलाकारों ने काम किया था. इसके अलावा, फिल्म में आवाज की जगह जो भी टेक्स्ट लिखकर आ रहे थे, वो भी तमिल में थे. इस फिल्म के बाद ही तमिल सिनेमा का उदय हुआ. साफ है कि कन्नड़, मलयालम और तेलुगु से पहले तमिल फिल्में बननी शुरू हो गई थीं. 


कौन था पितामह साउथ सिनेमा का?: 
जिस तरह हिंदी सिनेमा का पितामह दादा साहेब फाल्के को कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले हिंदी सिनेमा की नींव रखी थी. वैसे ही तमिल सिनेमा या यूं कहें कि साउथ सिनेमा के पितामह नटराज मुदलियार थे. मुदलियार एक ऑटोमोबाइल पार्ट्स डीलर थे. उनकी बनाई फिल्म 'कीचक वधम' में कोई साउंडट्रैक नहीं था. इसलिए, जैसा कि उस जमाने में किया जाता था, बोले गए शब्दों को कार्ड के तौर पर दिखाया गया था और ये कार्ड तमिल भाषा में लिखे गए थे.


कब खत्म हुआ साउथ में मूक फिल्मों का दौर?
साउथ में मूक फिल्म का दौर भी तभी खत्म हो गया था जब बॉलीवुड में खत्म हुआ. जैसे बॉलीवुड में 1931 में पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' रिलीज हुई वैसे ही साउथ में भी कालीदास नाम की पहली तमिल फिल्म रिलीज हुई जिसमें आवाज थी. इसके बाद, तेलुगु में 1932 'भक्त प्रह्लाद' नाम की पहली फिल्म बनी. बिल्कुल ऐसे ही, कन्नड़ में 1934 में 'सती सुलोचना' और मलयालम में 1930 में 'विगथाकुमारन' (मूक फिल्म) रिलीज हुई. 


पहली तमिल फिल्म के प्रिंट हैं गायब
पहली तमिल फिल्म कीचक वधम का कोई भी प्रिंट इस समय मौजूद नहीं है. यानी अगर आप चाहें भी तो ये फिल्म नहीं देख सकते. इसी तरह तमिल की पहली बोलती फिल्म कालीदास का भी कोई प्रिंट नहीं है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट की मानें तो ये सारे प्रिंट्स खो गए हैं. 1931 (कालीदास) से लेकर 1940 के बीच तमिल में कम से कम 249 फिल्में बनीं. उनमें से केवल 14 के ही प्रिंट बचे हैं. एनएफएआई के पास 'पावलाकोडी' और 'सती सुलोचना' (1934) जैसी फिल्मों के प्रिंट तो मौजूद हैं. लेकिन विडंबना ये है कि आम आदमी की पहुंच से दूर हैं.


हिंदी, तमिल, कन्नड़, मलयालम और तेलुगु फिल्मों एक जैसा क्या था?
इन सभी इंडस्ट्रीज की शुरुआती फिल्मों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इनमें एक जैसी चीज यही थी कि ये सभी फिल्में भाषाई स्तर पर अलग होने के बावजूद भारतीय सिनेमा को प्रदर्शित करती थीं. इन सभी भाषाओं में जो शुरुआती फिल्में बनीं, वो पौराणिक कहानियों पर बनीं. हिंदी की राजा हरिश्चंद्र से लेकर तमिल की कीचक वधम या फिर साउथ सिनेमा की दूसरी फिल्में जैसे सती सुलोचना या भक्त प्रह्लाद, ये सभी उन कहानियों पर बनीं, जिनसे भारतीय दर्शक जुड़ाव महसूस करता था. और यही वजह है कि आज इन भाषाओं की फिल्में बेशक अलग-अलग जगहों पर बनती हैं. लेकिन विश्वस्तर पर इनकी अपनी अलग छाप है और ये सभी इंडस्ट्रीज मिलकर दुनिया के सामने खुद को भारतीय सिनेमा के तौर पर पेश करती हैं.


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