सीरीज़- ताजमहल 1989
डायरेक्टर- पुष्पेंद्र नाथ मिश्र
स्टार कास्ट- नीरज काबी, गीतांजलि कुलकर्णी, शीबा चड्ढा, दानिश हुसैन, अनुद सिंह ढाका, अंशुल चौहान, पारस प्रियदर्शन
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म- नेटफ्लिक्स
रेटिंग- 4/5
1989 का दौर जब टीवी पर 'करमचंद', इश्तेहारों में 'बी-टेक्स' और 'रस्ना' और स्कूटर में 'वेस्पा' हुआ करते थे. फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिंडर की उक्ताहट से ज्यादा रिसीवर वाले बडे़ फोन पर बाते करने का सुकून हुआ करता था. पबजी मोबाइल गेम नहीं बल्कि कैरम बोर्ड जैसे खेल और चंदामामा जैसी किताबें, बच्चों के दिल बहलाने का जरिया हुआ करती थीं. मर्फी रेडियो के इवोल्यूशन से वॉकमैन तक का सफर तय किया जा रहा था. मगर उस दौर में भी प्यार की तलाश और उसकी सूरत आज जैसी ही थी. नेटफ्लिक्स की नई सीरीज 'ताजमहल 1989' नए बोतल में उस पुरानी शराब की तरह है जिसका सुरूर दर्शकों को उस दौर में ले जाएगा जहां हर किरदारों के अपने-अपने किस्से हैं, दोस्ती है, प्यार है और लखनऊ, बाराबंकी, आगरा की गलियां हैं.
वैलेन्टाइंस डे के मौके पर रिलीज हुई पुष्पेंद्र नाथ मिश्र के निर्देशन में बनी बेव सीरीज 'ताजमहल 1989' सात एपिसोड में बनाई गई है. जिसमें तीन तरह की प्रेम कहानियों को दिखाया गया है. अपने किरदारों में प्यार का मतलब बताती हुई इस वेब सीरीज की कहानी इंसानी जिंदगी के काफी करीब है, जहां दुनियां में हर इंसान एक दूसरे से अलग हैं और उनके प्यार के माएने भी. किसी के लिए प्यार बस किसी के ऊपर ऐतबार है तो किसी के लिए प्यार किसी को मिस करना होता है. किसी के लिए प्यार दोस्ती होती है तो किसी के लिए प्यार ताजमहल की ट्रिप. किसी के लिए प्यार रूप बदलने वाला वायरस होता है तो किसी के लिए प्यार एक बकवास! प्यार के जुड़ी इन्हीं रायों को साथ लेकर चलने की कहानी है 'ताजमहल 1989'. जहां मिडिल क्लास फैमिली में 40 साल पार चुके कपल की जिंदगी की जद्दोजहद में प्यार की तलाश है और साम्यवाद की डीबेट में किसी ऐसी लड़की से दिल हार जाना भी है, जो नया समाज लाने और बिना दाढ़ी के मार्कसवादी होने का दावा करती है.
किरदारों में एक तरफ अख्तर बेग (नीरज काबी) और उनकी पत्नी सरिता (गीतांजलि कुलकर्णी) की कहानी है जो लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. अख्तर फिलॉसफी पढ़ाते हैं तो उनकी पत्नी फिजिक्स, दोनों में इंटरेस्ट ऑफ सबजेक्ट के साथ शौक में भी काफी अलगाव है. अख्तर को मुशायरा पसंद था तो वहीं सरिता को मसाला फिल्में. 40 के पार की जिंदगी में दोनों अपने-अपने हिस्से प्यार तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. मगर मिडिल क्लास जिंदगी एक दूसरे को वक्त न दे पाने, बढ़ती उम्र के साथ-साथ प्यार का कम होना. ये सभी चीजें दोनों के बीच टकराव का सबब बनती हैं.
वहीं इस प्रेम कहानी के पैरलल लखनऊ यूनिवर्सिटी में ही इन दोनों प्रोफेसर के छात्रों के बीच इश्क उबाल मार रहा होता है. 'अंगद', 'रश्मि' और 'धरम' तीन दोस्त होते हैं जिसमें- रश्मि और धरम बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड हैं तो वहीं अंगद एक अनाथ लड़के किरदार में है, मगर फिलॉसफी और साम्यवाद के दोहरे ज्ञान के जरिए लोग उसके फैन हुआ करते हैं. मगर धरम राजनीति और शराब के ज़द में अपने दोस्तों से अलग हो जाता है और आखिर में जेल में पाया जाता है. इन किरदारों के अलावा चंद और किरदार हैं जिनकी प्रेम कहानियां भी साथ-साथ चलती रहती हैं.
किरदारों के संवाद पर गौर करें तो खालिस हिंदुस्तानी जबान में उर्दू के नुक्ते नीरज काबी की आवाज़ में बहुत ही खूबसूरत लगते हैं. फैज़ अहमद फैज़ की गज़लों और शायरियों से लबरेज कई डायलॉग्स में पुरानी हिंदी सिनेमा के डायलॉग्स जैसी नफासत भरी हुई है. वहीं कॉलेज के रोमांस और दोस्तों के बीच बातों के चंद चलताऊ लहजे भरे डायलॉग्स कॉलेज की सच्चाई के काफी करीब हैं, तो वहीं अवधी के चंद शब्द 'सुधाकर मिश्रा' और 'मुमताज' के जुबान में सुनाई देते हैं.
अख्तर के रूप में नीरज काबी ने शानदार एक्टिंग की है, अपनी एक्टिंग के जरिए वह इस बात को साबित कर देते हैं कि वह एक असाधारण कलाकार हैं. वह इस सीरीज में अपने किरदार में इतने निखरे हैं कि ऐसा लगता है कि अख्तर बेग का किरदार उनकी असल जिंदगी का किरदार है. डायलॉग्स प्रोजेक्ट करने के दौरान किन बातों पर ज्यादा जोर देना, किन बातों पर अपनी चाल और ढ़ाल से क्या रिएक्शन देना है यह बतौर कलाकार उन्हें बखूबी आता है. निर्देशक पुष्पेंद्र नाथ मिश्रा ने यदि एक शानदार वेब सीरीज बनाई तो उसमें बहुत हद तक रोल सीरीज के किरदारों की एक्टिंग का है.
''जिंदगी के सफरनामे में प्यार की जरूरत किसी भी वक्त और किसी भी शक्ल में हो जाती है'', इस सीरीज ने इस बात को साबित करने की बखूबी कोशिश की है. फिलॉसफी के चश्में और फैज़ के नगमों से सीधे दिल में उतरती किरदारों की बातें आपको 90 के दशक के सुकून का अहसास जरूर कराएंगी.
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