लखनऊ: देश में पौराणिक कथाओं पर बने सीरियल में बी आर चोपड़ा की तरफ से बनाया गया ‘महाभारत’ का अपना एक अलग स्थान है. आज जिस तरह का माहौल है उसे देखते हुए यह जानना अपने आप में महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे उस सीरियल के डायलॉग मशहूर साहित्यकार राही मासूम रजा ने लिखे थे.


अदब की सूफी परम्पराओं को अपनी पंक्तियों में जिंदा रखने वाले राही मासूम रजा एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीयता की खूबसूरती को ना सिर्फ जीवंत रखा बल्कि उसे एक प्रेरणा के रूप में दुनिया के सामने पेश किया.


कालजयी धारावाहिक 'महाभारत' के डायलॉग लेखन से लेकर 'आधा गांव', 'टोपी शुक्ला' और 'नीम का पेड़' जैसी शानदार कृतियों तक राही की कलम ने दुनिया को अपना क़ायल बनाया.


लेखक पवन सिंह ने राही को साहित्य का अप्रतिम प्रतीक करार देते हुए बताया कि वह राही मासूम रजा को भक्तिकाल से जोड़ना चाहेंगे, क्योंकि उन्होंने कभी धर्म को किसी दायरे में नहीं बाधा. राही ने रसखान और रहीम की परिपाटी को आगे बढ़ाया. मुस्लिम कवियों ने भगवान कृष्ण को लेकर जो रचनाएं लिखी हैं. वहां से शुरू होकर जो सूफियाना परम्पराएं हैं, वे रजा की पंक्तियों में भी जिंदा रहीं.


उन्होंने कहा कि राही ने महाभारत के जो संवाद लिखे, वे उनकी उदात्त भावनाओं को जाहिर करते हैं. महाभारत के संवाद किसी मुस्लिम ने लिखे हैं, इस पर विश्वास करना अक्सर मुश्किल होता है. महाभारत के संवादों में भारत की गरिमा, गौरव और भारतीय परिवारों के अंतद्वंद्व का मूल और वास्तविक अक्स मिलता है.


सिंह ने बताया कि राही ने धर्म को हिन्दू और मुसलमान के तौर पर नहीं बल्कि समग्रता के रूप में देखा था. जो सूफी परम्परा भारत की है, उसी परम्परा को रजा ने जिंदा रखा. वह वो शख्सियत हैं जिन्होंने भारतीयता की खूबसूरती को जीवंत रखा. आज राही को फिर से पढ़ने, समझने और समझाने की जरूरत है.


शायर ग़ज़नफ़र अली ने कहा कि राही एक ऐसे अदीब थे, जो हिन्दी में भी उसी तरह से मशहूर थे, जैसे कि उर्दू में. उन्हें महाभारत के डायलॉग लिखने के लिये दुनिया भर में शोहरत मिली. अगर उनके आत्मीय और भारतीय परम्परा से पगे हुए संवाद नहीं होते तो शायद महाभारत इतना लोकप्रिय नहीं हो पाता.


उन्होंने कहा कि ‘टोपी शुक्ला’ से लेकर ‘आधा गांव’ तक राही एक ऐसे साहित्यकार थे, जिनकी रूह में उर्दू और हिन्दी बसी थी. वह उर्दू में शायरी के लिये और हिन्दी में उपन्यास के लिये मशहूर हुए. मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) में फिल्म लेखक बने राही मानवीय मूल्यों के बहुत बड़े कद्रदान थे. उन्होंने अपने नौकरों को भी उसी तरह रखा जिस तरह कोई अपनी औलादों को रखता है.


उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक सितम्बर 1927 को जन्मे राही मासूम रजा की शुरुआती तालीम गाजीपुर में ही हुई थी. इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने पीएचडी की.


अलीगढ़ में राही ने ‘आधा गांव’, ‘दिल एक सादा कागज’, ‘ओस की बूंद’, ‘हिम्मत जौनपुरी’ उपन्यास तथा वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर अब्दुल हमीद की जीवनी ‘छोटे आदमी की बड़ी कहानी’ लिखी. उनकी ये सभी कृतियां हिंदी में थीं.


इसके अलावा उन्होंने उर्दू में ‘मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा’, ‘अजनबी शहर, अजनबी रास्ते’, भी लिखीं. राही ने फिल्म अलाप, गोलमाल, कर्ज, जुदाई, अनोखा रिश्ता, लम्हे, परम्परा, आईना तथा नाचे मयूरी के संवाद भी लिखे. राही ने 15 मार्च 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया.