कोबरापोस्ट के स्टिंग में दावा किया गया है कि भारतीय फिल्म और टीवी उद्योग के 30 से अधिक अभिनेता/अभिनेत्रियां पैसों की खातिर सोशल मीडिया पर अपने निजी खातों के माध्यम से राजनीतिक दलों के प्रचार-प्रसार पर सहमत हुए हैं.
देश के शीर्ष साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा, "राजनीतिक दलों से पैसे लेकर उनके हित में ट्वीट करना अनैतिक जरूर है, लेकिन गैर-कानूनी नहीं है. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 इस पर पूरी तरह से चुप है."
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जांच से जो पता चला है वह 'प्रभावशाली लोगों द्वारा किए जा रहे मार्केटिंग' का बहुत छोटा सा हिस्सा है. सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से विज्ञापन की यह एक नई अर्थव्यवस्था पैदा हुई है.
दुनिया भर में, इंस्टाग्राम के 1 अरब से ज्यादा सक्रिय मासिक यूजर्स हैं. वहीं, इसकी पैरेंट कंपनी फेसबुक के 2.3 अरब से ज्यादा सक्रिय मासिक यूजर्स हैं और ट्विटर पर रोजाना 1.6 करोड़ लोग लॉग इन करते हैं. वाट्सएप एक दूसरा शक्तिशाली प्लेटफार्म है, जिसके भारत में 20 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं.
इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म की पहुंच को देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंफ्लूएंसर मार्केटिंग (प्रभावशाली लोगों द्वारा जनमत तैयार करना) का कारोबार कितना बड़ा हो सकता है.
सोशल मीडिया विशेषज्ञ अनूप मिश्रा ने आईएएनएस से कहा, "शुरुआत में केवल सेलिब्रिटी ही मार्केटिंग करते हुए ब्रांड का प्रचार करते थे. लेकिन सोशल मीडिया के आने के बाद हर कोई सेलिब्रिटी हो गया है, राजनीति समेत हर कुछ का कारोबार हो रहा है."
अमेरिका में यह नियम है कि भुगतान लेकर पोस्ट करने पर उसका खुलासा करना होता है कि यह पेड पोस्ट है या निजी राय है. हालांकि वहां भी इस नियम का पालन बहुत कम हो रहा है, जबकि भारत में तो ऐसा कोई नियम भी नहीं है.
चुनाव सिर पर है, ऐसे में राजनीतिक दल इस मुद्दे पर कोई शिकायत नहीं कर रहे. वाट्सएप के एक कार्यकारी ने हाल ही में राजनीतिक दलों को उसके प्लेटफार्म के दुरुपयोग को लेकर चेतावनी भी दी है.