विक्रम और बेताल: 'विक्रम' के कंधे पर लटकने वाला कौन था वो 'बेताल', जानें पूरी जानकारी
'रामायण' के लिए फंड जुटाने के लिए रामानंद सागर ने पहले 'विक्रम और बेताल' सीरियल शुरू किया. इस सीरियल के हिट होने की वजह से रामायण का बनना मुनासिब हो सका.
कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते देशभर में लॉकडाउन लागू कर दिया गया है. इसके साथ ही पुराने टीवी सीरिल्यस को दूरदर्शन पर री-टेलीकास्ट किया जा रहा है. ऐसे में लोगों की डिमांड पर 'रामायण' को री-टेलीकास्ट किया जा रहा है. इन दिनों 'रामायण' टीवी पर बेहद देखी जा रही है और लोगों को बेहद पसंद भी आ रही है. 'रामायण' टीवी पर टीआरपी के नए रिकॉर्ड कायम कर रही हैं.
इस वक्त 'रामायण' की मेकिंग से जुड़े कई किरदार और दिलचस्प किस्से भी चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. इन दिनों एक सवाल जो चर्चा का विषय बना हुआ है वो है रामानंद सागर की 'रामायण' आखिर कैसे बनी. ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि उस वक्त इस तरह की सीरीज का चलन नहीं था और किसी भी नई चीज पर पैसे लगाने के लिए प्रोड्यूसर तैयार नहीं थे. तो रामानंद सागर ने 'रामायण' के लिए फंड कैसे एकत्र किया. तो आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देते हैं आखिर यह सब कैसे संभव हुआ.
इसके बारे में इस बात की चर्चा है कि रामायण के लिए फंड जुटाने के लिए रामानंद सागर ने पहले 'विक्रम और बेताल' सीरियल शुरू किया. इस सीरियल के हिट होने की वजह से रामायण का बनना मुनासिब हो सका.
'विक्रम और बेताल' में विक्रम का किरदार अरुण गोविल और बेताल का किरदार सच्चन साल पुरोहित ने निभाया था. सीरियल में बेताल का फेमस डायलॉग 'तू बोला, तो ले मैं जा रहा हूं. मैं तो चला!' काफी लोकप्रिय था. 1980 के दशक के अंत में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली टेलीविज़न सीरीज 'विक्रम और बेताल' को आज भी उस पीढ़ी द्वारा याद किया जाता है जो तब बड़ी हो रही थी. हालांकि, बहुत से लोगों को याद नहीं होगा कि बेताल का किरदार अभिनेता सज्जन लाल पुरोहित ने निभाया था, जिन्हें सज्जन नाम से ही जाना जाता है.
15 जनवरी, 1921 को जयपुर में जन्मे सज्जन ने अपनी स्नातक की पढ़ाई जोधपुर के जसविरत कॉलेज से की. उन्हें एक वकील बनने की इच्छा थी अभिनेता की नहीं. 1941 में वह कलकत्ता पहुंचे और ईस्ट इंडिया कंपनी में काम किरने लगे.
सज्जन ने अपने करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में इंद्र सभा (1932) से की. एक वयस्क के रूप में उनकी पहली फिल्म लेडी डॉक्टर थी, जिसे 1944 में रिलीज़ किया गया था. इसके बाद, उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. उन्होंने कुछ नामी फिल्में जैसे - रेल का डिब्बा (1953), चलती का नाम गाड़ी (1958), झुमरू (1961), बीज़ साद बाड (1962) और अप्रैल फूल (1964).
कैसे मिला था बेताल का किरदार?
सज्जन ने रामानंद सागर की मशहूर फिल्म 'आंखें' में किरदार निभाया था, जिसके बाद उनकी एक्टिंग रामानंद सागर के दिलों में बस गई. जब वह टीवी के लिए 'विक्रम और बेताल' बना रहे थे तो उन्होंने बेताल के किरदार का रोल ऑफर किया था. जिसके बाद उन्होंने इस रोल के लिए हां कर दिया. फिर जो हुआ वह अब इतिहास है. इस सीरियल में लोगों का सज्जन का किरदार काफी पसंद आया जिसकी चर्चा आज भी होती हैं.
यहां पढे़ं